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लूटकेस मूवी रिव्यूः पैसों की खोज में कहानी लापता, कॉमेडी ने बचाई इज्जत

Lootcase Review: फिल्म के डायरेक्शन की बात करें तो शुरुआत काफी अच्छी होती है. खासकर नंदन कुमार को जिस वक्त सूटकेस मिलता है. यहां कुछ सीन में कैमरे का भी कमाल दिखाया गया है.

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Lootcase Review
Lootcase Review
फिल्म:Lootcase
2.5/5
  • कलाकार :
  • निर्देशक :Rajesh Krishnan

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लॉकडाउन में सिनेमाघर बंद होने के बाद भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर जनता का मनोरंजन जारी है. इसी के तहत शुक्रवार को डिजनी हॉटस्टार पर रिलीज हुई है नई फिल्म लूटकेस. फिल्म की कहानी, फिल्म का डायरेक्शन और इसके स्टार की एक्टिंग कैसी है, इस मूवी रिव्यू में जानेंगे. फिल्म एक कॉमेडी ड्रामा है तो ये आपको चौंकाएगी नहीं, अपनी स्पीड पर चलती है.

क्या है कहानी?

सबसे पहले बात कर लेते हैं कहानी की. फिल्म की कहानी बहुत सिंपल है. इसमें कोई सस्पेंस या बड़ा ड्रामा नहीं है जिसके लिए आपको दिमाग लगाना पड़े. हालांकि, कहानी को प्रेजेंट करने का तरीका पुराना होते हुए भी कुछ टाइमिंग्स के कारण थोड़ा ठीक दिखता है. कहानी ये है कि एक न्यूज पेपर मशीनघर में काम करने वाले नंदन यानी कुणाल खेमू को रात में घर लौटते वक्त एक सूटकेस मिलता है. सूटकेस पैसों से भरा हुआ. वो किसी तरह उसे लेकर घर पहुंचते हैं और अपनी आम जिंदगी को खास बनाने में जुट जाते हैं. इधर जिसके पैसे हैं, जिसका बैग है वो भी इसके पीछे लग जाते हैं. नेता, पुलिस, गुंडे सब मिलाकर पूरी खिचड़ी और हंसी का तड़का. फिल्म की कहानी इतनी सी है. सूटकेस से नंदन का प्यार और आम आदमी की कहानी ही फिल्म की कहानी की अहम कड़ी है.

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एक्टिंग

फिल्म में एक्टिंग की बात करें तो सबने अपना-अपना काम किया है. हल्की कॉमेडी के साथ कुणाल खेमू नॉर्मल ही दिखे हैं. कहानी उनके आसपास घूमती है पर कोई चौंकाने वाली एक्टिंग नहीं है. उनकी जोड़ी रसिका दुग्गल के साथ है. रसिका की एक्टिंग ठीकठाक है, वे सिर्फ एक हाउसवाइफ के किरदार में हैं. फिल्म में एक्टिंग का बड़ा बोझ गजराज राव, विजयराज और रणवीर शौरी के कंधों पर है. और वे इसे ठीक निभाते हैं. खासकर गजराज राव की एक्टिंग फिल्म दर फिल्म खिलती जा रही है. यहां उनका रोल एक भ्रष्ट नेता का है और वे इसे बहुत ही संजीदगी से निभाते हैं. उनके कुछ सीन में कॉमेडी का सिंपल इनपुट प्रभाव छोड़ता है.

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डायरेक्शन

फिल्म के डायरेक्शन की बात करें तो शुरुआत काफी अच्छी होती है. खासकर नंदन कुमार को जिस वक्त सूटकेस मिलता है. यहां कुछ सीन में कैमरे का भी कमाल दिखाया गया है. हालांकि, शुरू होने के बाद कहानी को स्थापित करने के लिए डायरेक्टर राजेश कृष्णनन सीन दर सीन इसे यहां वहां रखते हैं जो कि थोड़ा उबाऊ होता है. बाकी डायरेक्शन भी ठीक ही कहा जा सकता है. स्टोरीलाइन ही कोई ऐसी बड़ी नहीं है कि आप कुछ ज्यादा मेहनत कर पाएं. इस टॉपिक पर बॉलीवुड में कई फिल्में बन चुकी हैं.

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फिल्म देखें या नहीं

फिल्म ठीकठाक है और आपके भी 2 घंटे 11 मिनट हंसी-मजाक के साथ बीत जाएंगे. फिल्म में कोई बहुत क्लाइमैक्स नहीं है जिसके लिए आपको टेंशन लेनी हो, यानी आप घर में फैमिली के साथ चाय नाश्ता करते, खाना बनाते हुए भी देख सकते हैं, कुछ मिस नहीं होगा. वीकेंड में रिलीज हुई तो लोगों के पास घरों में वक्त भी होगा.

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