मिथुन 26 वर्ष
जब आसपास पहले से ही स्थापित संगीतकार बेहतर कर रहे हों तो ऐसे में किसी नए मौसिकीकार के लिए जगह बनाना मुश्किल होता है. उन्होंने कलयुग फिल्म में डिंगल सांग से शुरुआत की. और फिर पूरी फिल्में करने लगे. वे अपने संगीत को अंतस्थ करके फिर उसे साजों के जरिए पेश करते हैं.
यही वजह है कि उनकी धुनें श्रोता के एहसास को गहरे तक प्रभावित करती हैं. उनका परिवार तो पीढ़ियों से संगीत के क्षेत्र में सक्रिय है. फिल्म संगीत चुनने वाली यह उनकी तीसरी पीढ़ी है. दादा पं. रामप्रसाद शर्मा जाने-माने संगीत शिक्षक और पिता नरेश शर्मा पार्श्व संगीत निर्देशक रहे हैं. उनके ताऊ प्यारेलाल को कौन नहीं जानता.
पांव पालने में: सोलह साल की उम्र में ही वे पिताजी के आर्केस्ट्रा में बतौर कीबोर्ड प्लेयर आ जुड़े थे. देश के शीर्ष जाज पियानोवादक टॉनी पिंटो से उन्होंने तालीम ली और उस्ताद नसीर कादरी से गायिकी की युक्तियां सीखीं.
ताजा सनसनीः पिछले दिनों मर्डर-2 का उनका संगीत हाथोहाथ बिक गया. उनकी कुछ चर्चित धुनों में शुमार हैं ऐ खुदा (मर्डर-2), रहमत .जरा (लम्हा) और मौला मेरे मौला (अनवर).
भविष्य का चेहराः क्योंकि उन्होंने समझ लिया है कि राज तो अंततः मेलोडी ही करती है. उन्हें यह भी पता चल चुका है कि उनके संगीत वाली फिल्में भले न चलें पर उनका संगीत हिट हो जाता है.
''मेरा मानना है कि संगीत खुदा का दिया उपहार है.''
लम्हा के उनके संगीत को हमने पहले ही जान लिया था कि यह हिट होगा.
क्षितिज तारे, गायक