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मुकाबले से ज्‍यादा संगीत को तवज्‍जो मिले

नई पीढ़ी अब प्रोफेशनल हो गई है. वह बाजार, कीमत और कामयाबी को ध्यान में रख रही है.

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हमेशा से मैंने यही सीखा और माना है कि नई पीढ़ी जब आगे आती है तो कुछ बदलाव खुद-ब-खुद महसूस होने लगते हैं. घर से लेकर किसी भी क्षेत्र में यह बात लागू होती है. संगीत की दुनिया के लिए यह कुदरती कानून भला अलग कैसे हो सकता है. खास तौर पर जब मैं फिल्मी संगीत की दुनिया को देखती हूं तो मुझे सबसे बड़ा फर्क महसूस होता है. हमारे वक्त में गायकों को कुछ खोने का डर नहीं रहता था और संगीतकारों का हम भगवान की तरह सम्मान करते थे.

इस नई पीढ़ी के गायकों में यह डर जरूर रहता है कि कहीं उनका गाना किसी और को न मिल जाए. साथ में यह भी कहना चाहूंगी कि यही डर उनको आगे बढ़ने का रास्ता भी देता है क्योंकि अपना गाना पक्का करने के लिए वे बहुत ज्‍यादा मेहनत करते हैं. ऐसा नहीं कि पहले के गायकों में मेहनत की कोई कमी हुआ करती थी. पर हमारी पीढ़ी ने जिस तरह से अपने गानों को एंज्‍वाय किया, उसकी कमी इस पीढ़ी में जरूर महसूस होती है. हालांकि प्रतिभा में वे किसी से कम नहीं.

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नए गायकों में मोहित चौहान और जावेद अली से मैं बहुत प्रभावित हूं. दोनों की आवाज में बहुत दम है और दोनों हर तरह के गानों को बहुत अच्छी तरह से गाते हैं. उनकी आवाज में वेराइटी है. मोहित की आवाज को मस्ती वाले गाने ज्‍यादा जमते हैं. जावेद इमोशनल गीतों को दिल से गाते हैं और समां बांध देते हैं.

नई गायिकाओं में श्वेता पंडित और शिवानी बहुत अच्छा गाती हैं. लेकिन श्रेया घोषाल और सुनिधि चौहान को अगर मैं बहुत सीनियर न मानूं तो कहना चांगी कि अब भी उनकी बराबरी करने वाला कोई नहीं है. श्रेया और सुनिधि नए दौर की पसंद पर हर तरह से खरी उतरी हैं. मुझे तो इसमें संदेह नहीं है कि वे अभी बहुत लंबे समय तक अपनी गायिकी को कायम रखेंगी.

हां, कैलाश खेर के लिए खास तौर पर एक बात कंगी कि उनकी सूफी गायिकी बहुत कमाल की है. लेकिन मेरी अपनी निजी राय है कि उन्हें संगीतकार बनने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. उनको गायिकी पर ज्‍यादा ध्यान देना चाहिए, ताकि और अच्छे से अच्छे गाने उनको मिलें. खेर के संघर्ष और उनकी काबिलियत को मैं महसूस कर सकती हूं.

राहत अली साहब के लिए कुछ कहना मेरे लिए छोटा मुंह बड़ी बात होगी. मैं राजनीति नहीं करती. मगर उनके गाने संगीत की दुनिया के लिए किसी तोहफे से कम नहीं हैं.

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मैं उस दौर को याद करती हूं, जब हमारे संगीत में बिजनेस सब कुछ नहीं होता था. कितनी बार ऐसा होता था कि हमारे नाम की सिफारिश वही गायिका करती थी, जिसे गाने के लिए बुलाया गया.

संगीतकार हमें यह फख्र से बताते थे और ऐसा लगभग सभी करते थे. कभी मुझे लगा कि यह गाना कविता जी (कृष्णमूर्ति) बेहतर गा सकती हैं, तो मैंने उनके नाम को आगे बढ़ाया, कभी उन्होंने या किसी और सिंगर ने मेरे नाम को आगे बढ़ाया.

इस नई पीढ़ी में ऐसी बातें अब सुनने को नहीं मिलतीं. सब कुछ प्रोफेशनल होता जा रहा है. इसमें बाजार, कीमत और कामयाबी को ध्यान में रखा जाता है. पर सुरों की दुनिया इन बातों से आगे होती है और रहेगी. नई पीढ़ी स्पर्धा के महत्व को समझे, यह भी याद रखे कि मुकाबले से ज्‍यादा संगीत को तवज्‍जो दी जाए. उम्मीद करती हूं कि ऐसा होगा.

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