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खबरों पर मत जाइए, ये है सेंसर में अटकी 'उड़ता पंजाब' का पूरा सच

खबरों में कहा जा रहा है कि सेंसर बोर्ड के सदस्यों में ही मतभेद था, जबकि ऐसा नहीं है.

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फिल्म के प्रमोशन के दौरान शाहिद कपूर, आलिया भट्ट और करीना कपूर खान
फिल्म के प्रमोशन के दौरान शाहिद कपूर, आलिया भट्ट और करीना कपूर खान

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शाहिद कपूर की 'उड़ता पंजाब' सेंसर में अटक गई है. पंजाब में ड्रग्स के हालात को लेकर बनी इस फिल्म को फिल्म सेंसर बोर्ड ने ढेरों गालियां होने की वजह से कुछ कट सुझाए थे. उसे इन गालियों को लेकर आपत्ति थी और एक-दो सीन्स को टोन डाउन करने के लिए कहा गया था. फिल्म को अभिषेक चौबे ने डायरेक्ट किया है और शाहिद के अलावा आलिया भट्ट, दिलजीत दुसांझ और करीना कपूर खान भी हैं.

कहां है गड़बड़
हालांकि खबरों में कहा जा रहा है कि सेंसर बोर्ड के सदस्यों में ही मतभेद था. जबकि ऐसा नहीं है. अगर सूत्रों की मानें तो फिल्म को चार सदस्यों और एक आरओ ने देखा. फिल्म में गालियों का जबरदस्त इस्तेमाल है और बोर्ड के सदस्यों ने 70 से लेकर 100 गालियों तक के आंकड़े दिए और इन्हें हटाने के लिए कहा था. बोर्ड गालियों को हटाने के मामले में एकमत है, लेकिन अंतर वाली बात सिर्फ इनकी संख्या को लेकर है.

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​सूत्र बताते हैं कि फिल्म को लेकर डिफरेंस ऑफ ओपिनियन कतई नहीं है, डिफरेंस सिर्फ गालियों की संख्या को लेकर ही है. ​यही नहीं फिल्म में एक गाना है जिसमें ड्रग्स को ग्लोरीफाइ किया गया है औऱ एक मर्डर सीन भी है जिसे कुछ टोन डाउन करने की सलाह दी गई है.

युवाओं की भाषा का दिया तर्क
सूत्रों ने बताया कि उड़ता पंजाब में चू#$, हरा#जा#, गां#, माद#$#!#, फ$, गश्$&, लु$#! और बहन#$$ जैसी गालियों की भरमार है, हालांकि फिल्म से जुड़ी टीम का तर्क है कि फिल्म में पंजाब के युवाओं की भाषा का इस्तेमाल किया गया है. जिस वजह से इस तरह की भाषा है.

इसके अलावा, सेंसर ने शाहिद कपूर के दर्शकों पर पेशाब करने के सीन पर भी आपत्ति जताई है. ​हालांकि सूत्र कहते हैं कि फिल्म में पंजाब में ड्रग्स के कारोबार को लेकर कई तरह की ऐसी चीजें भी दिखाई गई हैं जिनसे बेवजह पंजाब की छवि खराब होती है.

फिल्म के लिए है खतरा
फिल्म सेंसर बोर्ड के सदस्यों ने अपने सुझावों के साथ रिपोर्ट सौंपी तो फिल्म की टीम ने अपने मामले को लेकर सीधे फिल्म सर्टिफिकेशन अपीलेट ट्रिब्यूनल (एफसीएटी) जाने का फैसला किया. हालांकि यह भी एक मामला रहा है कि जो भी फिल्में एफसीएटी से पास होकर आती हैं, वह बहुत ही कम सफल हो पाती हैं. इसका रिकॉर्ड हम पिछले कुछ समय में रिलीज हुई फिल्मों के मामले में भी देख सकते हैं. मसलन, जय गंगाजल, लव गेम्स, मस्तीजादे और क्या कूल हैं हम.

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एक सवाल यह भी है कि अगर सामाजिक मसले को उठाना है और जनता के बीच उस मसले को लेकर जाना है तो क्या इतनी गालियों और इस तरह के सीन्स से उसकी पहुंच सीमित नहीं हो जाती है.

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