मूवी रिव्यू: कृष 3
डायरेक्टर: राकेश रोशन
एक्टर: ऋतिक रोशन, प्रियंका चोपड़ा, कंगना रनावत, विवेक ओबराय
ड्यूरेशन: 2 घंटे 32 मिनट
पांच में से साढ़े तीन स्टार
कृष एक सोच का नाम है. इसके पीछे दिमाग है डायरेक्टर राकेश रोशन का और शरीर है ऋतिक रोशन का. और इन दोनों की जुगलबंदी में यह मसाला और मनोरंजक फिल्म खूब बन पड़ी है. उम्मीद है कि दीवाली के पहले बॉक्स ऑफिस पर जो सूखा बेशरम और बॉस के बकवास होने के चलते पड़ा था, वो धड़ाम हो जाएगा.
कृष 3 की शुरुआत में होता है रिकैप. एक साइंटिस्ट पिता और होममेकर मां का बेटा रोहित, जो चोट के चलते शारीरिक रूप से तो बड़ा होता है. मगर दिमागी तौर पर नहीं. दुनिया से हैरान और परेशान रोहित को मदद मिलती है धूप से चलते क्यूट नीले जादू से.
सेकंड पार्ट में हमने देखा कि रोहित का बेटा कृष्णा जो अपने सुपर अवतार में कृष के तौर पर सामने आता है, एक और विलेन को निपटाता है और प्रिया के रूप में अपनी प्रियतमा को भी पाता है. तो फिर थर्ट पार्ट में क्या होता है. एक और विलेम भाईसाहब प्रकट होते हैं. नाम है काल. उनको है एक बीमारी, जिसकी वजह से सिर्फ सिर और दो अंगुलियां हरकत में हैं. बाकी धड़ निश्चल है. ये रूप हमें महान भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिन्स की याद दिलाता है. बस याद ही दिलाता है क्योंकि काल कमजर्फ इंसान है और दुनिया की बरबादी पर हंसता है. उसके सामने है हमारा सुपर हीरो कृष जो अपने पिता रोहित और पत्नी प्रिया के साथ सेट हो चुका है और छोटी मोटी मुश्किलों को मार भगाता है. काल की टीम की बात करें तो उसने शारीरिक अपंगता के बावजूद अपने तेज दिमाग और विज्ञान के बलबूले मानवर (मावन प्लस जानवर) बना दिए हैं. इनमें सबसे खास है काया, जो इंसान और गिरगिट का मिला जुला रूप है. यानी उसमें कई ताकत हैं और वह मनचाहा रूप बदल सकती है. एक जीभ वाला मानवर भी है, जिसे हम ट्रेलर में देख देख पर्याप्त उदरस्थ कर चुके हैं. फिल्म में होता है काल और कृष में मुकाबला.
फिल्म ऋतिक रोशन के मजबूत कंधों पर टिकी है और वह इस दायित्व को बखूबी निभाते हैं. दर्शकों को वह अपने माचो अवतार कृष में तो लुभाते ही हैं, जीभ को कुछ दबाकर बोलने वाले रोहित के रूप में भी एक किरदार की वापसी अच्छी लगती है. वही पहली फिल्म का जादू सा पैदा होता लगता है.प्रियंका चोपड़ा के हिस्से करने को ज्यादा कुछ था नहीं और जितना था, उसे उन्होंने ठीक ठाक निभाया.फिल्म के सरप्राइज एलिमेंट हैं काया के रोल में कंगना रनावत और काल को ताल देते विवेक ओबराय. कंगना के लिए फिल्म में लीड हीरोइन प्रियंका से ज्यादा गुंजाइश थी और इसे उन्होंने बखूबी भुनाया. गिरगिट की तरह उनका किरदार भी 180 डिग्री पर घूमता है और इस दौरान कहीं से भी असहज भाव नहीं आते.विवेक ओबराय, जिन पर कैमरा जब ठहरा, चेहरे पर ही ठहरा, वजह उनका किरदार, हमें एक बार फिर आश्वस्त करते हैं कि साथिया को एक्टिंग आती है, बस सही फिल्मों का चुनाव नहीं हो पा रहा है.इसके अलावा फिल्म में राजपाल यादव भी एक छोटे से रोल में हैं, जिसमें वह चुटकी भर अमचूर पाउडर की तरह जीभ पर गुदगदी छोड़ता अभिनय कर ले जाते हैं.
फिल्म की कहानी में एक्शन और इमोशन का मिक्सचर है और यह पूरी तरह से एंटरटेनमेंट और इंडियन ऑडियंस के टेस्ट को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है. एडिटिंग टाइट है, इसलिए फिल्म की गति बरकरार रहती है और कहीं भी बोरियत महसूस नहीं होती.
कृष 3 का एक और शानदार पहलू है, इसके एक्शन और स्पेशल इफेक्ट्स. लगता ही नहीं कि कोई भारतीय फिल्म देख रहे हैं. शुरुआत में प्लेन की लैंडिग के दौरान कृष के कमाल से लेकर काल की टीम और फिर आखिर में काल से भिड़ंत तक सब कुछ हमें सीट पर चिपकाए रखता है.
फिल्म का कमजोर पक्ष हैं इसके गाने. बताया जाता था कि डायरेक्टर राकेश रोशन के संगीतकार भाई राजेश रोशन अपना बेस्ट भइया के लिए बचाकर रखते हैं. लगता है कि ये बेस्ट पहले ही खर्च हो चुका है और अब जो खुरचन बची है, वह नितांत बासी है. रघुपति राघव राजाराम गाना याद रहता है तो बस ऋतिक के कुछ ऐसे शानदार मूव्स के लिए, जिन्हें लौंडे देखने के बाद अगली डांस पार्टी या आने वाले शादी सीजन में घनघोर ढंग से गिरा देंगे निरंतर अभ्यास के बाद. दूसरा गाना दिल...कैमरे की लचक और साइट सीन के लिहाज से ही मेमरी बैंक में कुछ केबी की जगह पाता है. तीसरा गाना गॉड अल्लाह ईश्वर निहायत ही बकवास है और फिल्म में इकलौता प्योर ऊंघ मोमेंट मुहैया कराता है.
कृष 3 देखिए, अगर आपको लगता है कि उन सब लोगों के अंदर एक सुपरहीरो है, जो दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए काम करते हैं. बच्चों के लिहाज से अच्छा दीवाली पैकेज है ये जिसमें कुछ भी वल्गर या ओवर नहीं है. न रोमांस ज्यादा ऊंह आंह करता है, न एक्शन ज्यादा खून खच्चर से लबरेज है. ये एक परफेक्ट मसाला फिल्म है, जो अच्छी फैमिली एंटरटेनर साबित होगी.