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यूरीन फ्लो से परेशान TV एक्टर, डायपर तक खरीदने के पैसे नहीं, रद्दी कागजों का इस्तेमाल कर गुजारा करने को मजबूर

FIR एक्टर गोलू उर्फ ईश्वर ठाकुर पिछले कुछ सालों से आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं. इसी बीच ईश्वर को कई बीमारियों ने भी घेर लिया है. आलम यह है कि ईश्वर अपनी हेल्थ की वजह से काम करने में भी सक्षम नहीं हैं.

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ईश्वर ठाकुर
ईश्वर ठाकुर

एफआईआर, मे आई कम इन मैडम, जीजा जी छत पर हैं, जैसे टीवी शो में नजर आ चुके ईश्वर कुमार की हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है. कोरोना के दौरान से बिना काम के सरवाइव कर रहे ईश्वर की स्थिती इतनी दयनीय है जिसे बयां कर पाना मुश्किल है. आजतक डॉट इन से बातचीत के दौरान ईश्वर हमसे अपना दर्द बयां करते हैं.

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ईश्वर बताते हैं, पता नहीं पिछले कुछ महीनों से मेरी किडनी में कोई दिक्कत हुई है. जिससे मेरा पैर भी काफी सूज गया है. इससे मेरा यूरीन पर कंट्रोल नहीं है. शुरूआती वक्त में मैं डायपर का इस्तेमाल करता था. अब पैसे भी इतने नहीं है कि वो खरीद सकूं, फिलहाल तो कागज, रद्दी न्यूजपेपर से ही काम चला रहा हूं. मैं किसी अच्छे डॉक्टर के पास चेकअप के लिए भी नहीं जा पा रहा हूं. पहले तो मैं आयुर्वेदिक के सहारे काम चला रहा था लेकिन वो भी अब बंद कर दिया है, क्योंकि उसके इलाज तक के पैसे नहीं बचे हैं.

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ईश्वर आगे कहते हैं, मेरे घर पर मां और भाई की तकलीफ इतनी ज्यादा है कि मैं अपने बारे में सोच ही नहीं सकता हूं. भाई को सिजोफ्रेनिया है, उसे पहले गर्वनमेंट अस्पताल में दाखिल करवाया था लेकिन डॉक्टर्स और अस्पताल ने हाथ खड़े कर दिए हैं. उसे नासिक की तरफ एक आश्रम में दाखिल करवाया है. उस आश्रम में मुझे हर महीने तीन हजार भरने होते हैं. आश्रम वाले पहले पांच हजार लेते थे लेकिन मेरी हालत देखकर उन्होंने तीन हजार कर दिया है. वो भी भर नहीं पा रहा हूं. वो लगातार मुझपर प्रेशर बना रहे हैं. एक बार तो उन्होंने कहा कि तुम लाइफ टाइम के लिए दस लाख रुपये लाकर दो. वहीं मां पिछले लॉकडाउन से ही बिस्तर पर हैं. उन्हें तो होश तक नहीं होता है और कपड़े पर ही पेशाब कर देती हैं. लगभग दो साल तक डायपर पर रखा था. अब तो उनके लिए भी कुछ भी कर पाने में असमर्थ हूं.

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ईश्वर आगे कहते हैं, मैंने जिन-जिन शोज में काम किया है, वहां के कई स्टार्स और क्रू ने फाइनैंसियल मदद की है लेकिन लॉकडाउन के बाद उनके भी हाथ तंग हो गए हैं. हाल ही मेरे एक शो के कैमरा दादा ने मुझे पांच हजार रुपये भेजे थे. मैं तो काम करने के लिए तैयार ही था लेकिन अब बॉडी मेरा साथ नहीं दे रही है. सूजे हुए पैर के साथ कैसे शूटिंग कर पाऊंगा. कई बार तो एहसास ही नहीं होता है कि मेरे पैर जिंदा हैं. पेशाब पर भी कंट्रोल नहीं है, तो ऐसे माहौल में शूटिंग कैसे संभव हो सकती है. मेरी स्थिति बहुत गंभीर है. ऐसी जिंदगी से तो मौत बेहतर लगती है. लेकिन अपने भाई और मां को इस बुरी स्थिती में कैसे छोड़कर जा सकता हूं. 49 साल की उम्र में किसी पर बोझ बनना क्या होता है, ये मुझसे ज्यादा कोई नहीं समझ सकता है.

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ईश्वर बताते हैं, मैं हाईप सिटी ओला गांव में बहन के साथ रहता हूं. वो ही मेरा और मम्मी का देखभाल करती हैं. बहन के पति की आमदनी भी 20 हजार से कम है, ऐसे में वो हम दोनों को कैसे संभालती हैं, वो देखकर मेरा दिल टूट जाता है. मेरा घर थाने में हैं, सोचा उसे बेचकर पैसे आएंगे, तो स्थिति ठीक हो जाएगी. बिल्डिंग ऑथराइज नहीं होने की वजह से कोई खरीदने को तैयार नहीं है. इसपर फैसला आना बाकी है. बिल्डिंग प्लान पर उसका नंबर गया है, तो अभी तक इस पर कोई डिसीजन नहीं लिया गया है. यह पता ही नहीं है कि मेरा घर रोड कटिंग में चला जाएगा या गर्वनमेंट नया बिल्डिंग बनाएगी, कोई जानकारी नहीं है.

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हालांकि मैंने हिम्मत नहीं हारी है. मुझे विश्वास है कि मैं इस बीमारी से जल्दी बाहर आ जाऊंगा, फिर ऑडिशन देना शुरू करूंगा. मैंने कोशिश भी कि एक दो बार ऑडिशन देकर देखूं लेकिन कोई काम देने को तैयार नहीं है. बीच में एक दो ऑडिशन दिया था लेकिन खराब किस्मत ऐसी है कि प्रोड्यूसर को कोई भड़का देता है कि मैं बीमार आदमी काम करने में असमर्थ है. सेट पर कुछ हो गया, तो इसका हर्जाना भरना पड़ेगा. इसी डर से कोई काम देने को तैयार नहीं है.

 

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