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'शमिताभ' का ट्रेलर देख पैदा हुईं सात खब्त

आर. बाल्क‍ि की फिल्म 'शमिताभ' का ट्रेलर रिलीज हो गया है. इस ट्रेलर को देख कुछ ऑबजर्वेशन किए गए हैं. आप भी देख‍िए तस्वीरें और ऑबजर्वेशन...

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1. हिंदी तो छोड़ो, भोजपुरी या बुंदेली फिल्म में भी हीरो बनना हो तो पहली शर्त होती है शरीर में बसे मांस के लौंदों को चमकाना. भद्रजन इसे मसल बनाना कहते हैं. पेल-पेल प्रोटीन के डिब्बी और उठा-उठा वजन, सब छाती और भुजा फुला लेते हैं. मतलब महा चिलान्टू लौंडा भी जब हीरो बनने आता है, तो सबसे पहले यही काम करता है. ऐसे में बाल्की ने धानुष को हीरो ले बड़ा साहस का काम किया. हालांकि इससे पहले 'रांझणा' में भी वह हीरो के तौर पर नजर आ चुके हैं. मगर वहां उन्हें हीरोपंती करने की दरकार नहीं थी. यहां तो उन्हें बाकायदा स्वर्गीय यश चोपड़ा को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए नीले पानी वाली झील के सामने नायिका संग अभिसार भी करना था. गौर से देखिए. क्या श्रीदेवी, रेखा और माधुरी के सुंदर तन से शिफॉन यूं चिपकी होगी, जैसे धानुष के बदन पर कमीज छितराई है.

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2. हम कभी आंख फोड़कर रट्टा मार मार पढ़े ही नहीं. क्योंकि पता था. टॉप कर जाएंगे. उसमें दिक्कत नहीं है. बल्कि मजा आता है. मुश्किल बाद शुरू होती है. अब टॉप कर लिए तो हमेशा करो. मतलब, जैसे तहसीलदार साहब पट्टा कर दिए हों. अब 99 साल यही जोतेंगे खेत टाइप्स. अमिताभ बच्चन को भी यही लगा होगा. मगर जब तक ये समझ आता. वह तो सुपरस्टार बन चुके थे. राजेश खन्ना को पछाड़कर. फिर कई आए, गए. हुर्र फुर्र नुमा तात्कालिक चुनौती पेश कर हल्के हो लिए. तब तक, जब तक खुद को ए फॉर एपल की तर्ज पर बादशाह कहने दोहराने वाले शाहरुख खान नहीं आ गए. दिल्ली के लौंडे और दिल्ली के आदमी के बीच जंग छिड़ गई. सचिन महान कि सौरव, जैसी बहसें हुईं. मगर अब जब दोनों ही लगातार एक्टिंग कर रहे हैं. एक बार कहने को जी करता है. बच्चन जैसा कोई नहीं. मगर बच्चन जानते हैं. कि सब ये कहते हैं. इसके लिए लगातार मेहनत करनी होगी. समय पर गेयर बदलने होंगे. चुनौतीपूर्ण और उम्र की गरिमा के मुताबिक रोल भी करने होंगे. यहां गौर से देखिए. जिन पर हमारी दादी, हमारी माएं और बहनें, बेटियां रीझी होंगी. उस एक्टर के ये झुर्री भरे हाथ. बुजुर्ग से पोपले. मगर उनकी पकड़ उस कागज पर है, जिस पर किसी ने धृष्टतापूर्ण ढंग से अमिताभ के आगे उससे बड़ा एसएच लिख दिया है. ये शाहरुख की याद क्यों दिलाता है. ये मेरे दिमाग का फितूर है या फिर बाल्की ही बौरा गया है. गिव इट अप फॉर बच्चन...बच्चन बच्चन

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3. लेओ. कतार में एक और एक्टर एक्ट्रेस पुत्री आ गई. मगर ये नाच क्यों नहीं रही है. चेहरे पर यह गुरु गंभीर भाव क्यों भंते. क्या तकलीफ है. तय कर लिया है क्या लीक तोड़ कर ही मानोगी. शायर सिंह सपूत की तरह. स्वागत है अक्षरा. तुम्हारा नाम बहुत सुंदर है. सुंदर तुम्हारे पापा कमल और मां सारिका भी हैं. तुम्हारी आंखें कुछ खास हैं. नीले कंचे जैसी. गोया छुटपन में हमने सबसे सुंदर कंचा अंटी में छुपाकर रख लिया हो. उसे खेल में मैला न करते हों. बस बीच-बीच में देखकर खुश हो लेते हों. के है ये भी हमारे पास. शमिताभ का ये अंदाज और लुक लुभावना है. उम्मीद है कि एक्टिंग लुक लुक टाइप नहीं होगी. उसमें गहराई होगी. देखो न, फिर तुम्हारी आंखें याद आ गईं.

4. बोल बम, लगाकर दम, सर्दी में रम, न कोई गम. पर ये कैसा भ्रम. भ्रम नहीं हकीकत. इंडिया वाकई ग्लोबल गांव हो गया है. हम भारतीय इसके रोजाना के देवता हैं. और ये देवता एक्टर बनना चाहते हैं. पर ये क्या. धानुष का किरदार दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन या शाहरुख खान की एक्टिंग क्यों नहीं कर रहा. ये बैटमैन रिटर्न्स का हीथ लेजर क्यों बना हुआ है. वह जहरीला जोकर जो जब सचमुच गया, तो सब बेहिसाब रोए. मजेदार है न. जोकर कस्बे तक पहुंच गया. एक्टिंग का पाठ हीथ लेजर पढ़ाने लगे. और आप हैं कि वेस्टर्न कल्चर के बुरे असर पर निबंध लिखवाने में लगे हैं.

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5. मेरी एक दोस्त कहती थी कि जब किसी को पहली मर्तबा प्यार होता है, तो हिलते पत्ते को देखकर भी हंसी आती है. यहां पत्ता नहीं पेड़ है. और उसके सामने अमिताभ. किरदार के मुताबिक झुंझलाते, गुस्सा करते. इस दौरान पेड़ से बात करते. कठिन होता है न. यूं किसी निर्जीव वस्तु के सामने एक्टिंग का पैमाना ऊंचा करना. इसे मोनोलॉग कहते हैं. शमिताभ का ट्रेलर देखकर लगा. कमाल का होगा यह हिस्सा. एक कामयाब मगर कुछ डरा हुआ बुजुर्ग आदमी. सफेद वस्त्र, स्याह आत्मा. कभी हावी होता तो कभी हारता. उठता, गिरता, उड़ता. शुक्रिया डायरेक्टर बाल्की. बच्चन को यूं फिर पास लाने के लिए.

6. कोई एक्टर कित्ता मंझा या कहें कि महान. कई पैमाने हो सकते हैं. एक अपना भी है. बंदा शराब वाला सीन कितना इंटेंस करता है. आप मुझे चुगद करार देने के लिए केयरफ्री हैं. पर है तो है. केएल सहगल का सीन. या देवदास का दिलीप कुमार. अमर प्रेम का तिरछी लालामी लिए चितवन वाला राजेश खन्ना. हम दिल दे चुके सनम का हारा हुआ पति अजय देवगन. भंसाली की देवदास का शाहरुख...सब एक तरफ. अमर अकबर एंथनी का वह सीन एक तरफ. जब इंस्पेक्टर विनोद खन्ना से पिटकर आया गली का गुंडा एंथनी शीशे के सामने संवाद बोल रहा है. लगता है कि जैसे कैमरा और कमरा भी लहर गया है. और शराबी फिल्म में तो ऐसे कई कई हैं. दोस्ताना में भी. अग्निपथ का विजय दीनानाथ चौहान. हाएं.

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बहरहाल, ये लंतरानी क्यों. मसला ये है कि शमिताभ में बच्चन का एक शराब वाला सीन है. फुर्सत से गढ़ा गया. इसमें वह न सिर्फ शराब बल्कि एक्टिंग का पैमाना भी भरपूर भरे नजर आते हैं. वह साफ कर देते हैं. कौन हैं ये लौंडे. पानी. और मैं. व्हिस्की. पानी को व्हिस्की चाहिए. व्हिस्की को पानी नहीं. जियो गुरु. गर्दा उड़ा दिए.

7. और अंत में वही झगड़ा. ट्रॉफी किसकी. मगर इस फ्रेम में गौर करिए. नारीवादी तो फौरन भांप लेंगे. हमारे जैसे उजबक भी समझ गए. क्या हीरोइन या कि औरत भी एक ट्रॉफी भर है. इस समाज में. समय में. जिसे अपने पाले, अपने कब्जे में रखने की ये सारी लड़ाई है. जिसके बिना हर चमक अधूरी है. एक किस्से में सुना था. किसी बालक को कहते. यार गर्लफ्रेंड ऐसी होनी चाहिए, जिसे देखकर दोस्तों की सुलगे.
यकीनन घटिया कहा था. मगर इस फ्रेम ने उसी सोच को ताजा कर दिया. फिल्म में इस दर्शन को शकल दी गई होगी. प्यार एक तरफ. व्यापार एक तरफ. ताकत का, सत्ता का, कामयाबी का.
एक बार फिर से तस्वीर देखिए. किनारे लिखा है होप. तो हमें भी उम्मीद है कि आखिर में सब दुरुस्त हो जाएगा. लेडी को लेकर लड़ाई नहीं होगी. उसका जिसके साथ मन होगा जाएगी. अगर ऐसा हुआ, तो ये मुल्क मर्दाना ताकत के ऐड और पैड की चकल्लस से बच जाएगा.

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आप भी फिल्म का ट्रेलर देखें और बताएं कि ये खब्त आपने भी महसूस कीं या नहीं.

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