बॉलीवुड के मशहूर एक्टर सनी देओल फिल्मों में सफल पारी खेलने के बाद अब राजनीतिक मैदान में उतर चुके हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान सनी देओल ने मंगलवार को बीजेपी की सदस्यता ले ली. अब खबर है कि वे पंजाब की गुरदासपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. गौरतलब है कि सनी देओल ने अपने करियर में कई हिट फिल्में दी हैं. उन्हें एक्शन हीरो के तौर पर जाना जाता है.
सनी देओल की शानदार एक्टिंग, पावर पैक्ड एक्शन और दमदार संवाद ने कई फिल्मों को सुपरहिट बनाया है. सनी देओल की फिल्मों के डायलॉग भी दमदार होते हैं. तभी तो सालों बाद भी सनी देओल की फिल्मों के डायलॉग मूवी लवर्स के जहन में बसे हुए हैं. फिल्म दामिनी का तारीख पे तारीख... हो या ढाई किलो का हाथ... सनी के फिल्मों के डायलॉग हमेशा से ट्रेंड में रहे हैं. आज जब सनी के बीजेपी में शामिल होने की चर्चा है उनके दर्जनों फ़िल्मी संवाद सोशल मीडिया में साझा किए जा रहे हैं.
एक नजर डालते हैं सनी देओल के दमदार संवादों पर...
घातक (1996): ये मज़दूर का हाथ है कात्या, लोहा पिघलाकर उसका आकार बदल देता है. ये ताकत ख़ून-पसीने से कमाई हुई रोटी की है. मुझे किसी के टुकड़ों पर पलने की जरूरत नहीं.
Latest pics of #SunnyDeol paji.
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— Suraj Tiwari Surya (@Surajtiwarisur4) April 19, 2019
दामिनी (1993): चड्ढा, समझाओ.. इसे समझाओ. ऐसे ख़िलौने बाज़ार में बहुत बिकते हैं, मगर इसे खेलने के लिए जो जिगर चाहिए न, वो दुनिया के किसी बाज़ार में नहीं बिकता, मर्द उसे लेकर पैदा होता है. और जब ये ढाई किलो का हाथ किसी पर पड़ता है न तो आदमी उठता नहीं, उठ जाता है.
गदर: एक प्रेम कथा (2001): अशरफ अली! आपका पाकिस्तान ज़िंदाबाद है, इससे हमें कोई ऐतराज़ नहीं लेकिन हमारा हिंदुस्तान ज़िंदाबाद है, ज़िंदाबाद था और ज़िंदाबाद रहेगा. बस बहुत हो गया.
ज़िद्दी (1997): चिल्लाओ मत इंस्पेक्टर, ये देवा की अदालत है, और मेरी अदालत में अपराधियों को ऊंचा बोलने की इजाज़त नहीं.
घातक (1996): हलक़ में हाथ डालकर कलेजा खींच लूंगा हरामख़ोर.. उठा उठा के पटकूंगा. उठा उठा के पटकूंगा! चीर दूंगा, फाड़ दूंगा साले.
घायल (1990): इस चोट को अपने दिल-ओ-दिमाग़ पर क़ायम रखना. कल यही आंसू क्रांति का सैलाब बनकर, इस मुल्क की सारी गंदगी को बहा ले जाएंगे.
Sunny deol conducting next surgical strike......#SunnyDeol pic.twitter.com/UCls38oJuY
— Thedecent1 (@Thedecentone3) April 23, 2019
दामिनी (1993): सच्चाई के लिए लड़ने वाला रहेगा, न ही इंसाफ मांगने वाला. रह जाएगी तो सिर्फ तारीख़. और यही होता रहा है मीलॉर्ड तारीख़ पर तारीख़, तारीख़ पर तारीख़, तारीख़ पर तारीख़ मिलती रही है मीलॉर्ड लेकिन इंसान नहीं मिला मीलॉर्ड, इंसाफ नहीं मिला. मिली है तो सिर्फ ये तारीख़.
घातक (1996): पिंजरे में आकर शेर भी कुत्ता बन जाता है कात्या. तू चाहता है मैं तेरे यहां कुत्ता बनकर रहूं. तू कहे तो काटूं, तू कहे तो भौंकू.
दामिनी (1993): अगर अदालत में तूने कोई बदतमीजी की तो वहीं मारूंगा. जज ऑर्डर ऑर्डर करता रहेगा और तू पिटता रहेगा.