भारतीय सिनेमा को लो-बजट फिल्मों ने भी खूब प्रभावित किया है. ऐसी ही एक फिल्म लेकर आ रहे हैं युवा फिल्ममेकर पवन कुमार श्रीवास्तव. नाम है- 'हाशिए के लोग'. यह सदियों से उपेक्षा का शिकार रहे दलित वर्ग की कहानी है.
पवन कहते हैं कि फिल्म समाज के उस हिस्से के बारे में होगी जो धर्म में, व्यवस्था में, आर्थिक परिस्थितियों में और यहां तक कि सिनेमा में भी हाशिये पर है.
इससे पहले पवन ने 'नया पता' फिल्म बनाई थी जिसे आलोचकों ने पसंद किया था और कुछ अवॉर्ड भी फिल्म की झोली में आए थे. पवन कहते हैं कि वह हिंदी फिल्मों के मुंबई में बनने के ट्रेंड को भी तोड़ना चाहते हैं. वह कहते हैं, 'मुंबई में ही हिंदी हिंदी फिल्में क्यों बनें, जब हिंदी भाषी बेल्ट में इतनी विविधता है. मुंबइया सिनेमा भारतीय सिनेमा नहीं हैं और उसकी ज्यादातर कहानियां भारत को नहीं कहती.'
पवन फिल्ममेकिंग में एक्टिविज्म के हिमायती हैं. उन्होंने बताया कि जिन लोगों की कहानियां फिल्म में दिखाई गई हैं वे कागज-कलम से नहीं जन्मे, बल्कि जीते-जागते इंसान हैं. फिल्म बनाने के साथ-साथ उनकी समस्याओं से मीडिया और प्रशासन को भी अवगत कराया गया.