बाबा साहिलेश्वर ने कहा है ‘इश्क में पड़ी लड़की प्रेम में इतना डूब जाती है कि अपनी सुध-बुध खोकर उसे इतना भी स्मरण नहीं रहता कि उसकी नाक बह रही है और उसे शीघ्रता से पोंछना उसका नैतिक कर्तव्य बनता है.’ फिल्म-उपन्यास-इस्टोरी के प्रारंभ में उद्योगपति क्रिस्चियन ग्रे का साक्षात्कार करने जब नायिका अनास्तिसिया (जो हर बार सुनने में बेहोश करने की दवाई अनस्थेसिया लगती है) जो कि एक कॉलेज इंटर्न है, उसके विशाल दफ्तर में आती है तो जाने क्यूं जेहन में डॉ. पचौरी (जिन पर हाल ही मानसिक उत्पीड़न के आरोप लगे हैं) का चेहरा सामने आ जाता है.
नायक की किसी काकी ने उसके साथ बचपन में ऐसे परपीड़क कामुकता से परिपूर्ण खेलवा खेले तो वह भी BDSM (Bondage Dominance Submission Masochism) में रस लेने लगा और ऐसे ‘काम अस्त्र-शस्त्र’ से लबरेज एक कमरा भी बनवाए! हम तो पहले BDSM को कोई डिग्री समझते थे, जैसे Bachelor of Dental Surgery & Medicine या फिर कोई भोजपुरी फिल्मवा का शॉर्ट फॉर्म जैसे ‘बलमवा दिल सुरसुरी मोरा’.
नायक को प्रेम, रोमांस, डिनर, कॉफी, फूल आदि इश्क करने के फंडों में कोई विश्वास नहीं है. वह तो बस लैपटॉप, किताबें, कार आदि उपहार देकर सीधे मुद्दे पर आता है और नायिका जिसे हर बार स्वीकार भी कर लेती है. हमारे यहां के लौंडे भी मूलतः इसी चरित्र के होते हैं. बस उन्हें कमरा ना मिलने के अभाव में उपरोक्त टंटे करने पड़ते हैं और इसे वे पवित्र प्रेम से सुशोभित कर देते हैं. पवित्र पापी कहीं के..
बहरहाल, नायक नायिका के संग हमबिस्तर होने से पहले उस से एक कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर लेने को कहता है. इसके मुताबिक वे अपनी यौन क्रियाओं या कहें नायक की परपीड़क ठरक की परिपूर्ति में अबाध्य रहने में सहायक रहें. कल्पना कीजिए, यदि भारतीय प्रेमिका के सामने भी ये परिस्थति आए तो पहले तो वह प्रेमी को पकड़ के झाडू के साथ खूब ठोंके और फिर कहे जा अब प्याज और आलू के पकोड़े तल के ला कमीने.
अंत में जब नायिका ब्रेकअप के समय नायक द्वारा उपहार दी गई कार को वापस मांगती है तो उन भारतीय लड़कियों की याद आ जाती है, जो अपने ब्वॉयफ्रेंड द्वारा दुरुपयोग होने के बाद अलग होने के दौरान ये शाश्वत संवाद प्रेषित करती हैं– ‘कुत्ते-कमीने डोंकी मोंकी स्टुपिड ये ले अपना टेडी बियर. ये ले अपने ग्रीटिंग कार्ड और ये ले अपनी नकली अंगूठी, अपनी मां को पह्नाइयो... मर जा कुत्ते.’