कभी जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह और मुंबई में दहशत का दूसरा नाम रहा दाऊद इब्राहिम 25 वर्षों से भारत से फरार है. इस बीच उसके पाकिस्तान और UAE में होने की खुफिया जानकारियां भी मिलीं, लेकिन भारत सरकार अब तक उसका प्रत्यर्पण हासिल करने में सफल नहीं हो सकी है. अब तो यह भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या जिंदा रहते डॉन को भारत लाया जा सकेगा. एजेंडा आजतक के छठे सत्र में भी यही सवाल हावी रहा.
दाऊद के प्रत्यर्पण पर एजेंडा आजतक के छठे सत्र में हिस्सा लेने वाले CBI के तीन पूर्व शीर्ष अधिकारियों ने अपनी बातें रखीं.
दाऊद के प्रत्यर्पण में क्या हैं अड़चनें
दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार से जब पूछा गया कि दाऊद को भारत लाने में इतने वर्ष क्यों लग गए और क्या अड़चने हैं तो उन्होंने कहा, "दाऊद अब्राहिम को पकड़ना इसलिए मुश्किल हो गया है क्योंकि वह एक ऐसे देश में छिपा है वहां दुनियाभर के आतंकी छिपे हैं और वह लगातार इस बात को नकारता रहता है. इसी क्रम में पाकिस्तान ने हमेशा दाऊद की पाकिस्तान में मौजूदगी को कई माना नहीं है. लिहाजा द्वपक्षीय संबंधों के चलते ये काम मुश्किल हो गया है. लिहाजा यह सिर्फ दाऊद तक सीमित है. क्योंकि बीते कुछ दशकों में देश की पुलिस ने कई बड़े डॉन जैसे छोटा राजन को पकड़ने में सफलता पाई है. इसके अलावा पूरे देश में कई जगह बड़े आंतकवादियों को भी पकड़ने के काम में बड़ी सफलता मिल चुकी है."
दाऊद के गिरेबां के कितने नजदीक
सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर अनिल सिन्हा से जब पूछा गया कि क्या इस दौरान भारत कभी दाऊद को पकड़ने के करीब पहुंचा, तो उनका जवाब था, "जहां तक डॉन की बात है तो हम सभी जानते हैं कि छोटा राजन भी कभी डॉन था, उसे हम लाए. अबू सलेम भी डॉन कहलाता था, उसे भी हम गिरफ्तार करने में कामयाब रहे. डॉन ही नहीं टेररिस्ट्स को भी पकड़ा जा सकता है. हमारी फोर्सेस और इंटेलिजेंस एजेंसीज इतनी कैपासिटी और कैपेबिलिटी है कि हम किसी भी अपराधी को दुनिया में कहीं से भी पकड़ सकते हैं."
दाऊद के प्रत्यर्पण में इतना समय क्यों
अपराधियों को न्याय के दरवाजे तक पहुंचाने में लगने वाले अत्यधिक समय को लेकर उन्होंने कहा, "हमारा देश कोई शरारती देश नहीं है और न ही हमारी मीलीशिया कोई शरारती मीलीशिया है. हम एक तय न्याय प्रक्रिया के तहत चलने वाले देश हैं. इसलिए वक्त लगता है. खासकर जब किसी दूसरे देश ने किसी अपराधी या आतंकवादी को पनाह दी हो तो परेशानी बढ़ जाती है. यह परेशानी तब और बढ़ जाती है जब वह देश हमेशा इनकार की मुद्रा में हो."
पाकिस्तान का सीधा-सीधा जिक्र करते हुए अनिल सिन्हा ने कहा कि आप कभी भी उनसे पूछ लीजिए कि आपने आतंकवादियों को पनाह दे रखी है, वे कभी नहीं मानेंगे.
पेपर वर्क, देशों के भिन्न कानून हैं अड़चन
मुंबई के पूर्व कमिश्नर अपूर्व पटनायक से जब यही सवाल किया गया कि मुंबई का सबसे बड़ा दुश्मन दाऊद अब तक वापस क्यों नहीं लाया जा सका. तो उन्होंने बताया, "जिस तरह राम से बड़ा राम का नाम होता है, उसी तरह कभी दाऊद से बड़ा दाऊद का नाम था. 90 के दशक में जब मैं मुंबई गया तब वहां इलाके ऐसे होते थे- यह गवली का इलाका, यह दाऊद का इलाका. उस समय मुंबई में बिजनेस, फिल्म, राजनीति का एक नेक्सस बना हुआ था. ऐसा कोई बिजनेस नहीं होता था, जिससे दाऊद का नाम न जुड़ा हो. लेकिन 92 में सीरियल बम ब्लास्ट के बाद परिस्थितियां बदलीं. पेपर वर्क और दो देशों के अलग-अलग कानून के चलते किसी अपराधी को प्रत्यर्पित कराने में सालों लग जाते हैं."
हम दाऊद के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक करने में सक्षम
अनिल सिन्हा कहते हैं, "सर्जिकल स्ट्राइक हमारी क्षमता का उदाहरण था. हम दाऊद का यहां लाना चाहते हैं, यह मुमकिन है और यह होकर रहेगा. वक्त, हालात और जरूरत के हिसाब से ऐक्शन लिया जाएगा. हम पहले से यह कभी नहीं बताएंगे कि हम यह करने जा रहे हैं."
साथ ही अनिल सिन्हा कहते हैं आज हमारी स्थिति मजबूत है. हम किसी देश से भीख नहीं मांगते, याचना नहीं करते कि दाऊद को हमें दे दीजिए. हम हक से कहते हैं कि कानून की इस प्रक्रिया और प्रावधान के तहत इस व्यक्ति को हमें सौंपा जा सकता है.
नीरज कुमार ने वहीं कहते हैं, "दाऊद को मौत से पहले भारत कैसे लाया जाए, इसका जवाब यह है कि हमें कुछ एक्स्ट्रॉ ऑर्डिनरी सबूत जुटाने होंगे, जो दाऊद को समय पर भारत वापस लाने में मदद करे."