किसी भी इंसान के लिए अस्पताल में दो महीने गुजारना बहुत कठिन होता है. ऐसा 'पटियाला बेब्स' फेम अनिरुद्ध दवे का कहना है. दरअसल, एक्टर कोरोनावायरस की चपेट में आ गए थे, जिसके बाद उन्हें भोपाल के एक अस्पताल में भर्ती किया गया. वहां वह पूरे 55 दिन रहे. कोरोना से जंग जीतकर अपने घर वापस लौटे.
हाल ही में एक्टर ने अपने इस 55 दिन के एस्पीरियंस को लेकर खुलकर बात की है. अनिरुद्ध ने कहा कि मैं वहां अस्पताल में मरीजों को तड़पते हुए देख रहा था. कई केसेस तो ऐसे थे जो मरीज कई तरह के इंफेक्शन की चपेट में आए हुए थे. दर्द से परेशान थे, मेरे लिए यह सब देखते हुए हिम्मत रखना बहुत मुश्किल था.
"55 दिन मेरे काफी दर्द में गुजरे. आप किसी को भी बाहर नहीं निकाल सकते, क्योंकि आईसीयू में हम सभी थे. जब मैं प्राइवेट वॉर्ड में शिफ्ट किया गया तो वहां मुझे न तो कोई शोर-शराबा मिला और न ही इमरजेंसी के हालत मुझे देखने को मिले. मेरे लिए ऐसे अकेले में पॉजिटिव रह पाना बहुत मुश्किल हो रहा था."
बता दें कि इस समय अनिरुद्ध कोटा में हैं. डॉक्टर्स की सलाह के मुताबिक, एक्टर को पूरा एक महीना बेड रेस्ट पर रहना है. अभी भी अनिरुद्ध चलते और लंबे समय तक बोलते वक्त अजीब महसूस करते हैं.
एक्टर का कहना है कि उन्हें परिवार, डॉक्टर्स, नर्सिंग स्टाफ और दोस्तों का काफी सपोर्ट मिला. एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से भी इन्हें काफी सपोर्ट मिला. अनिरुद्ध का कहना है कि कर्म मायने रखता है. अगर मैंने जिंदगी में किसी की किसी भी तरह मदद की हो या फिर कुछ अच्छा किया हो तो उसके बदले में मुझे यह दूसरी जिंदगी मिली है.
"मैंने जीवन में प्यार और अच्छी दुआएं कमाई हैं. लोगों ने मुझे ताकत दी और पॉजिटिव एनर्जी भी. मैं बात नहीं कर पा रहा था, क्योंकि मुझे ऑक्सीजन मास्क लगा हुआ था. ऐसे में मैं साइन लैंग्वेज या फिर वीडियो कॉल के जरिए बात करता था."
"साथ ही कई बार मैसेज कर दिया करता था. इन सभी चीजों के बारे में बात करते हुए मैं अभी भी काफी इमोशनल हो रहा हूं. बता दें कि एक वेब सीरीज की शूटिंग के दौरान एक्टर कोरोनावायरस की चपेट में आए थे. कुछ दिनों में ही इनकी हालत खराब होने लगी, जिसके बाद इन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया. फेफड़े केवल 85 फीसदी काम कर रहे थे, इसी बीच पत्नी शुभि अहूजा ने इन्हें अस्पताल में भर्ती कराया."
अनिरुद्ध कहते हैं कि शुभि को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें. मुझे भी नहीं पता था, क्योंकि मैं उसे पहचान नहीं पा रहा था. मेरी बॉडी और माइंड दोनों ने हार मान ली थी. मैं यह सोचने लगा था कि क्या कल मैं आंख खोल पाऊंगा.
"45 दिनों तक मेरी सांस मेरी नहीं थी. मैं ऑक्सीजन सपोर्ट पर था. मैं अपने दोस्तों से कहता था कि मुझे अपनी सांस लेनी है. इस बात में भरोसा रखा कि मान तो तो हार है, ठान लो तो जीत."