विशाल भारद्वाज शेक्सपियर की कई बड़ी रचनाओं को परदे के लिए उम्दा ढंग से रूपांतरित कर चुके हैं. 7 खून माफ को देखने के बाद पता चलता है कि उन्हें भी हॉलीवुड के स्क्रीनप्लेराइटर मैथ्यू रॉबिंस की जरूरत क्यों पड़ी.

"/> विशाल भारद्वाज शेक्सपियर की कई बड़ी रचनाओं को परदे के लिए उम्दा ढंग से रूपांतरित कर चुके हैं. 7 खून माफ को देखने के बाद पता चलता है कि उन्हें भी हॉलीवुड के स्क्रीनप्लेराइटर मैथ्यू रॉबिंस की जरूरत क्यों पड़ी.

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सात खून माफ: इतनी आसान नहीं

निर्देशकः विशाल भारद्वाजकलाकारः प्रियंका चोपड़ा, नील नितिन मुकेश, जॉन अब्राहम, इरफान, नसीरुद्दीन शाह, अन्नू कपूरविशाल भारद्वाज शेक्सपियर की कई बड़ी रचनाओं को परदे के लिए उम्दा ढंग से रूपांतरित कर चुके हैं. 7 खून माफ को देखने के बाद पता चलता है कि उन्हें भी हॉलीवुड के स्क्रीनप्लेराइटर मैथ्यू रॉबिंस की जरूरत क्यों पड़ी.

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निर्देशकः विशाल भारद्वाज
कलाकारः प्रियंका चोपड़ा, नील नितिन मुकेश, जॉन अब्राहम, इरफान, नसीरुद्दीन शाह, अन्नू कपूर

विशाल भारद्वाज शेक्सपियर की कई बड़ी रचनाओं को परदे के लिए उम्दा ढंग से रूपांतरित कर चुके हैं. 7 खून माफ को देखने के बाद पता चलता है कि उन्हें भी हॉलीवुड के स्क्रीनप्लेराइटर मैथ्यू रॉबिंस की जरूरत क्यों पड़ी.

कई दशकों का सफर करने वाली रस्किन बांड की इस कहानी को देखने लायक बनाना बड़ी चुनौती थी. सुजन्ना शौहरों को एक के बाद एक मारेगी, दर्शक को पहले से पता है. क्यों और कैसे? इसी को दिलचस्प बनानेमें हाथ लगा है रॉबिंस का.

इतने सबके बावजूद यह एक कठिन फिल्म है. कुछ भी उजाले में नहीं घटता यहां. घटनाएं और किरदार सच की बजाए किसी जासूसी किस्से का हिस्सा ज्‍यादा लगते हैं. वे हंसाते, डराते और हैरान करते हैं पर जज्‍बात के स्तर पर बहुत हलचल नहीं मचा पाते. सारे शौहरों के बरताव में एक घुटन भरी असहज कसमसाहट है.

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एक शौहर कीमतलाल (अन्नू कपूर) हैं, जो इस कोहरे को छांटते हैं. वियाग्रा खाकर सु.जन्ना (सुनैना) के साथ सोने के बाद वे गिड़गिड़ाते हैं: ''ऐसा सुख और संतोष, जैसे गंगा नहाकर आया हूं. आपका ये एहसान जिंदगी भर नहीं भूल पाऊंगा.''{mospagebreak}

फिल्म एक सीधी रेखा में चलती है. पर मनुष्य के भीतर की पशुता को जरूर विशाल ने घूमघूमकर पकड़ा है. याद कीजिए, ओमकारा का वह संवाद जब लंगड़ा की बीवी साथ सोने के बाद पूछती हैः ''भीतर जाणवर पाल रखा है का तैणे?''

कला निर्देशन (समीर चंदा) और कैमरावर्क के नजरिए से भी यह गौर करने लायक फिल्म है. मजबूत स्त्री किरदारों वाली फिल्में अब दुर्लभ ही हैं. और प्रियंका ने इसमौके को यादगार बना लिया है.

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