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खूबसूरती से आतंकी दौर तक, क्या 370 के बाद कश्मीर को लेकर बदलेंगी हिंदी फिल्में?

कश्मीर की खूबसूरती और करिश्माई लिरिक्स के सहारे उस दौर के कई गाने अमर हो गए हैं. परदेसियो से ना अंखियां मिलाना, ए नरगिस मस्ताना, पुकारता चला हूं मैं, ये चांद सा रोशन चेहरा जैसे कई गाने हैं जिन्होंने ना केवल धरती पर जन्नत से लोगों को रूबरू कराने का काम किया, बल्कि बॉलीवुड के इतिहास के सबसे शानदार रोमांटिक और दार्शनिक गानों में अपना नाम दर्ज कराने में कामयाब रहे.

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शम्मी कपूर, शर्मिला टैगोर और शाहिद कपूर
शम्मी कपूर, शर्मिला टैगोर और शाहिद कपूर

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दुनिया का कोई भी फिल्म डायरेक्टर इस बात से इंकार नहीं करेगा कि किसी भी कहानी में द्वंद्व यानि टकराव की स्थिति सबसे महत्वपूर्ण होती है. ये कॉन्फ्लिक्ट बाहरी के अलावा आंतरिक भी हो सकता है. बिना किसी द्वंद्व के किसी भी कहानी की कल्पना करना भी मुश्किल है. यही कारण है कि बॉलीवुड जम्मू और कश्मीर पर अक्सर कहानियां गढ़ता आया है. धरती पर जन्नत के नाम से मशहूर कश्मीर की ना केवल सुंदरता को कैमरे पर उतारा है बल्कि इस जगह के त्रासदी और स्याह पहलुओं को भी उजागर करने में सफल रहा है.

60 के दशक में कश्मीर बॉलीवुड फिल्मों के लिए प्राइम लोकेशन मानी जाती थी. 1961 में आई फिल्म जंगली का पहला हाफ श्रीनगर के बर्फीले पहाड़ों में शूट किया गया था. शम्मी कपूर ने इस फिल्म में 'चाहे कोई मुझे जंगली कहे' गाने के साथ जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की थी. इस गाने की सफलता के साथ ही कश्मीर बॉलीवुड के अलावा टूरिस्ट्स की भी पहली पसंद बन गया था.

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इसके बाद कई फिल्मों में कश्मीर की खूबसूरती को भुनाने का काम किया गया. फिल्म कश्मीर की कली के ज्यादातर सॉन्ग्स डल झील के आसपास ही शूट हुए थे. कश्मीर की वादियों में साइकिल चलाती महिलाएं, स्थानीय लोगों की दिनचर्या जैसे कई एंगल इन फिल्मों में शूट हुए. वहीं तमाम फिल्मों में कश्मीर केवल गानों में ही दिखाई देता था कई फिल्में ऐसी भी रिलीज़ हुई जिसमें बैकड्रॉप ही कश्मीर को बनाया गया.

साल 1965 में आई फिल्म आरजू एक स्कींग चैपिंयन और स्थानीय लड़की की लव स्टोरी पर आधारित थी. कश्मीर के बैकड्रॉप पर बनी साल 1965 में रिलीज़ हुई शशि कपूर स्टारर 'जब जब फूल खिले' बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी.

कश्मीर की खूबसूरती और करिश्माई लिरिक्स के सहारे उस दौर के कई गाने अमर हो गए हैं. परदेसियो से ना अंखियां मिलाना, ए नरगिस मस्ताना, पुकारता चला हूं मैं, ये चांद सा रोशन चेहरा जैसे कई गाने हैं जिन्होंने ना केवल धरती पर जन्नत से लोगों को रूबरू कराने का काम किया, बल्कि बॉलीवुड के इतिहास के सबसे शानदार रोमांटिक और दार्शनिक गानों में अपना नाम दर्ज कराने में कामयाब रहे. कश्मीर की डल झील में शूट हुआ 'ये चांद सा रोशन चेहरा' को आज भी बॉलीवुड के सबसे रोमांटिक क्लासिक में शुमार किया जाता है.

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लेकिन वक्त के साथ कश्मीर की स्थानीय राजनीति बदलती गई और इसका असर फिल्मों में भी नजर आता रहा. भारत पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव, आतंकी घटनाओं, अलगाववाद और कश्मीर में भारतीय सेना के जमावड़े के बाद तमाम फिल्मों में दिखने वाला ख़ूबसूरत कश्मीर बदलता गया. बर्फीले पहाड़, खूबसूरत वादियां अब भी बैकड्रॉप में दिखतीं, लेकिन फिल्मों का सब्जेक्ट प्रेम और रोमांस से राजनीति, युद्ध, आर्मी के मिशन, आतंकवाद जैसे विषयों की ओर शिफ्ट होता गया.

90 के दशक में कश्मीर में बढ़ते तनाव के चलते फिल्मों के सब्जेक्ट्स में जबरदस्त बदलाव देखने को मिला. बॉलीवुड इस खूबसूरत घाटी में फैले डार्क पहलुओं को उजागर करने की कोशिश करने लगा. ऋतिक रोशन की मिशन कश्मीर से लेकर तहान, फना, रोजा, सिकंदर, हैदर जैसी तमाम फिल्में ऐसी रहीं जो कश्मीर की अंतड़ियों में फैली त्रासदी को दिखाने की कोशिश करती नजर आईं.

ये फिल्में केवल वहां की सररियल वादियों को ही कैमरे पर कैद नहीं कर रही थीं, बल्कि कश्मीर में सेना के ग्रे शेड्स, कश्मीर की आम जनता और वहां के सोशल और दूसरे पॉलिटिकल कल्चर को भी रूपहले पर्दे पर दिखाने की कोशिश कर रही थीं.

कई बार यह भी दिखाने की कोशिश हुई कि कैसे घाटी में एक पूरी पीढ़ी अपनी जिंदगी में हिंसा के चलते बदले की आग के लिए उतारू है, कैसे कुछ मौकापरस्त और अलगाववादी लोग अपनी राजनीति चमकाने के लिए ऐसे युवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे कई प्रतिद्व्न्द और टकरावों को खूबसूरत वादियों से दिखाकर कई फिल्मों के सहारे ही बाकी देश के लोग यहां की स्याह सच्चाई से रूबरू हुए.

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कश्मीर की रियलिटी के हिसाब से उसे लेकर बॉलीवुड फिल्मों का नैरेटिव तेजी से बदला है, ऐसे में केंद्र सरकार के ताजा फैसले के बाद उम्मीद की जा सकती है कि कश्मीर में चीज़ें तेजी से सकारात्मक दिशा में बदलेंगी. गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने की घोषणा कर दी है. सरकार ने साफ किया कि कश्मीर को राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा ताकि वहां फैले आतंक पर काबू पाया जा सके और आम कश्मीरियों की जिंदगी में विकास की राह मजबूत हो सके.

इस कदम को कश्मीर और बाकी देश के लोगों को साथ लाने के प्रयास के तौर पर भी देखा जा रहा है. देखना ये होगा कि कश्मीर में चीजें वाकई सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ेगीं या वहां के हालात बद से बदतर होते जाएंगे, ऐसे में ये देखना भी दिलचस्प होगा कि आगे आने वाले सालों में कश्मीर को लेकर बॉलीवुड आतंक और द्वंद्व के बने बनाए डार्क नैरेटिव पर ही काम करेगा या फिर कश्मीर से जुड़ी फिल्मों में भी बदलाव देखने को मिलेगा.

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