सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड का मामला एक मिस्ट्री के साथ-साथ राजनीति का अहम मुद्दा भी बन चुका है. इसी को लेकर शिवसेना सांसद संजय राउत ने पार्टी मुखपत्र सामना में कई आरोप लगाए हैं. संजय राउत ने बिहार पुलिस और केंद्र पर महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ साजिश रचने का इल्जाम लगाया है. उन्होंने ये भी आरोप लगाया है कि बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे बीजेपी के आदमी हैं और उनपर 2009 में कई चार्ज लगे थे.
अपने लेख में संजय राउत ने कहा...
राउत ने लिखा, सुशांत सिंह राजपूत मामले की जांच अब सीबीआई के हाथ में पहुंच गई है. मुंबई पुलिस की जांच शुरू रहने के दौरान बिहार सरकार सीबीआई जांच की मांग करती है, केंद्र सरकार इसे तुरंत स्वीकृति दे देती है. किसी प्रकरण का राजनीतिकरण करना है, इसके लिए सीबीआई, ईडी जैसी केंद्रीय संस्थाओं का इस्तेमाल करना, यह सब झकझोर देने वाला है.
जब किसी घटना का राजनीतिकरण किया जाता है, तब वह किस स्तर तक जाएगा, यह कहा नहीं जा सकता है. अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के खुदकुशी के दुखद मामले में निश्चित तौर पर यही हो रहा है. राजनीतिक निवेश ने शिखर छू लिया है. सुशांत की मृत्यु के पीछे कुछ राज हैं. उस रहस्य कथा में फिल्म, राजनीति और उद्योग जगत के बड़े नाम शामिल हैं. इसलिए मुंबई पुलिस सही ढंग से जांच नहीं करेगी, बिहार सरकार की यह शिकायत है. मुंबई पुलिस से जांच नहीं हो पाएगी. इसलिए इसे ‘सीबीआई’ को सौंपा जाए, ऐसी मांग बिहार सरकार ने की तथा 24 घंटों में इस मांग को स्वीकृति भी मिल गई.
सांसद ने कहा, केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल तुषार मेहता सर्वोच्च न्यायालय में खड़े रहते हैं व ‘सुशांत खुदकुशी मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का निर्णय लिया गया है.’ ऐसा कहते हैं. राज्य की स्वायत्तता पर यह सीधा हमला है. सुशांत मामला कुछ और समय मुंबई पुलिस के हाथ में रहा होता तो आसमान नहीं टूट जाता लेकिन किसी मुद्दे पर राजनीतिक निवेश व दबाव की राजनीति करने को कहा जाए तो हमारे देश में कुछ भी हो सकता है.
सुशांत प्रकरण की ‘पटकथा’ मानो पहले ही लिखी गई थी. पर्दे के पीछे बहुत कुछ हुआ होगा लेकिन जो हुआ उसका सार एक वाक्य में कहा जाए तो इसे ‘महाराष्ट्र के खिलाफ साजिश’ ही कहना होगा.
सीबीआई के बारे में संजय राउत ने कहीं बातें
सीबीआई को लेकर संजय राउत ने अपने लेख में बड़ी बातें कहीं. उन्होंने सीबीआई जांच की बात पर सवाल भी उठाए. उन्होंने लिखा- मुंबई पुलिस दुनिया का सर्वोच्च जांच तंत्र है. मुंबई पुलिस दबाव का शिकार नहीं होती. यह पूरी तरह प्रोफेशनल है. शीना बोरा हत्याकांड मुंबई पुलिस ने ही सुलझाया था. उसमें कई बड़े नाम शामिल थे लेकिन पुलिस ने सभी को जेल में पहुंचाया. 26/11 आतंकवादी हमले का जवाब मुंबई पुलिस ने ही दिया और सशक्त सबूत इकट्ठा करके कसाब को फांसी पर पहुंचाया. इसलिए सुशांत जैसे मामले में केंद्र द्वारा हस्तक्षेप करना मुंबई पुलिस का अपमान है.
‘सीबीआई’ एक केंद्रीय जांच एजेंसी होगी, परंतु वह स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं है. यह कई बार दिख चुका है. कई राज्यों ने सीबीआई पर बंदी ही लगा दी है. शारदा चिटफंड मामले की जांच करने के लिए कोलकाता पहुंचे सीबीआई के दस्ते को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिर्फ रोका ही नहीं, बल्कि उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करके उन्हें लॉकअप में भी डाल दिया. उस दिन पूरा कोलकाता सीबीआई के खिलाफ सड़कों पर उतर आया और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उस भीड़ का नेतृत्व सड़क पर उतरकर कर रही थीं. जिनकी सरकार केंद्र में होती है, सीबीआई उनकी ताल पर काम करती है.
संस्थाओं पर उठे सवाल: राउत
सर्वोच्च न्यायालय से लेकर ईडी, सीबीआई जैसी संस्थाओं पर विगत कुछ वर्षों में सवालिया निशान लग चुके हैं. ऐसे सवाल खड़े करने में नरेंद्र मोदी व अमित शाह भी शामिल थे ही! गोधरा दंगों के बाद हुई हत्याओं की जांच सीबीआई के पास न जाए, क्योंकि सीबीआई केंद्रीय सत्ताधारियों का राजनीतिक हथियार है, ऐसा तब मोदी, शाह का मत था. यही मत सुशांत सिंह राजपूत मामले में व्यक्त किया गया तो क्या गलती हुई?
संजय ने आगे लिखा- अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली, ऐसा साफ दिख रहा है. ये हत्या है, ऐसा जो बार-बार कहा जा रहा है, इसका ऐसा कोई आधार नहीं है. अभिनेता की हत्या कर दी गई व इसमें फिल्म जगत व राजनीतिक नेताओं की मिलीभगत है. ऐसा चिल्लाकर कहना, यह गर्म तवे पर रोटी सेंकने की इच्छा रखनेवाले ओछे किरदारों व समाचार चैनलों का स्पष्ट झूठा प्रचार है.
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्ववाली सरकार है. उसे किसी भी तरह गिराया जाए. नहीं गिरती है तो बदनाम किया जाए, ऐसा विरोधियों ने तय किया है व भारतीय जनता पार्टी के हर तरह के समर्थन के बल पर खड़े हुए समाचार चैनलों से उन्होंने सुशांत प्रकरण में मोर्चा खोला है. उन समाचार चैनलों के प्रमुखों द्वारा की गई वो ‘गॉसिपिंग!’ लोगों के मन में संदेह बढ़ाया है.
राउत ने कहा, शरद पवार ने मुझे फोन किया कि, ‘एक समाचार चैनल पर उद्धव ठाकरे का उल्लेख अशिष्ट भाषा में किया जाता है, ये सही नहीं है. वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं. मुख्यमंत्री सिर्फ कोई एक व्यक्ति नहीं होता है, बल्कि एक संस्था होती है.’
उन्होंने सवाल किया, ‘फिर सरकार क्या कर रही है?’ पवार की राय एक अनुभवी नेता की राय है, पत्रकारिता का ये दृश्य अच्छा नहीं है. एक समाचार चैनल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पर अशिष्ट भाषा में जहर उगलता है और उसे सहन किया जाता है. उस समाचार चैनल को महाराष्ट्र की राजनीतिक पार्टियां समर्थन देती हैं. सुशांत सिंह सिर्फ माध्यम हैं और उनके माध्यम से सरकार को बदनाम करना. यही मुख्य साजिश है, जो कि जारी है.
बिहार पुलिस घुसी: संजय राउत
सुशांत केस में बिहार पुलिस मुंबई में जांच के लिए आई थी. इसका कारण था सुशांत के पिता के के सिंह का बिहार पुलिस में रिया चक्रवर्ती के खिलाफ FIR दर्ज करवाना. हालांकि महाराष्ट्र सरकार बिहार के मुंबई आकर जांच करने से नाराज हुई और इसपर भी संजय राउत ने अपनी बात को रखा है. वे अपने लेख में कहते हैं, सुशांत सिंह राजपूत मामले में बिहार सरकार को हस्तक्षेप करने की वैसे कोई जरूरत नहीं थी. कुछ वर्षों में सुशांत पूरी तरह मुंबईकर बन गया था. उसका बिहार से संबंध भी नहीं था. उसे पूरा वैभव मुंबई ने ही दिया था. संघर्ष के दौर में बिहार उसके पीछे नहीं था. सुशांत का परिवार मतलब पिता पटना में रहते हैं. उनके पिता से उसके संबंध अच्छे नहीं थे. पिता द्वारा किया गया दूसरा विवाह सुशांत को स्वीकार नहीं था. इसलिए पिता से उसका भावनात्मक संबंध शेष नहीं बचा था. उसी पिता को बरगलाकर बिहार में एक एफआईआर दर्ज कराई गई व मुंबई में घटे गुनाह की जांच करने के लिए बिहार की पुलिस मुंबई आई. इसका समर्थन किया ही नहीं जा सकता है.
बिहार पुलिस मतलब इंटरपोल नहीं है. एक अपराध की जांच मुंबई पुलिस कर रही है. उसी समय दूसरे राज्य का कोई संबंध न होने के बावजूद वे समानांतर जांच शुरू करें. यह मुंबई पुलिस की कार्यक्षमता पर अविश्वास है. बिहार पुलिस के पास इस बारे में कोई दूसरे कोण होंगे तो उन्हें मुंबई पुलिस से इस पर चर्चा करने में कोई हर्ज नहीं है. सत्य जानना सभी का अधिकार है लेकिन यह जो सत्य सिर्फ बिहार की पुलिस अथवा सीबीआई ढूंढ सकेगी, ये सोच गलत है.
बिहार पुलिस के दो दस्ते मुंबई में सुशांत सिंह की मौत की जांच करने के लिए आए. उनमें से एक दस्ते को मुंबई महानगरपालिका ने कोरोना कानून के तहत क्वारनटीन किया. बिहार पुलिस को क्वारनटीन मनपा ने किया. इस पर राजनीति क्यों होनी चाहिए?
बिहार पुलिस के बारे में बात करते हुए संजय राउत ने डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे पर भी निशाना साधा. उन्होंने लिखा- बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे समाचार चैनलों पर खाकी वर्दी में जाकर मुंबई पुलिस की कार्य पद्धति पर ताव-ताव में बोलते हैं. समाचार चैनल पर चर्चा में शामिल होते हैं. यह सीधे-सीधे पुलिसिया अनुशासन का उल्लंघन है. उस पर इस गुप्तेश्वर पांडे से अनुशासन के पालन की उम्मीद ही क्यों की जाए?
ये गुप्तेश्वर पांडे कौन हैं? वर्ष 2009 में वे डीआईजी रहते हुए पुलिस सेवा से वीआरएस लेकर सीधे राजनीति में कूद गए. विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर ‘बक्सर’ निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए खड़े हो गए लेकिन भाजपा के सांसद लालमुनि चौबे द्वारा बगावत करने की धमकी दिए जाने के साथ ही चौबे की उम्मीदवारी फिर बरकरार कर दी गई. इससे गुप्तेश्वर पांडे बीच में ही लटक गए. उनकी अवस्था ‘न घर के न घाट के’ जैसी हो गई. इस तरह से राजनीति में घुसने का उनका मिशन फेल हो गया. उसके बाद उन्होंने सेवा में लौटने के लिए फिर आवेदन-निवेदन किए.
ऐसा कहा जाता है कि गुप्तेश्वर पांडे की पत्नी ने भी अपने पति की ओर से सरकार से निवेदन किया था और कहा था कि नौकरी छोड़ते समय उनके पति गुप्तेश्वर पांडे की मानसिक स्थिति अच्छी नहीं थी. मानसिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इसी आधार पर उन्हें एक बार फिर सेवा में लिया गया होगा तो यह बिहार सरकार का मसला है.
पांडे उस समय भाजपा के खेमे में थे और आज नीतीश कुमार के खास हैं. भाजपा से उम्मीदवारी स्वीकार करनेवाले पांडे द्वारा मुंबई पुलिस की कार्य क्षमता पर सवाल खड़े करना हास्यास्पद है. उस पर अब ऐसी खबरें बिहार के अखबारों में छपी हैं कि यही पांडे बिहार में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाने की तैयारी कर रहे हैं. वहां के अखबारों में छपी खबरों के अनुसार पांडे शाहपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से आगामी विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं. इस क्षेत्र में जाति समीकरण का पांडे को लाभ मिल सकता है, ऐसा गणित लगाया जा रहा है. यद्यपि उनके सेवाकाल में 6 महीने शेष हैं लेकिन वह इस्तीफा दे सकते हैं और जेडीयू के टिकट पर बक्सर सदर अथवा शाहपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते हैं. ऐसा भी खबरों में कहा गया है. ऐसी पुलिस से समाज को क्या अपेक्षा रखनी चाहिए?
दिशा सालियन की बदनामी पर संजय राउत
सुशांत की पूर्व मैनेजर दिशा सालियन की मौत एक्टर से एक हफ्ता पहले हुई थी. दिशा की मौत को सुशांत के केस से जोड़कर देखने की कोशिश की जा रही है. ऐसे में बहुत सी बातें दिशा सालियन के बारे में कही जा रही हैं. इसपर गौर करते हुए संजय राउत ने लिखा- सुशांत सिंह राजपूत की मौत से पहले मैनेजर दिशा सालियन ने आत्महत्या की थी. दोनों मामले पूरी तरह से अलग हैं लेकिन राजनीतिक नेता दो खुदकुशी के धागों को जोड़ रहे हैं. दिशा सालियन के साथ बलात्कार करके उसे इमारत से नीचे फेंका गया था, ऐसा आरोप भाजपा के एक नेता लगा रहे हैं. उन्होंने ऐसा करते समय उसके परिवार का थोड़ा भी विचार किया होगा, ऐसा लगता नहीं है.दिशा सालियन के पिता ने एक पत्र लिखकर इस पर दुख व्यक्त किया है. मृत्यु के बाद मेरी बेटी और हमारे परिवार को बदनाम क्यों कर रहे हो? यह उसके माता-पिता का सीधा सवाल है. दिशा सालियन का पूरा परिवार ही इस बदनामी के कारण मानसिक रूप से प्रताड़ित हुआ है. उसके पिता डिप्रेशन में चले गए हैं, ऐसा अब सामने आया है.
राजनीति व डिजिटल पत्रकारिता इतनी असंवेदनशील और अमानवीय होगी इस पर हैरानी होती है. दिशा सालियन, रिया चक्रवर्ती, अंकिता लोखंडे ऐसी तीन महिलाओं के नाम इस प्रकरण से जुड़े हैं और हर पात्र का कथानक अलग है. सुशांत सिंह राजपूत व दिशा सालियन से दुष्कर आपराधिक मामलों की जांच मुंबई पुलिस इससे पहले कई बार कर चुकी है लेकिन सुशांत प्रकरण में निश्चित तौर में क्या गलतियां हुईं यह देखें-
इस संबंध में जीरो एफआईआर दर्ज करके पुलिस को जांच जारी रखनी चाहिए थी. (लेकिन सुशांत के रिश्तेदारों को तब किसी के भी खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं करानी थी और वह परिवार सुशांत की आत्महत्या के बाद सीधे पटना पहुंच गया.)
भारतीय जनता पार्टी ने इस प्रकरण को राजनीतिक निवेश के तौर पर इस्तेमाल करने का निर्णय लिया व मंत्रिमंडल के युवा मंत्रियों का नाम इस प्रकरण से जोड़कर सनसनी निर्माण की. दूसरी तरफ दो अंग्रेजी समाचार चैनल मुख्यमंत्री ठाकरे को सुशांत प्रकरण में ऐसे चुनौती देते रहे मानों सुपारी ली हो. इसलिए पुलिस हड़बड़ा गई.
यह प्रकरण ‘हाईप्रोफाइल’ हो रहा है ऐसा प्रतीत होते ही मुंबई पुलिस की ओर से एक दिन बाद जांच से संबंधित जानकारी पत्रकारों से साझा करने में कोई हर्ज नहीं था. इसमें कोई मंत्री अथवा राजनैतिक व्यक्ति होगा तो पुलिस उसका भी स्टेटमेंट लेगी, ऐसा प्रारंभ में ही कहने में कोई हर्ज नहीं था.
मुंबई पुलिस की जांच को लेकर संजय राउत का कहना है- मुंबई पुलिस ने इस मामले की जांच को अनावश्यक रूप से अधिक लंबा खींच लिया. सिनेमा जगत के सेलिब्रिटीज को रोज पूछताछ के लिए बुलाते थे वह ‘गॉसिप’ को बढ़ावा देते थे. इस प्रकरण का इस्तेमाल सिनेमा जगत में दहशत निर्माण करने के लिए किया गया है क्या, यह देखना चाहिए.
सुशांत की मृत्यु से पहले अभिनेता डिनो मोरिया के घर पार्टी हुई. इस पार्टी को लेकर रहस्य निर्माण करके उसका संबंध सुशांत की मौत से जोड़ा गया. डिनो मोरिया व अन्य फिल्म कलाकार राज्यमंत्री आदित्य ठाकरे के मित्र परिवार से हैं इसलिए आरोपों की झड़ी मुख्यमंत्री ठाकरे व आदित्य ठाकरे पर बरसाई जा रही होगी तो ये गलत साबित होगा. सबूतों के बगैर बोलना, आरोप लगाना नैतिकता के अनुरूप नहीं है। सबूत है क्या? यह पहला सवाल. खुद आदित्य ठाकरे ने इस संबंध में खुलासा किया है. फिर भी शंका होगी तो कुछ समाचार चैनलों के माध्यम से बदनामी मुहिम चलाना यह मार्ग है क्या?
इस प्रकरण में बॉलीवुड के जिन कलाकारों का नाम आ रहा है उनमें से ज्यादातर ‘डी’ ग्रेड के लोग हैं. कई वर्षों से ये पर्दे पर नहीं दिखते हैं और अन्य व्यवसाय करके वे जी रहे हैं. इनमें से कुछ लोग आदित्य ठाकरे के संपर्क में आए थे इस वजह से यदि कोई जमीन पर डंडा पीटता होगा तो वह गलत है.
इस प्रकरण में सरकार विरोधी पार्टी द्वारा महाराष्ट्र से ज्यादा बिहार पुलिस का पक्ष लेना यह तरीका झकझोरने वाला है. बिहार की तरह कुछ गुप्तेश्वर पांडे महाराष्ट्र पुलिस में भी हैं और उनके कारण समस्या बढ़ी है, ऐसा मेरा अनुमान है.
राजनैतिक चश्मा
अपने लेख के अंत तक आते-आते संजय राउत ने ये कहा कि सुशांत मामले को राजनैतिक चश्मे से देखा जा रहा है. वे लिखते हैं- एक बात सत्य है कि सुशांत का पटना में रहने वाले अपने पिता से संबंध अच्छा नहीं था. मुंबई ही उसका ‘आशियाना’ था. इस पूरे दौर में सुशांत, पिता व अन्य रिश्तेदारों से कितनी बार मिला, सुशांत कितनी बार पटना गया, ये सामने आने दो. अंकिता लोखंडे और रिया चक्रवर्ती ये दो अभिनेत्रियां उसके जीवन में थीं. इनमें से अंकिता ने सुशांत को छोड़ दिया था व रिया उसके साथ थी. अब अंकिता, रिया चक्रवर्ती के बारे में अलग बात कर रही है.
असल में अंकिता व सुशांत अलग क्यों हुए इस पर प्रकाश डालने के लिए कोई तैयार नहीं है. जो कि जांच का एक हिस्सा होना चाहिए. इस पूरे प्रकरण में सीधे-सीधे राजनीति शुरू है व शोकांतिका के कुछ पात्र अपने-अपने पक्ष में मोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. सुशांत एक अभिनेता था. पटना से वह मुंबई आया और बस गया था. उसकी आत्महत्या का जिम्मेदार कौन है? यह समझना मुश्किल है परंतु इसमें सुशांत सहित सभी जिम्मेदार हैं. उसकी आत्महत्या एक शोकांतिका ही है लेकिन राजनीतिक चश्मे से इस ओर देखना उचित नहीं है. उसने अपना जीवन खत्म किया. अब कोई भी उसकी मृत्यु का उपयोग निवेश के तौर पर करे, इसका क्या अर्थ है.