जायरा वसीम. एक ऐसी अदाकारा जिसने 'अल्लाह के नाम पर' हिंदी सिनेमा को अलविदा कह दिया. जायरा का फिल्मी सफर 5 साल में तीन फिल्मों का ही है. जायरा की तीसरी फिल्म 'द स्काई इज पिंक' लूप में है. लेकिन जायरा ने फिल्मों से कहीं ज्यादा सुर्खियां विवादों से बटोरी हैं. शुरुआत से ही विवाद की वजह से चर्चा में आई एक्ट्रेस ने अपना सफर 30 जून को विवाद के साथ ही खत्म कर लिया.
जायरा ने 30 जून को 6 पन्नों के घोषणा पत्र में फिल्म इंडस्ट्री छोड़ने का ऐलान कर दिया. बेशक ये उनका निजी मामला था, लेकिन अल्लाह के नाम पर करियर से तौबा करने की दुहाई देना हर किसी को नागवार गुजरा. इसकी एक नहीं हजार वजहें हैं. जायरा ये कैसे भूल गईं कि हिंदी सिनेमा उन अदाकाराओं का है जिन्होंने बंदिशों को तोड़कर अपनी पहचान बनाई है. मधुबाला, मीना कुमारी, वहीदा रहमान, जीनत अमान तो इंडस्ट्री के वो नाम हैं जिन पर हर मजहब को गर्व है. उन्होंने तो कभी मजहब के नाम की दुहाई नहीं दी. यहां तक की उनकी अदाकारी ने ये एहसास तक नहीं होने दिया कि वो किस मजहब को मानती हैं. लेकिन आपका मजहब के नाम पर फिल्म इंडस्ट्री को छोड़ने की दुहाई देना कहां की अक्लमंदी है?
जायरा आप ये कैसे भूल गईं कि देश में सिर्फ सिनेमा ही नहीं हर क्षेत्र में कश्मीर की महिलाओं ने मोर्चा संभाला है. देर रात दफ्तर, अस्पतालों में काम करने वाली न जाने कितनी करश्मीरी महिलाएं हैं जो अपनी ड्यूटी को पूरा कर रही हैं. लेकिन क्या उनका खुदा नहीं है? क्या खुदा के रास्ते पर चलने के लिए हर किसी को अपने काम से तौबा कर लेनी चाहिए? क्या सबाब कमाने का बस यही रास्ता है?
वैसे जायरा कमजोर शख्सियत तब नजर आई थीं जब आपने मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से मुलाकात की थी. उस वक्त भी समाज के चंद ठेकेदारों ने आपको महज मुलाकात के लिए ट्रोल किया था. ऐसे वक्त जब कड़ा जवाब देना का मौका था, आपने माफीनाम थमा दिया. ओफ्फ. आपकी जानकारी के लिए बता दूं उस वक्त आपके साथ पूरा देश था. तमाम सेलिब्रिटी थे. खुद जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने आपका सपोर्ट किया था. लेकिन आपके माफीनामे ने धर्म और समाज के उन ठेकेदारों को सही साबित किया जो ये बताते हैं कि महिलाओं की हद क्या है.
जायरा आपके इस कदम ने उन गलत परम्पराओं को बढ़ावा दिया है जो बताती हैं कि औरतों की हद क्या है. उन्हें तो बस बुर्के में लिपटकर, घर की दहलीज के अंदर दीवारों में कैद रहना चाहिए है, फिर चाहे उनका दम ही क्यों नहीं घुट जाए.
राइटर तस्लीमा नसरीन का ट्वीट भी इस ओर इशारा करता है, जिसमें उन्होंने लिखा- "मुस्लिम समुदाय की कई प्रतिभाएं बुर्के के अंधेरे में जाने को मजबूर हैं."
वैसे जायरा आपने ये कहा होता कि इंडस्ट्री में तमाम खामियां हैं, यहां काम करना मुश्किल है, आपको स्पेस चाहिए, आपके साथ गलत हुआ. तो पूरा देश आपके साथ होता. आपके हक की लड़ाई हम सब मिलकर लड़ रहे होते. लेकिन मजहब के नाम पर हिंदी सिनेमा को छोड़ने की दुहाई को मानना नामुमकिन है.
हो सकता है कि असल वजह कोई और हो, आप पर कई बंदिशें हों, जिनका जिक्र 6 पन्नों में नहीं हो सका. वैसे कल तक जिस जायरा को हम अपना सीक्रेट सुपरस्टार समझते थे, वो तो खुद की बंदिशों में जकड़ी है. हिंदी सिनेमा में होने के लिए इसके काबिल होना भी जरूरी है. यहां टिक पाने के लिए परिपक्वता की जरूरत है, जिसके लिए न तो आप काबिल हैं, न आपकी उम्र.