कोरोना के बढ़ते केसेज ने देशभर में डर का माहौल पैदा कर दिया है. हर दिन कोरोना के मरीजों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र में लॉकडाउन लगा दिया गया. ऐसे में शूटिंग शुरू होने की आस में बैठे जूनियर आर्टिस्ट्स की उम्मीदों पर पानी फिर गया. पिछले साल से परेशानी झेल रहे ये जूनियर आर्टिस्ट्स, परिवार की जिम्मेदारी और तंगहाली की वजह से छोटे-मोटे काम कर गुजर बसर करने को मजबूर हैं. इनमें से कई लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं. स्थिति इतनी खराब है कि उन्हें अपने लिए छोटा-मोटा काम तक नहीं मिल पा रहा है. पढ़ें आजतक की रिपोर्ट.
भावना पिछले 15 साल से जूनियर आर्टिस्ट का काम कर रही हैं. केदारनाथ, तीस मार खां, अग्निपथ, गजनी, स्लमडॉग जैसी दो सौ से भी ज्यादा फिल्मों का हिस्सा रहीं 37 साल की भावना लॉकडाउन की वजह से घर पर हैं. सिंगल मदर भावना पिछले तीन महीने से घर का किराया तक भर नहीं पायी हैं. अपनी तंगहाली बयां करते हुए भावना कहती हैं, दिक्कतों की बात करें, तो अभी रो दूंगी.
'मैं सिंगल मां हूं, पति की डेथ एक अरसे पहले हो गया है. मां के साथ मैं यहां रहती हूं. मेरे घर की आमदनी शूट पर निर्भर थी. मैंने पिछले तीन महीने से घर की रेंट नहीं दिया है. बिजली बिल तक नहीं भर पा रही हूं. कर्ज व ब्याज पर जिंदगी कट रही है. आज ही राशन वाले से उधार लेकर खाने का सामान लेकर आई हूं. इस मुसीबत में तो मैं बेटे के क्लासेज और फीस का सोच ही नहीं रही.'
'मैंने वॉचमैन की नौकरी के लिए कई जगह अप्लाई भी किया है लेकिन कहीं बात नहीं बन रही है. यूनियन वालों ने कहा है कि वे हमारे लिए कुछ पैसे का जुगाड़ करेंगे लेकिन अभी तक अकाउंट में पैसे नहीं आए हैं. उन पैसे से भी क्या ही मदद मिल पाएगी, मैं तो चाहती हूं कि काम चालू हो जाए. ताकि मैं अपने परिवार को संभाल सकूं. फिलहाल बहुत मजबूर हूं.'
45 साल के अमजद फोन पर बात करते ही रो पड़ते हैं. अमजद कहते हैं, 'पिछले दो साल से ईद में मैं अपने बच्चों के लिए कुछ कर नहीं पाया. लगभग 2 महीने से बैठा हूं. मेरा आखिरी काम एक ऐड शूट था. गवर्नमेंट ने भी यह कह दिया है कि आप जूनियर्स को अवॉइड करो और 50 के बजाय 5 लोगों को सेट पर बुलाओ, आप ही बताएं उन 45 लोगों की रोजी-रोटी का क्या होगा? शूटिंग भी अब बाहर हो रही है, ऐसे में तो उन पांच लोगों का काम छिन गया है.
'फेडरेशन भी कोशिश में लगी है कि वे हमारी मदद कर सके. कहा तो गया है कि पैसे आएंगे लेकिन अभी तक मिले नहीं हैं. रमजान के मौके पर मैं अपने दोस्त के फल की ठेली में उसके साथ खड़े होकर कस्टमर को बुलाने का काम कर रहा था. दिन के हिसाब से वो मुझे कुछ पैसे दे देता था. अब तो रमजान भी खत्म हो गया, अब क्या काम करूंगा.'
'अब तो शूटिंग के खुलने का इंतजार है. वर्ना परिवार भुखमरी से मर जाएगा. मेरे घर पर मेरे तीन बच्चे, बीवी और अम्मी-अब्बू हैं. आप ही बताएं इतने लोगों का गुजर बसर मैं कैसे करूं. अपने चॉल का किराया तक नहीं भर पा रहा हूं. मैं तो मकान मालिक से यही कहता हूं कि काम शुरू होते ही मैं उनका कर्ज उतार दूंगा.'
महिला कलाकार एसोसिएशन की लक्ष्मी बताती हैं, पिछली बार जिस तरह प्रोडक्शन हाउस और स्टार्स ने आगे बढ़कर हमारी मदद की थी. इस साल उस तरह की मदद नहीं मिल पा रही है. मदद से ज्यादा हमें काम की जरूरत है. मैं तो एक लंबे समय से घर पर ही बैठी थी. मर्द फिर भी ऑटो चलाकर, सब्जी-भाजी बेचकर अपना गुजारा चला लेते हैं लेकिन हम महिलाएं कहां जाएंगी.
मार्च महीने से काम की शुरुआत हुई थी लेकिन फिर उसे बंद कर दिया गया. हमारे यूनियन में ज्यादातर महिलाएं सिंगल, विधवा, डिवोर्सी या सिंगल पेरेंट हैं. मैं खुद सिंगल मदर हूं और खाने के लाले पड़े हैं. मैं रोजाना अपने बेटे के साथ भाई के घर खाना खाने जाती हूं और कोई चारा ही नहीं है. बस इसी इंतजार में हूं कि जल्द से जल्द शूटिंग शुरू हो और हमारी मुसीबत टले.
फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने इंप्लॉइज के प्रेसिडेंट बीएन तिवारी भी चाहते हैं कि सरकार उन्हें जल्द से जल्द शूटिंग करने की परमिशन दें. तिवारी कहते हैं, 'किसी भी कीमत पर शूटिंग शुरू होनी चाहिए. लगभग 1 लाख वर्कर्स बेकार घरों में बैठे हैं, जो भूखमरी के कगार पर हैं. अगर काम शुरू नहीं होता है, तो इनके खाने तक की नौबत आ जाएगी.'
'कई सुसाइड जैसा कदम भी उठा सकते हैं. इसलिए जितना जल्दी हो, सरकार को इसकी परमिशन देनी चाहिए. भले ही उन्हें सेट पर रखा जाए. देखिए जो भी मदद के लिए आए हैं, मैं उनका एहसानमंद हूं लेकिन क्या हेल्प व भीख में मिली हुई चीजों से कितने समय तक पेट भर पाएंगे लोग. जबतक वर्कर्स काम पर वापस नहीं लौटेंगे तब तक परेशानी का कोई हल नहीं होगा.'