तेलुगू फिल्म अर्जुन रेड्डी के बॉलीवुड रीमेक कबीर सिंह ने अपनी रिलीज के एक हफ्ते के अंदर ही 100 करोड़ से अधिक की कमाई कर ली है. हालांकि, इसके साथ ही फिल्म के लीड किरदार कबीर सिंह कई फेमिनिस्ट्स की आंख की किरकिरी बन गए हैं. फेमिनिस्ट्स ग्रुप्स में फिल्म की इस बात को लेकर आलोचना हो रही है कि कबीर सिंह का रवैया अपनी गर्लफ्रेंड के प्रति बेहद रिग्रेसिव है और इस कैरेक्टर के सहारे नारी द्वेषी सोच को प्रमोट करने की कोशिश हो रही है. ये भी आरोप लग रहे हैं कि कबीर सिंह जैसे बिहेवियर को प्रमोट करने की कोशिश की जा रही है और उसके गुस्सैल, रिग्रेसिव माइंडसेट को सिर्फ इसलिए इग्नोर कर दिया जाता है क्योंकि वो एक टॉपर है.
ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हो चुकी है, हालांकि ये कई सोशल ग्रुप्स के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है. सोशल मीडिया पर आज के दौर में इस तरह के व्यवहार पर महिलाएं भले विरोध दर्ज करा रही हों लेकिन इंडिया टुडे डाटा इंटेलीजेंस यूनिट ने पाया है कि पुरूषों से ज्यादा महिलाएं ही कबीर सिंह जैसे किरदारों को रियल लाइफ में जायज ठहराती हैं.
2015-16 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4) के डाटा के अनुसार, 15-49 आयु वर्ग की 51 प्रतिशत महिलाओं को लगता है कि एक पति का सात वजहों से अपनी पत्नी को पीटना उचित है. वहीं 42 प्रतिशत पुरुष पत्नी के खिलाफ हिंसा को जायज ठहराते हैं.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के डाटा के अनुसार, महिलाओं की उनके पतियों की ओर से हिंसा को जायज ठहराने के आंकड़े 2005-06 के बाद से ज्यादा नहीं सुधरे हैं. सर्वे में पाया गया कि 2005-06 में 54 प्रतिशत महिलाओं ने पति द्वारा अपनी पत्नियों के साथ हिंसा को जायज माना था जो 2015-16 में घटकर 51 प्रतिशत हो गया है. इसके विपरीत, पुरुषों की संख्या में 9 प्रतिशत की गिरावट आई है, जो अपनी पत्नी के खिलाफ हिंसा को सही ठहराते हैं. जबकि 2005-06 में, कुछ 51 प्रतिशत पुरुषों ने माना कि अपनी पत्नी को पीटना सही है, 10 साल बाद यह संख्या घटकर 42 प्रतिशत रह गई.
आखिर वे क्यों सोचती हैं कि पति की हिंसा जायज है ?
ये सात वजहें जिसमें पत्नी को पीटना जायज ठहराया गया है वो हैं - सास-ससुर का अनादर करना, पति को बीवी पर बेवफाई का शक होना, खाना ढंग से ना बनाना, पति के साथ बहस करना, पति को बिना बताए घर से निकलना, बच्चों या घर की देखभाल ना करना और पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से मना करना जैसे कारण शामिल हैं.
इन सात वजहों में सबसे बड़ा कारण सास-ससुर के प्रति अनादर दिखाना माना गया है. इसे लेकर कई महिलाओं और पुरूषों ने पत्नियों के खिलाफ हिंसा को जायज ठहराया है. जहां 37 प्रतिशत महिलाएं मानती हैं कि सास ससुर का अनादर करने पर पति का पत्नी को पीटना सही है वही 29 प्रतिशत मर्दों ने घरवालों की बेइज्जती करने पर पत्नी को पीटना सही माना है.
इस सर्वे में पत्नी के खिलाफ हिंसा का दूसरा सबसे बड़ा कारण घर की अनदेखी या बच्चों की देखभाल ना करना है. 33 प्रतिशत महिलाएं ऐसी थीं जिन्होंने माना कि घर-परिवार और बच्चों की देखभाल ना करने पर पत्नियों को पीटना ठीक है वही इस मामले में केवल 20 प्रतिशत पुरूषों ने पत्नी के खिलाफ हिंसा को सही ठहराया है.
पत्नी पर शक होना, पति को बिना बताए घर चले जाना और बहस करना भी कुछ ऐसे कारण थे जो पत्नी के साथ घरेलू हिंसा के लिए महिलाओं और पुरूषों द्वारा सही ठहराए गए हैं. पति के साथ शारीरिक संबंध से मना करने पर महिला हिंसा की हकदार हो जाती है ? इस मामले में ज्यादातर पुरूषों और महिलाओं ने घरेलू हिंसा को गलत बताया है. पुरूषों के मामले में ये संख्या नेगेटिव में चली जाती है. 9 प्रतिशत पुरूषों ने माना कि ऐसे केस में महिला के साथ घरेलू हिंसा होनी चाहिए वही 13 प्रतिशत मानती हैं कि पत्नियां अगर पति के साथ संबंध बनाने से मना करती हैं तो वे हिंसा की हकदार है.
किस वजह के चलते पुरूष अपनी पत्नियों को पीटते हैं ?
- जितना अधिक नशे में पति, पत्नी के खिलाफ उतनी ही अधिक हिंसा
पति जितनी ज्यादा शराब पीता है उतनी ही पत्नी को हिंसा झेलनी पड़ती है. कबीर सिंह का किरदार एक शराबी है लेकिन वो शराब पीने के बाद अपनी पत्नी को नहीं मारता है. हालांकि, भारत की ज्यादातर महिलाओं की स्थिति इतनी बेहतर नहीं है. शराब पीने और घरेलू हिंसा में भी काफी करीबी संबंध देखने को मिला है. केवल 22 प्रतिशत महिलाएं ऐसी थीं जिनके पति शराब नहीं पीते हैं लेकिन फिर भी उन्होंने घरेलू हिंसा झेली है. पति के शराब पीने की आदत के हिसाब से घरेलू हिंसा में कमी या बढ़ोतरी देखने को मिलती है. 77 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा है और इन महिलाओं के पति अक्सर शराब पीते हैं.
- कम पढ़ी लिखी, कम बेहतर आर्थिक स्थिति की महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की संभावना होती है ज्यादा
एनएफएचएस -4 की रिपोर्ट साफ करती है कि महिला का सोशल स्टेट्स जितना बेहतर है उसके साथ घरेलू हिंसा की संभावना उतनी ही कम होती है. पढ़ी-लिखी और आर्थिक रूप से संपन्न महिलाओं को कम पढ़ी-लिखी और गरीब महिलाओं की तुलना में कम घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है.
जिन महिलाओं ने बारहवीं तक की पढ़ाई की हैं, ऐसी 18-19 प्रतिशत महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा है वहीं अपने जीवन में कभी स्कूल ना जाने वाली 41.3 प्रतिशत महिलाओं ने घरेलू हिंसा झेली है फिर वो शारीरिक हिंसा हो, मानसिक हो, सेक्शुएल या इमोशनल हिंसा.
पति से डरती-घबराती महिलाओं और घरेलू हिंसा का भी काफी गहरा संबंध है. इस सर्वे के अनुसार, जो महिलाएं अपने पति से बेहद डरती हैं, उनके साथ घरेलू हिंसा होने की संभावना 58 प्रतिशत अधिक होती है वहीं जिन महिलाओं ने कभी अपने पति से पिटने का खौफ नहीं खाया है, ऐसी 32 प्रतिशत महिलाओं के साथ ही घरेलू हिंसा की संभावना होती है.
पत्नियों के रोजगार का मुद्दा
इस सर्वे में सामने आया कि पत्नियों की नौकरियों से बहुत ज्यादा पुरूष खुश नहीं होते हैं और नौकरी पेशा महिलाओं को अनपढ़ महिलाओं के मुकाबले घरेलू हिंसा झेलने की संभावना ज्यादा होती है. सर्वे के नतीज़ों के अनुसार, 39 प्रतिशत नौकरी पेशा महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की संभावना ज्यादा होती है वहीं अनपढ़ महिला के लिए ये आंकड़ा 26 प्रतिशत रह जाता है.