रीमिक्स के दौर में पुराना गीत संगीत नये रूप में लोकप्रिय हो रहा है, लेकिन जिंदादिली, रोमांस, अनाड़ीपन से लेकर मायूसी तक के हर भाव को अपनी आवाज से जीवंत बना देने वाले मुकेश के गीत सर्वकालिक हैं और आज भी उनकी आवाज पसंद किए जाते हैं.
शौकिया गायन ने बदल दी किस्मत
मुकेश के पुत्र नितिन मुकेश ने बताया कि मुकेश शौकिया तौर पर गाते थे और गायन को पेशे को तौर पर अपनाने की उनकी कोई योजना नहीं थी. दिल्ली में एक विवाह समारोह में गाए उनके गीतों ने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी. नितिन ने बताया कि उस शादी में मशहूर फिल्म फनकार मोतीलाल भी मौजूद थे. उन्होंने मुकेश को हूबहू के एल सहगल की आवाज और अंदाज में गाते सुना तो उनके गायन से बेहद मुत्तासिर हुए और उन्हें अपने साथ मुंबई चलने को कहा.
‘पहली नजर’ ने दिलाई पहचान
फिल्म ‘पहली नजर’ में अनिल बिस्वास के संगीत निर्देशन में उनका गाया गीत ‘दिल जलता है तो जलने दे, आंसू ने बहा फरियाद न कर’ बेहद लोकप्रिय हुआ और हिन्दी सिनेमा में मुकेश को एक मजबूत पहचान मिल गई.
राजकूपर की आवाज थे मुकेश
इसके बाद मुकेश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक सफलता की कहानियां लिखते चले गए. उन्होंने उस दौर के तमाम बड़े हीरो राजकपूर, देवानंद और दिलीप कुमार को अपनी पुरसोज आवाज दी. हिन्दी फिल्म जगत के सबसे बड़े शो मैन राजकपूर के साथ तो उनकी आवाज इस कदर मेल खाती थी कि उनकी मौत पर राजकपूर ने कहा, ‘मेरी आवाज खामोश हो गई.’ राजकपूर ने कहा, ‘‘मुकेश भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज और उनके गीत हमेशा हमारे जहन में महफूज रहेंगे.’’
अभिनेता बनने की थी चाह
मुकेश का जन्म 22 जुलाई, 1923 को दिल्ली के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. वह बचपन से ही के एल सहगल के बहुत बड़े प्रशंसक थे और हमेशा उनकी तरह गाने की कोशिश किया करते थे. उनकी भारी आवाज उन्हें उनकी इस कोशिश में कामयाब होने में मदद करती थी. 10वीं पास करने के बाद मुकेश ने लोक निर्माण विभाग में नौकरी कर ली, लेकिन उनके गायक मन को नौकरी का बंधन बांध नहीं पाया और सात महीने बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी. वह समारोहों में अकसर गाया करते थे और मित्रों परिचितों में खासे पसंद किए जाते थे. ऐसे ही एक समारोह में मोतीलाल के बुलावे पर वह मुंबई पहुंच गए, लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम है कि शुरू में उन्होंने अभिनेता बनने का प्रयास किया था, लेकिन उनके हाथ की रेखाओं में संगीत में ही मकबूलियत हासिल करना लिखा था.
1945 में मिली पहली सफलता
मुकेश ने हालांकि 1941 में ही हिंदी फिल्मों में पार्श्वगायन शुरू कर दिया था, लेकिन 1945 में आई पहली नजर के ऐतिहासिक गीत ‘दिल जलता है’ से सही मायने में उनके गायन करियर की शुरूआत हुई. इस दौरान उन्होंने ‘निर्दोष’, ‘लग्न मंडप’, ‘मेला’, ‘रसीली’, ‘नील कमल’, ‘जीने दो’ सहित अनेक फिल्मों में गीत गाए.
मुकेश ने लिखी सफलता की नई कहानी
हर गुजरते बरस के साथ मुकेश ने सफलता की नयी कहानी लिखी और ‘आवारा’ फिल्म में ‘आवारा हूं, या गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं’, ‘आह’ में ‘आजा रे अब मेरा दिल पुकारा’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’ में ‘आ अब लौट चलें’, ‘देवर’ में ‘आया है मुझे फिर याद वो जालिम’ और ‘उजाला’ में ‘दुनिया वालों से दूर, जलने वालों से दूर’ जैसे गीत गाए, जो आज भी गाए गुनगुनाए जाते हैं.
फिल्म ‘अनाड़ी’ से मिला पहला फिल्मफेयर
उन्होंने अपने जीवन काल में अपने सर्वकालिक तमाम अभिनेताओं के लिए पार्श्वगायन किया और उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार के अलावा चार बार सर्वश्रेष्ठ गायन के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार से भी नवाजा गया. उन्हें 1959 में पहला फिल्मफेयर ‘अनाड़ी’ फिल्म के उनके गीत ‘सब कुछ सीखा हमने, न सीखी होशियारी’ के लिए दिया गया.
अमेरिका में हुआ निधन
मुकेश का निधन 26 अगस्त 1976 को अमेरिका के डेटरॉयट में हुआ था. मुकेश उस वक्त बॉस्टन के रोटरी क्लब के मानद सदस्य के तौर पर चुने गए थे. उनके इस दौरे में स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर भी साथ में थीं और उनके निधन का दुखद समाचार लता जी ने ही उनके परिजनों तक पहुंचाया था.