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Manto Review: सही मायने में बायोपिक है नवाजुद्दीन की यह फिल्म

नवाजुद्दीन सिद्दीकी स्टारर फिल्म मंटो को असल मायने में एक बायोपिक फिल्म कहा जा सकता है. हालांकि निर्देशक नंदिता दास ने फिल्म में मंटो के जीवन के सिर्फ 4 सालों को ही दिखाया है.

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फिल्म मंटो का पोस्टर
फिल्म मंटो का पोस्टर

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फिल्म का नाम: मंटो

डायरेक्टर: नंदिता दास

स्टार कास्ट: नवाजुद्दीन सिद्दीकी ,रसिका दुग्गल, ताहिर राज भसीन, ऋषि कपूर, दिव्या दत्ता, रणवीर शौरी, नीरज कबि, जावेद अख्तर

अवधि: 1 घंटा 56 मिनट

सर्टिफिकेट: U/A

रेटिंग: 3.5 स्टार

अभिनेत्री और निर्देशक नंदिता दास की फिल्मों का चयन हमेशा से ही बहुत हटकर रहा है. उन्होंने फिल्म फिराक के साथ डायरेक्शन की दुनिया में कदम रखा था. इस बार नंदिता ने उर्दू शायर और नामचीन शख्सियत सआदत हसन मंटो के जीवन के ऊपर फिल्म बनाने का प्रयास किया है और अच्छी रिसर्च के साथ उनके जीवन के चार साल को नंदिता ने दर्शाने की कोशिश की है, जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी लीड रोल में दिखाई देने वाले हैं, आइए जानते हैं कैसी बनी है यह फिल्म -

कहानी:-

फिल्म की कहानी 1946 के बॉम्बे (अब मुंबई) से शुरू होती है जहां उर्दू शायर और राइटर सआदत हसन मंटो (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) अपनी पत्नी सफिया (रसिका दुग्गल) और बेटी निधि के साथ रहता है, मंटो का ख्याल हमेशा से ही सबसे जुड़ा है, जिसकी वजह से कभी उसकी फिल्म के प्रोड्यूसर (ऋषि कपूर) से जिरह हो जाती है तो कभी फिल्म इंडस्ट्री के दोस्तों के साथ अनबन हो जाया करती है.

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इतना ही नहीं राइटर ग्रुप के दोस्तों जैसे इस्मत चुगताई (राजश्री देशपांडे) से भी इनका अंदाज जुदा रहता है, इस्मत और मंटो के ऊपर लेखन के माध्यम से लाहौर में अश्लीलता फैलाने का केस चल रहा होता है, उसी दौरान भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हो जाता है, जिसकी वजह से बॉम्बे को बेइंतेहा प्यार करने वाले मंटो को अपने दोस्त और सुपरस्टार श्याम (ताहिर राज भसीन) से बिछड़ करके पाकिस्तान जाना पड़ता है. पाकिस्तान में मंटो को अपने लिखे गए ठंडा गोश्त कहानी के लिए केस झेलना पड़ता है और अंततः कहानी में कुछ ट्विस्ट आते हैं जिन्हे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

फिल्म को क्यों देख सकते हैं?

फिल्म की कहानी और उसे दर्शाने का ढंग बेहद दिलचस्प है, 40 के दशक को नंदिता दास ने उस समय प्रयोग में आने वाले उपकरणों और वेशभूषा के साथ साथ छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखते हुए दिखाया है. नंदिता ने मंटो के जीवन के सिर्फ चार सालों को लगभग 2 घंटे की इस फिल्म में दर्शाया है, जिसमें मंटो की सोच और रहन-सहन के ढंग को बखूबी देखा जा सकता है.

जो लोग मंटो के बारे में जानते हैं, उन्हें यह फिल्म बहुत अच्छी लगेगी, हालांकि जिन्हें उनके बारे में नहीं पता है, उनके लिए भी यह फिल्म एक सही बायोपिक के रूप में परोसी गयी है, जहां कुछ भी अधिकता में नहीं पेश किया गया है. अभिनय के लिहाज से नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने मंटो का किरदार बेहतरीन ढंग से निभाया है और उन्हें देखकर लगता है की आखिरकार मंटो का मिजाज कैसा रहा होगा.

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वहीँ रसिका दुग्गल ने मंटो की पत्नी के रूप में बहुत बढ़िया काम किया है, इसके अलावा ताहिर राज भसीन ने सहज अभिनय किया है. फिल्म में मंटो की कहानियों को किरदारों के माध्यम से भी दिखाया गया है जिसमें दिव्या दत्ता, रणवीर शोरी, ऋषि कपूर, जावेद अख्तर, नीरज कबि जैसे अभिनेता दिखाई देते हैं. फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर बढ़िया है और जिन लोगों को सआदत अली मंटो की रचनाएं पसंद है, या जो उनकी जिंदगी के बारे में जानना चाहते हैं, उन्हें ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए.

कमज़ोर कड़ियाँ

फिल्म की कमजोर कड़ी शायद इसकी शुरुआत है, जिससे वो लोग इत्तेफाक नहीं रख पाएंगे, जो मंटो को बिल्कुल नहीं जानते, क्योंकि फिल्म में कई ऐसे किरदार हैं जो 40  और 50 के दशक में काफी मशहूर रहे हैं, और शायद उन लोगों को फिल्म समझ पाने में मुश्किल आये, बेहतर होगा वो मंटो के बारे में थोड़ा पढ़कर ही थिएटर जाएं. इसके साथ ही अगर आप मसालेदार ताबड़तोड़ हंसी मजाक और कॉमेडी पांच से भरपूर मनोरंज करने वाली फिल्म की तलाश में हैं तो शायद ये फिल्म आपके लिए नहीं बनी हैं .

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बॉक्स ऑफिस :

फिल्म हालांकि कम बजट में बनायी गयी है और पहले से ही स्टूडियो का बैकअप भी है, इसे फिल्म फेस्टिवल्स में बेहद सराहा जाएगा लेकिन फिल्म देखने वाली जनता को थिएटर तक ला पाने में मेकर्स को मशक्कत करनी पड़ सकती है. लेकिन अपने सब्जेक्ट के हिसाब से फिल्म बढ़िया है, कमाई में कमजोर हो सकती है.

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