scorecardresearch
 

Mahabharat 13th May Episode Update: युधिष्टर बने हस्तिनापुर के युवराज, शिशुपाल से होने जा रहा रुक्मिणी का विवाह

युधिष्ठिर और दुर्योधन में से किसे बनाया जाए हस्तिनापुर का युवराज. इस बात को लेकर चिंतित हैं धृतराष्ट्र. वहीं मगध में चल रही है राजकुमारी रुक्मिणी की शिशुपाल और श्रीकृष्ण से शादी की बात. जानिए क्या हुआ महाभारत के लेटेस्ट एपिसोड में.

Advertisement
X
युधिष्ठिर के रोल में गजेन्द्र चौहान
युधिष्ठिर के रोल में गजेन्द्र चौहान

Advertisement

बी आर चोपड़ा की महाभारत में रोज कुछ न कुछ नया देखने को मिल रहा है. रंगभूमि में पांडवों और कौरवों ने अपनी-अपनी योग्यता दिखाई थी. अब बारी है धृतराष्ट्र की जो हस्तिनापुर के युवराज की घोषणा करेंगे. आइए बताएं बुधवार शाम शो में क्या हुआ.

राजसिंघासन के लिए खींचातानी

हस्तिनापुर में भीष्म धृतराष्ट्र से पूछते हैं कि हस्तिनापुर को उसका युवराज देने में देरी क्यों हो रही है? इसपर धृतराष्ट्र को शकुनि जवाब देते हैं. क्रोधित होकर भीष्म धृतराष्ट से कहते हैं कि राजनीति का आधार पुत्र कल्याण नहीं बल्कि जन कल्याण है. इसे ध्यान में रखते हुए ही हस्तिनापुर के युवराज का चयन करें. तभी एक गुप्तचर ने उन्हें बताया कि पूरा हस्तिनापुर चाहता है कि युधिष्टर ही युवराज बने. अगर दुर्योधन को बनाया तो पूरी प्रजा उनपर क्रोध जताएगी. ये जानकर शकुनि ने दुर्योधन को भड़काना शुरू कर दिया और कहा, 'अपने पिता से अपना अधिकार मांगो और ना मिले तो अपना अधिकार छीन लो.'

Advertisement

दुर्योधन ने महाराज धृतराष्ट्र और गांधारी के सामने अपने अधिकार को लेकर जो क्रोध दिखाया. इस बात से उन्हें ये बात साफ हो गई कि दुर्योधन राजसिंघासन के लिए युद्ध लड़ने के लिए तैयार है. राजसिंघासन की समस्या का समाधान पाने के लिए धृतराष्ट ने सबके सामने अपने और दुर्योधन के प्रश्न रखे. दुर्योधन के प्रश्न को निराधार बताते हुए विदुर ने कहा, 'पुत्र केवल पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी होता है और हस्तिनापुर आपकी संपत्ति नहीं है. इसलिए हस्तिनापुर के राजसिंघासन का असली उत्तराधिकारी पांडु पुत्र युधिष्टर है.' अब बस इंतजार है अगली सुबह का जहां खुली सभा में हस्तिनापुर का युवराज घोषित किया जाएगा.

वहां दुर्योधन इस बात से चिंतित है कि कहीं जनसमुदाय-कृपाचार्य और द्रोणाचार्य की बातों में आकर महाराज धृतराष्ट्र, युधिष्टर को युवराज ना घोषित कर दें. तो वहीं धृतराष्ट भी परेशान होते हैं. एक तरफ पिता का मोह तो दूसरी तरफ राजनीति, जो ये कहती है की युधिष्टर ही हस्तिनापुर का युवराज है.

युधिष्टर बने हस्तिनापुर के युवराज

अगले दिन खुली सभा का आरम्भ हुआ. वहां चार बंदी लाए गए, जिन्होंने किसी की हत्याकर अपना जुर्म स्वीकार किया. महाराज धृतराष्ट्र उन बंदियों को सजा सुनाने ही वाले थे कि विदुर ने क्षमा मांगते हुए उन्हें रोका और कहा, 'आज तो महाराज दोनों जेष्ठ राजकुमारों में से किसी एक को युवराज नियुक्त करने जा ही रहे हैं. तो आज उन्हीं को न्याय करने का अवसर प्रदान किया जाए. महारज और पूरा जनसमुदाय राजकुमारों की योग्यता भी देख ले.'

Advertisement

इसपर दुर्योधन न्याय देने के लिए सबसे पहले खड़ा हो गया और उसने उन चारों बंदियों को मृत्युदंड दिया. कर्ण-शकुनि और कौरवों ने दुर्योधन की जय जयकार लगाई. फिर युधिष्टर को न्याय करने का अवसर मिला. उसने दंड देने से पहले अपराधियों से उनकी जाति पूछी और फिर न्याय की नियमों का पालन करते हुए चारों अपराधियों को अलग-अलग दंड सुनाया. चारों तरफ युधिष्टर की जय जयकार होने लगी. उसके बाद धृतराष्ट्र ने ना चाहते हुए भी, खुली सभा में हस्तिनापुर के युवराज की घोषणा की और भीष्म से कहा, 'मैं ताताश्री से ये प्रार्थना करता हूं कि वो शंख बजाकर, जेष्ठ पाण्डु पुत्र युधिष्टर को युवराज बनाने की घोषणा कर दें.'

युधिष्टर ने महाराज धृतराष्ट्र का आशीर्वाद लिया और दुर्योधन चिढ़कर सभा से उठकर चला गया.

जरासंद का नया पांसा, रुक्मणि का शिशुपाल से विवाह

मगध नरेश जरासंध विदर्भ नरेश भीस्मक से मिलने आते हैं. भीस्मक अपने पुत्र रुक्मी को जरासंध का स्वागत करने का आदेश देता है. जरासंध का यहां आने का एक ही मकसद है भीस्मक की पुत्री रुक्मणि और छेदी के राजकुमार शिशुपाल का स्वयंवर रचाना. जरासंध ये प्रस्ताव देता ही है कि तभी वहां भीस्मक का दूसरा पुत्र रुक्मिन आ गया, जिसने अपनी बहन के गुणों को गिनाते हुए अपने पिता से आग्रह किया कि रुक्मणि का विवाह वासुदेव पुत्र श्री कृष्ण से होना चाहिए.

Advertisement

भीस्मक ने रुक्मिन की सोच को स्वीकार ना करते हुए जरासंध का प्रस्ताव स्वीकार का लिया. जरासंध ने शिशुपाल के नाम आमंत्रण पत्र लिखा और शिशुपाल तक पहुंचाने के लिए एकलव्य को दे दिया. छेदी राज्य पहुंचकर एकलव्य ने शिशुपाल को बताया कि रुक्मणि का स्वयंवर होने वाला है, इसलिए वहां वीरों और महावीरों को आमंत्रित किया जा रहा है. लेकिन वहां विदर्भ में रुक्मणि अपनी मदद के लिए श्री कृष्ण को पत्र लिखती हैं. वो बताती हैं कि उसके पिता भीष्मक और राजकुमार रुक्मी शिशुपाल से विवाह करने के लिए उसपर दबाव डाल रहे हैं. ये पत्र पढ़कर श्री कृष्ण विदर्भ जाने की तैयारी शुरू कर देते हैं.

Advertisement
Advertisement