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असम से सीखे हैं, नए NRC से न एक भी नागरिक जाएगा, न एक भी घुसपैठिया बचेगाः अमित शाह

एजेंडा आजतक-2019 के मंच से देश के गृहमंत्री अमित शाह ने NRC (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन) को लेकर सरकार का पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि एनआरसी में धर्म के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं होनी है.

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एजेंडा आजतक में अमित शाह (Image credit: Shekhar Ghosh/India Today)
एजेंडा आजतक में अमित शाह (Image credit: Shekhar Ghosh/India Today)

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  • 'शाह है तो संभव है' सत्र में पहुंचे गृहमंत्री अमित शाह
  • नागरिकता कानून और NRC पर रखी अपनी बात

'एजेंडा आजतक-2019' के मंच से देश के गृहमंत्री अमित शाह ने NRC (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन) को लेकर सरकार का पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि एनआरसी में धर्म के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं होनी है. जो कोई भी एनआरसी के तहत इस देश का नागरिक नहीं पाया जाएगा, सबको निकालकर देश से बाहर किया जाएगा. एक भी घुसपैठिया नहीं बचेगा. अमित शाह ने कहा कि एनआरसी सिर्फ मुस्लिमों के लिए नहीं है.

शो केस में रखने के लिए कानून बनाया था?

'शाह है तो संभव है' सत्र में आजतक और टीवी टुडे नेटवर्क के न्यूज डायरेक्टर राहुल कंवल से बातचीत के दौरान अमित शाह ने सवाल उठाते हुए कहा कि एनआरसी लेकर कौन आया? आज लोग विरोध कर रहे हैं, मैं कांग्रेस अध्यक्ष और गुलाम नबी आजाद से पूछना चाहता हूं, जब 1985 में असम समझौता हुआ तो पहली बार एनआरसी की बात स्वीकार की गई थी. हमारे 1955 सिटीजनशिप एक्ट के क्लॉज 14 में 3 दिसंबर 2004 को इसे जोड़ा गया. फिर 9 नवंबर 2009 को रूल-4 जोड़ा गया, जो एनआरसी बनाने की ताकत देता है. इस दौरान कांग्रेस की ही सरकार थी. अब अपने द्वारा बनाए गए कानून पर ही हमसे सवाल कर रहे हैं. क्या कांग्रेस ने शो केस में रखने के लिए ये कानून बनाया था?

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70 साल तक अल्पसंख्यकों पर ध्यान नहीं दिया

नागरिकता कानून को एनआरसी से जोड़कर देखने के सवाल पर अमित शाह ने कहा कि देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए था. कांग्रेस ने बंटवारे के वक्त सरेंडर किया और धर्म के आधार पर बंटवारा हुआ. इसमें बहुत सारे लोग मारे गए. यहां से लाखों शरणार्थी वहां गए और वहां से लाखों यहां आए. इस दौरान बहुत से मुसलमान यहां रह गए. खैर उन्हें यहां कोई खतरा नहीं है, लेकिन बहुत सारे हिंदू, सिख, जैन वहां रह गए, लेकिन उनकी चिंता सबको है.

शाह ने कहा कि दिल्ली में 1950 में नेहरू और लियाकत अली खान में समझौता हुआ कि दोनों देश अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करेंगे. तब से लेकर अब तक के आंकड़ों को देखिए, पाकिस्तान में 3 प्रतिशत हिंदू रह गए हैं. बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की संख्या कम हो गई है. जब नेहरू-लियाकत समझौते पर अमल नहीं हुआ तब ये करने की जरूरत पड़ी. कांग्रेस ने 70 साल तक अल्पसंख्यकों पर ध्यान नहीं दिया. 

अल्पसंख्यकों को रत्ती भर भी नुकसान नहीं

अमित शाह ने नागरिकता कानून पर कहा कि देश के अल्पसंख्यकों को रत्ती भर भी नुकसान नहीं होने वाला है. क्योंकि इस कानून से किसी की नागरिकता नहीं जाएगी बल्कि यह कानून तीन देशों से धार्मिक प्रताड़ना के कारण आए हुए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का कानून है. अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को यह कानून नागरिकता देगा.

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