हां तुम मुझे भुला ना पाओगे. जब कभी सुनोगे गीत मेरे संग संग तुम भी गुनगुनाओगे. बात हो रही है उस शख्स की. जिसके लबों से फूटने वाला हर अल्फाज कानों में मिश्री घोल देता था. उन्हें शंहशाह ए तरन्नुम यूं ही नहीं कहा जाता. आज मोहमम्मद रफी की 87वीं सालगिरह है और आज उनके नहीं होने के 31 साल बाद भी जब कभी कहीं आप सुनते हैं उनके गीत. तो यूं ही संग संग गुनगनाने लगते हैं.