हिट एंड रन केस में अभिनेता सलमान खान को सजा सुनाते वक्त कोर्ट ने संजीव नंदा BMW केस एलिस्टर परेरा केस का उदाहरण भी पेश किया. सलमान को हुई सजा के लिए ये दोनों केस काफी अहम माने जा रहे हैं. आखिर क्या है ये दो मामले....
1- संजीव नंदा BMW केस
10 जनवरी 1999 को सुबह 4:30 बजे दिल्ली के लोधी रोड इलाके में पूर्व नौसेना प्रमुख एसएम नंदा के पोते संजीव नंदा की BMW कार ने सड़क किनारे सो रहे लोगों को कुचल दिया था. इस घटना में छह लोगों की मौत हो गई थी और एक व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो गया था. घटना के बाद संजीव और उसका दोस्त मौके से भाग निकले थे.
पुलिस ने मामले की जांच शुरू की और कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की. कई साल चली सुनवाई के बाद 5 सितंबर 2008 को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने संजीव नंदा को आईपीसी की धारा-304 (2) (गैर इरादतन हत्या) के तहत दोषी करार दिया. कोर्ट ने संजीव को 5 साल और उसके दोस्त राजीव को एक साल कैद की सजा सुनाई. राजीव गुप्ता पर 10,000 रुपये और श्याम सिंह व भोला नाथ पर 100-100 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था हाईकोर्ट का फैसला
87 पेज के फैसले में कोर्ट ने कहा कि मौजूदा कानून के मुताबिक, शराब के नशे में गाड़ी चलाते वक्त हुई मौत का मामला धारा-304 पार्ट-2 के तहत आएगा. इस मामले में कोर्ट ने चश्मदीद सुनील कुलकर्णी के बयान को भी अहम माना. हालांकि सजा का ऐलान होने के बाद आरोपी ने ऊपरी अदालत में अपील की, लेकिन आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी दलीलें ठुकरा दीं. तीन अगस्त 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने बीएमडब्ल्यू मामले में संजीव नंदा की जेल की सजा पांच साल से कम करके दो साल करने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. कोर्ट ने संजीव को दो साल तक समाजसेवा करने का निर्देश दिया और 50 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. कोर्ट ने कहा था कि अगर वह समाज सेवा करने में असफल रहते हैं तो उनकी सजा एक साल और बढ़ा दी जाएगी.
2- एलिस्टर परेरा केस
मुंबई में वर्ष 2006 में एलिस्टर परेरा नाम के शख्स ने अपनी कार से सात लोगों को कुचल दिया था. घटना में 8 अ मामला सामने आने के बाद वह लापता हो गया. जब वह लगातार कोर्ट में पेश नहीं हुआ तो निटली अदालत ने उसके खिलाफ वारंट जारी किया. बाद में परेरा ने मुंबई पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया.
कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हुई और आरोपी को महज छह महीने की सजा सुनाई थी. जिसके बाद इसका काफी विरोध भी हुआ और पीड़ित पक्ष ने बॉम्बे हाईकोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की. बॉम्बे हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बदलते हुए छह महीने की सजा को तीन साल कर दिया था. जिसके बाद परेरा ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट में भी उसका यह दांव नहीं चला और कोर्ट ने 12 जनवरी 2012 को मामले की सुनवाई करते हुए परेरा की तीन साल की जेल की सजा को बरकरार रखा.