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छोटी सी उमर में फांसी लगाने वाली आनंदी प्रत्यूषा को खुला खत

महज 24 साल की उम्र में आत्महत्या कर टीवी एक्ट्रेस प्रत्यूषा बनर्जी ने सबको अलविदा कह दिया. पेश है उसी भोली-भाली 'आनंदी' के नाम एक खुला खत.

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प्रत्यूषा बनर्जी
प्रत्यूषा बनर्जी

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अभी कुछ साल पहले की ही बात है. 'बालिका वधू' सीरियल में लीप आना था. वैसे तो कोई खास फर्क नहीं पड़ना था लेकिन फिर भी हमारे लिए आनंदी का मतलब थी अविका गौर. अब रियलिटी शो की तरह यहां भी लोगों को तीन ऑप्शन देकर बड़ी आनंदी के लिए अपनी पसंद चुनने को कहा गया था.

मैंने तुम्हारे लिए वोट नहीं किया था लेकिन तुम अच्छी लगी थी जरूर. चेहरे पर मासूमियत झलक रही थी. फिर इत्तेफाक से तुम ही बड़ी आनंदी बन गई और धीरे-धीरे अपनी ऐसी जगह बनाई कि तुमने इधर आनंदी के तौर पर सीरियल से विदाई ली और मैंने भी 'दर्शक' के तौर पर.

फिर तुमको मैंने देखा 'बिग बॉस' में. एक ऐसा रियलिटी शो जहां सबकी पोल-खोल हो जाती है. लेकिन तुम वहां भी एकदम वैसी ही बनी रही जैसी असल जिन्दगी में थी. भोली-भाली सी प्रत्यूषा बनर्जी. बिग बॉस में तुम्हारे पुराने बॉयफ्रेंड को बुलाया गया लेकिन तुम फिर भी मस्त-मौला रही. तुम कई बार रोई, लेकिन मेरी नजर में रोने वाले लोग बुरे नहीं हैं. बल्कि दिल के साफ होते हैं. तुम 'स्टार' थी. एक ऐसी स्टार जो लगातार कई सालों से चमक रही थी. पर शायद तुम्हारे निजी जीवन में अंधेरा था.

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तुम्हारे चेहरे को याद करते ही जगजीत सिंह की एक गजल भी याद आ जाती है. 'तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो..क्या गम है जिसको छुपा रहे हो'...अब लगता है कि शायद तुम भी हंसकर अपनी लाइफ की टेंशन छुपा जाती थी. तुम्हारे जाने के बाद लोग तुम्हारी पर्सनल लाइफ को टारगेट कर रहे हैं. कोई कहता है कि तुम जिससे शादी करने वाली थी उसका कहीं और अफेयर था. यह तुम बर्दाश्त नहीं कर सकी और खुद को लटका लिया. बिना इसका अंजाम सोचे.

अगर ऐसा है भी तो किसी इंसान की सच्चाई पता लग जाए तो उसे छोड़कर आगे निकलना बेहतर है. आखिर तुम्हारी या तुम्हारी जैसी इमोशनल लड़कियों को उनकी मां ने एक दिन पंखे से लटकने के लिए तो नहीं पैदा किया था. अच्छा- बुरा टाइम तो जिन्दगी का हिस्सा होता है. बुरा टाइम सबको परेशान करता है. पर इससे फाइट करना ही लाइफ है. अफसोस तुम महज 24 बरस में ही अपनी जिन्दगी से हार मान गई और अपने मां-बाप, रिश्तेदार और इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

लेकिन मुझे यह भी भरोसा है कि तुम जिस जहां में रहोगी 'आनंदी' बनकर ही रहोगी. भले ही इस बार तुमने सबको रुलाया हो लेकिन अब उस दुनिया में तुम सिर्फ सबको हंसाओगी. इतनी खुशियां बिखेरोगी की वहां भी सब 'आनंदिमय' हो जाएंगे. तुमने तो हमेशा के लिए आंखे बंद कर ली लेकिन तुम्हारे जाने से लोगों की आंखे अचानक खुल गई. सबको याद आ गया कि सिर्फ दौलत-शौहरत भरी जिंदगी ही खुश होने का पैमाना नहीं. इन सबके होते हुए भी कोई अकेला हो सकता है.

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