'एजेंडा आजतक' के मंच पर शनिवार को शुरुआत 'धर्म के नाम पे' हुई. मुददा यूपी में हो रहे धर्मांतरण का था. आमने-सामने थे राज्यसभा सांसद कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर, आध्यात्मिक गुरु चिन्मयानंद सरस्वती और जमीयत उलेमा ए हिंद के जनरल सेक्रेटरी मौलाना महमूद मदनी.
सबसे पहले बोलने वाले मौलाना मदनी ने कहा, 'उम्मीद धर्मों में हैं, लेकिन उसमें सियासत का इस्तेमाल कर तोड़ने की मुहिम चलाई जा रही है. कोशिश है समाज को बांटकर अपना काम निकालने की. स्वामी चिन्मयानंद ने भी मदनी की बात में अपने शब्द जोड़े और कहा कि धर्म का इस्तेमाल जोड़ने के लिए होना चाहिए.
कहा जा रहा है कि ये सब सुनियोजित तरीके से हो रहा है तो फिर रास्ता क्या है? इस सवाल पर मणिशंकर अय्यर बोले, मजहब की बातें आश्रम, मदरसों और ऐसे ही धर्म से जुड़े स्थानों पर रखी जाना चाहिए. डेमाक्रेसी में और जगह इस पर बात नहीं होनी चाहिए. जब हम धर्म को सियासत से जोड़ते हैं तो देश का बंटवारा होता है.
तो फिर नेहरू के मंत्रिमंडल में हिंदू महासभा के श्यामा प्रसाद मुखर्जी को शामिल किया जाता है. बाद में जब मुखर्जी संघ से जुड़ते हैं, तो आपत्ति होती है. इस सवाल के जवाब में अय्यर कहते हैं कि जब मुखर्जी ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ बातें की, तभी विरोध शुरू हुआ.
चिन्मयानंद सरस्वती कहते हैं कि देश में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई समुदाय में ही संघर्ष की बात है. इनके धर्मगुरुओं को चाहिए कि वे आपस में संवाद कायम करें. लेकिन वे ऐसा नहीं करते और दूसरे लोगों को धर्म का प्रवक्ता बनने का मौका मिलता है.
सदानंद गौड़ा के समान नागरिक संहिता वाले बयान पर मौलाना मदनी बोले लोग वेश बदलकर बातें करते हैं. जब उनसे पूछा गया कि आप प्रतीकात्मक बातें क्यों कर रहे हैं, नाम लीजिए. मौलाना बोले साफ-साफ बात करनी है तो मैं अपने बारे में करूंगा, दूसरों के बारे में नहीं. ऐसे लोग मेरे पास भी हैं और स्वामीजी के पास भी जिन्होंने वेष बदला हुआ है. हम खौफजदा नहीं हैं. हमें उम्मीद है समाज की डायवर्सिटी पर. हमें खौफ किससे है, यदि ये कहा भी जाए कि देश का धर्म अलग है और मुसलमानों का अलग तो बात यही होगी कि यहां मंदिर बनाई जाए और वहां मस्जिद. लेकिन बात ये तो नहीं होनी चाहिए.
वहीं अय्यर ने कहा कि एक पार्टी है जो सत्ता में आई है उसने एक भी अल्पसंख्यक को चुनाव नहीं लड़वाया और जिन दो को मंत्री बनाया है उनकी घर वापसी की बात हो ही नहीं रही है. देखिए इस बार एक पार्टी धार्मिक लिबास पहने कई लोगों को संसद में ले आई है. वे जब चाहे अपनी बात रखते हैं और फिर उससे घबराहट फैलती है. देखिए ये तो देश का सौभाग्य है कि देश में सबसे बड़ा बहुसंख्यक सेक्युलर है.
मोदी के टोपी पहनने से इनकार करने के सवाल पर चिन्मयानंद सरस्वती कहते हैं, देखिए ये बात लिबास की है और उसका दुरुपयोग सीता हरण के समय भी हुआ, जब रावण साधू का वेष धर के आया. मौलाना मदनी कहते हैं कि मैंने शुरू से इस टोकनिज्म का विरोध किया है. मैं नहीं चाहता कि कोई टोपी पहनकर समाज को टोपी पहनाए.
अय्यर ने कहा कि एक समय था जब रथयात्रा चल रही थी, मैं आडवाणी का विरोध करता था और उस समय मुझसे पूछा जाता कि 2014 में मैं उनका समर्थन करूंगा, तो मैं नहीं मानता. लेकिन आज मैं कहता हूं कि आडवाणी को प्रधानमंत्री होना चाहिए, क्योंकि उनसे ज्यादा बुरे लोग सत्ता में हैं.
मोदी की बात पर:
चिन्मयानंद सरस्वती कहते हैं देखिए मोदी ने जातियों की बात से ऊपर उठकर काम किया है. हर जाति के लोगों ने उन्हें समर्थन दिया. लेकिन मणिशंकर अय्यर ने बात काटते हुए कहा, 'साध्वी निरंजन ज्योति, गिरिराज सिंह को मंत्री किसने बनाया.'
मुसलमान क्या सोच रहा है
मौलाना मदनी: मुसलमानों को देश से अलग करके नहीं देखना चाहिए. यदि सियासत ऐसा करेगी तो ये देश उस सियासत को अलग कर देगी. यहां जो देश को मिलेगा वही मुसलमानों को मिलेगा. अच्छाई या बुराई.
तो क्या संसद की बहस बेमानी है
देखिए गलतियों की निशानदेही तो वहीं होती है. विपक्ष वही काम करता है. लेकिन समस्या का हल वहां नहीं है.
साक्षी महाराज को सपा ने सांसद बनाया है: अमर सिंह
ये बात उठती है कि सांसदों को कौन जिताता है, लेकिन मैं कहता हूं कि साक्षी महाराज यूपी से राज्यसभा के सांसद हैं. उन्हें सपा ने समर्थन देकर राज्यसभा भेजा है. ये वही साक्षी महाराज हैं जिनके बारे में कहा गया कि उन्होंने बाबरी मस्जिद की ईंट अपने पाखाने में लगा रखी है. दूसरा पहलू ये है कि उन्हें संसद भेजने वाले मुलायम सिंह सुबह कहते हैं कि आगरा में दंगे हो जाएंगे और दोपहर में कहते हैं वहां तो कुछ हुआ ही नहीं है. ये हमारी राजनीति की सच्चाई है.