ख्यात संगीतकार खय्याम 18 फरवरी, 1927 को जन्मे थे. उन्होंने एक्टर बनने का सपना देखा था, लेकिन किस्मत ने उन्हें नामी संगीतकार बनाया. खय्याम ने 2016 में अपने 90वें जन्मदिन पर 10 करोड़ रुपए की संपत्ति दान कर दी थी. खय्याम का पूरा नाम मोहम्मद जहूर हाशमी है.
खय्याम की दिलचस्पी शुरू से ही संगीत की ओर थी, लेकिन जब दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जोर शोर से सेना में भर्तियां हुईं तो खय्याम ने भी सेना जॉइन कर ली थी. लेकिन दो साल बाद ही उन्होंने ये नौकरी छोड़ दी और एक्टर बनने मुंबई चले गए. उन्हें बतौर एक्टर 1948 में एसडी नारंग की फिल्म 'ये है जिंदगी' में मौका मिला, लेकिन इसके बाद फिर किसी फिल्म में उन्होंने एक्टिंग नहीं की. खय्याम ने पहली बार फ़िल्म 'हीर रांझा' में संगीत दिया लेकिन मोहम्मद रफ़ी के गीत 'अकेले में वह घबराते तो होंगे' से उन्हें पहचान मिली. फ़िल्म 'शोला और शबनम' ने उन्हें संगीतकार के रूप में स्थापित कर दिया.
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खय्याम ने कहते है कि 'पाकीज़ा' की सफलता के बाद 'उमराव जान' का संगीत बनाते समय उन्हें बहुत डर लग रहा था. पाकीज़ा और उमराव जान की पृष्ठभूमि एक जैसी थी. खय्याम की मेहनत रंग लाई और 1982 में रिलीज हुई मुज़फ़्फ़र अली की 'उमराव जान' बेहद कामयाब रही. ख़य्याम मानते हैं कि रेखा ने उनके संगीत में जान डाल दी थी. उनके अभिनय को देखकर लगता है कि रेखा पिछले जन्म में उमराव जान ही थी.
खय्याम तीन बार फिल्मफेयर सम्मान मिला. सबसे पहले 1977 में कभी कभी के लिए, फिर 1982 में उमराव जान के लिए. 2010 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया. 2011 में खय्याम को पद्म भूषण से भी नवाजा गया.