scorecardresearch
 

विशाल की फिल्मों की खासियत उनकी मजबूत नायिकाएं हैं: शाहिद कपूर

कमीने के बाद विशाल भारद्वाज और शाहिद कपूर की जोड़ी हैदर के साथ नज़र आने वाली है. विलियम शेक्सपियर के दुखांत नाटकों में से एक ‘हैमलेट’ को ‘हैदर’ का स्वरूप देकर विशाल ने इसकी त्रासदी को एक अर्से से त्रासदियों से गुज़र रहे कश्मीर की खूबसूरत वादियों में पिरोया है. शाहिद से बातचीत के प्रमुख अंशः

Advertisement
X
शाहिद कपूर
शाहिद कपूर

‘कमीने’ के बाद विशाल भारद्वाज और शाहिद कपूर की जोड़ी एक बार फिर ‘हैदर’ के साथ नज़र आने वाली है. विलियम शेक्सपियर के दुखांत नाटकों में से एक ‘हैमलेट’ को ‘हैदर’ का स्वरूप देकर विशाल ने इसकी त्रासदी को एक अर्से से त्रासदियों से गुज़र रहे कश्मीर की खूबसूरत वादियों में पिरोया है. हैदर का किरदार निभा रहे शाहिद कपूर से बातचीत:
 हैदर बनना कितना मुश्किल था ?
जब आप हैदर की तरह जटिल किरदार निभाते हैं जिसमें कई परतें हों तो वाकई बहुत मुश्किल होता है. ‘हैदर’ उन फिल्मों में से नहीं है जिसमें आपने अपने डायलॉग्स सही बोल दिए तो आपका काम खत्म हो गया. यहां कई ऐसी बातें थी जो अनकही थी, चार लाइनों में भी कई लाइनें थीं जिन्हें मुझे अपने इमोशन से बयां करना था. आप देखेंगे इस फिल्म में मेरे चार लुक्स हैं जो एक पिता की खोज में लगे बेटे की दास्तान बयान करते हैं. सच कहूं तो अपने खोए पिता की खोज में लगे बेटे ‘हैदर’ की इस यात्रा के दौरान कई ऐसे मौके आए जब मैं खुद अपनी परफॉर्मंस से कंविंस नहीं होता था. मैं अक्सर पूछता रहता था ‘यह शॉट ठीक तो है ना’.
 
विशाल भारद्वाज की फिल्मों में क्या अच्छा लगता है ?
विशाल की फिल्मों की सबसे बडी खासियत उनकी मज़बूत नायिकाएं हैं. अब ‘हैदर’ को ही लीजिए. फिल्म अपने पिता की खोज में लगे बेटे हैदर की कहानी है लेकिन इसमें श्रद्धा और तब्बू का किरदार काफी प्रभावशाली है. सच कहूं तो अपनी फिल्मों में औरतों को इतना बड़ा स्थान देना विशाल सर की सबसे बड़ी खूबी है. मैं नहीं समझता पूरी फिल्म इंडस्ट्री में विशालजी के अलावा कोई ऐसा फिल्मकार है जो औरतों को इतने मौके देता है. मुझे याद है ‘कमीने’ में प्रियंका के महज़ 8 सीन थे लेकिन उस 8 सीन को जिस खूबसूरती से विशाल सर ने गढ़ा था वह आज भी यादगार है.
 
तब्बू के साथ काम करने का कैसा अनुभव रहा?
वे मेरी मां बनी हैं लेकिन हमारे संबंध वैसे नहीं जैसे आम तौर पर हर मां बेटे के बीच होते हैं. फिल्म में हमारा मां बेटे का संबंध काफी पेचीदा है. दरअसल जिंदगी ऐसी ही होती है वहां दो और दो चार नहीं, अक्सर पांच होते हैं और विशाल सर अपनी फिल्मों के ज़रिये ज़िन्दगी की हक़ीक़त बयां करते हैं. विशाल सर की कोशिश रहती कि वह एक ऐसा संसार रचे जिसमें बैठकर हमें लगे कि वाह हम कुछ ऐसी ही दुनिया के बारे में सोच रहे थे. अगर मैं यह कहूं तो गलत नहीं होगा कि ‘हैदर’ में दिखाये गये हर संबंध इसी तरह से काफी जटिल हैं, इनमें कई परते हैं और यही इसकी खूबसूरती है.
 
सिर्फ एक दिन की शूटिंग के लिए अपने खूबसूरत बालों की बलि देना ठीक था?
यक़ीन कीजिए आज जब यह फिल्म पूरी हो चुकी है और मुझे इसके लिए ढेरों तारीफें मिल रही है तो मुझे खुद पर गर्व हो रहा है कि मैं ‘हैदर’ का हिस्सा हूं. ‘हैदर’ ने मुझे ना सिर्फ एक बेहतर एक्टर बनने में मेरी सहायता की है बल्कि इस फिल्म ने मुझे निडर भी बनाया कि मैं सिर्फ एक दिन की शूटिंग के लिए गंजा हो सकूं. मैं समझता हूं इस तरह के फैसले लेना हर किसी के लिए मुश्किल है. शुरू में मैं भी डरा हुआ था लेकिन फिर मैंने खुद से कहा, जिसे जो कहना है कहे, मुझे यह कहानी पसंद आई है, मेरे निर्देशक की यह डिमांड है सो मैं यह ज़रूर करूंगा. हालांकि उस दौरान मुझे कई लोगों ने प्रोस्थेटिक मेक अप की सलाह दी और मैं यह कर भी सकता था लेकिन वह बहुत नकली होता और लोगों की नज़र में आ जाता. अब मैं यह बात पूरी दृढता से कह सकता हूं कि वाकई ‘हैदर’ वह फिल्म है जिसके लिए आप एक दिन तो क्या एक घंटे की शूटिंग के लिए भी गंजे हो सकते हैं.
 
‘हैदर’ ‘बैंग बैंग’ के साथ आ रही है कोई दबाव?
दबाव किस बात का? जिन दिनों हमारी फिल्म रिलीज़ हो रही है उस दौरान पांच दिन का वीकेंड है और यह पहला मौका नहीं जब दो बड़ी फिल्में एक साथ रिलीज हो रही हैं. इससे पहले ‘गदर’ और ‘लगान’ तथा ‘जब तक है जान’ और ‘सन ऑफ सरदार’ भी एक ही दिन रिलीज़ हुई थी और इन सभी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी खासी कमाई की सो ‘हैदर’ को ‘बैंग बैंग’ से डरने की ज़रूरत नहीं. मेरा यह भी मानना है कि इन दो फिल्मों में उतना ही फर्क है जितना कि धूप और छांव में होता है. जो चीजें ‘हैदर’ में हैं वह ‘बैंग बैंग’ में नहीं और जो बातें दर्शकों को ‘बैंग बैंग’ में मिलेंगी उसकी उम्मीद वह ‘हैदर’ से नहीं कर सकते.

शूटिंग के दौरान का कोई मजेदार वाकया?
श्रद्धा को एक सीन में ट्रैफिक में मारुति 800 कार चलानी थी. जब मैंने श्रद्धा से पूछा कि तुम इतनी ट्रैफिक में कार चला लोगी ना तो श्रद्धा ने कहा ‘हां, बिल्कुल. मैं बहुत अच्छी ड्राइवर हूं.’ लेकिन जैसे ही श्रद्धा ने कार रिवर्स लेने की कोशिश की तो कार जोर से किसी चीज से टकरा गयी. मैंने उनसे पूछा कि क्या हुआ तुम तो कह रही थीं कि तुम बहुत अच्छी ड्राइवर हो तो श्रद्धा ने कहा इस 1990 की खटारा कार से तो किसी का भी एक्सीडेंट हो जाए. इस पर सब हंस दिए.

Advertisement
Advertisement