'मेरा नाम इमैन्युअल राजकुमार जूनियर है. कुछ साल पहले मुझे Osteosarcoma छूकर निकल गया और मैंने अपने पैर का एक हिस्सा खो दिया. लेकिन मैं एक फाइटर हूं, मैंने अच्छा फाइट किया. और आगे सर मैं बिल्कुल रजनी सर की तरह बनना चाहता हूं, विलेन को मारना चाहता हूं, हीरोइन को बचाना चाहता हूं और उसके लिए अपनी जान देना चाहता हूं. ऐसा ही बनना चाहता हूं'.
अब इसे आप क्या बोलेंगे? ये लाइन क्या सुशांत बोल रहे हैं या फिर फिल्म का वो किरदार जो सुशांत निभा रहे हैं. क्या दोनों की जिंदगी एक जैसी नहीं लगती? वही बड़े सपने, वही जिंदादिली और वही खुलकर जिंदगी जीने वाला जज्बा. माना आज सुशांत हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी जिंदादिली हमे खुश रहने का मौका दे रही है, स्माइल करने के लिए मजबूर कर रही है. दिल बेचारा देख कई लोग कह रहे हैं कि वे रोए, उन्हें बहुत बुरा लगा, आंखों में आंसू आ गए और फिल्म खत्म हो गई.
लेकिन मैं कहना चाहता हूं दिल बेचारा देख मैं एक बार भी नहीं रोया, आंखों में आंसू नहीं एक स्माइल थी और स्माइल इसलिए थी क्योंकि शायद सुशांत हम सभी से ऐसी ही उम्मीद लगाए हैं. उनकी ये फिल्म इस खूबसूरत जिंदगी को एक जश्न में तब्दील कर देने वाला जरिया है. हमेशा खुश रहना और वही खुशी सभी को देना, बस इतनी सी है दिल बेचारा की कहानी. तो रोने का तो सवाल ही नहीं उठता. ऐसा कर तो हम सुशांत के साथ अन्याय कर जाएंगे.
ये फिल्म नहीं सुशांत की जिंदगी है
दिल बेचारा देखने के बाद ये सवाल बार-बार उठा कि मैं ये सुशांत की फिल्म देख रहा हूं या फिर उसी की जिंदगी की एक झलकी. फिल्म को अगर बारीकी से देखेंगे तो पाएंगे कि एक नहीं दो नहीं, बल्कि कई ऐसे सीन्स हैं जो असल मे सुशांत की जिंदगी की वो सच्चाई है जिसकी वजह से हम उन्हें जिंदादिल, बेहतरीन इंसान कहते हैं. जरा फिल्म का ये सीन समझिए अब. मैनी ( सुशांत) कीजी ( संजना) के घर उसके परिवार से मिलने आया है. सीन कुछ बड़ा नहीं है, बस सभी साथ मिलकर खाना खा रहे हैं. तभी अचानक से कीजी की मां मैनी से पूछती है कि 'तुम जॉब क्या करते हो'. अब इस सवाल पर तुरंत जवाब आता है- मैं एक एस्ट्रोनॉट हूं. अगले ही हफ्ते नासा जा रहा हूं.
अब सितारों की दुनिया के करीब रहने वाले सुशांत का क्या कुछ ऐसा ही सपना नहीं था. वे भी तो एक्टिंग के अलावा इसी फील्ड में अपने रुचि दिखाते थे. कहने को ये एक फिल्म है, सुशांत सिर्फ एक किरदार निभा रहे हैं, लेकिन वो अपनी जिंदगी की सच्चाई बयां कर रहे हैं. पूरी फिल्म में सुशांत ने सभी को सिर्फ हंसाया है, सभी के चेहरे पर स्माइल लाने की कोशिश की है, लेकिन अपने सभी दुख और दर्द छिपाते गए. किसी को कुछ नहीं बताया. ना फिल्म में और ना ही असल जिंदगी में.
सिर्फ स्माइल ही स्माइल और कुछ नहीं
आप बोल सकते हैं ये तो कितनी इमोशनल बात है. लेकिन ना, मैं तो इसे उस इंसान की महानता ही मानता हूं. दिल बेचारा में उन्होंने कैंसर से जंग लड़ रही एक लड़की को जीने की नई वजह दी, तो असल जिंदगी में सुशांत ने अपनी जिंदादिली से लोगों के दुख को खुशी में बदला था. जब तक पुलिस ने नहीं बताया था, क्या किसी को पता था कि सुशांत डिप्रेशन में चल रहे हैं? बड़े से बड़े फैन को तो बस ये पता था कि सुशांत कितना मस्त बंदा है, हमेशा हंसता है और हंसाता रहता है. लेकिन शायद किसी ने सही कहा है- जब इंसान जरूरत से ज्यादा खुश नजर आए, तो भी सवाल करना चाहिए, क्या सब सही है. हमने नहीं किया, इसलिए कभी सुशांत का दर्द नहीं समझ पाए. दिल बेचारा में भी सुशांत आखिर तक अपना दर्द छिपाए, किसी को कुछ नहीं पता चला और बस वे हमेशा के लिए चले गए.
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लेकिन फिर भी मैं कहूंगा कि आंखों में आंसू नहीं चेहरे पर स्माइल थी क्योंकि फिल्म में ये भी कहा गया है कि किसी के मरने के बाद उसके चाहने वाले खूब रोते हैं, अकेले रह जाते हैं और दुख में जिंदगी बिताते हैं. क्या सुशांत को भी हम ऐसा ही ट्रिब्यूत देना चाहते हैं जहां उनके जाने के बाद लोग इमोशनल होकर सिर्फ रोएंगे? ये तो गलत हो जाएगा, सुशांत को भी तो पता चलना चाहिए कि उनके जाने के बाद लोगों ने उनकी जिंदादिली को अपने दिल में हमेशा के लिए जिंदा रखा है और सभी खूब खुश हैं, जश्न मना रहे हैं और आसूंओं की तो कोई जगह है ही नहीं.