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इंडिया बनाम भारत बहस को बढ़ावा देना सभ्यता का अपमान होगा, बोले धर्मेंद्र प्रधान

Agenda Aaj Tak 2023: शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एजेंडा आजतक कार्यक्रम के दौरान इंडिया बनाम भारत बहस पर बात की है. उन्होंने कहा कि इसे सीमित या राजनीतिक दृष्टि से देखने वालों को कूपमंडूक (कुएं का मेंढक) कहा है. इस बहस को बढ़ावा देना सभ्यता को अपमानित करना माना है.

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एजेंडा आजतक 2023 के दौरान केंद्रीय शिक्षा एवं कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (Photo by Rajwant Rawat)
एजेंडा आजतक 2023 के दौरान केंद्रीय शिक्षा एवं कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (Photo by Rajwant Rawat)

Agenda Aaj Tak 2023: आजतक एजेंडा 2023 कार्यक्रम के सेशन 'भारतीयता का पाठ' में मुख्य अतिथि केंद्रीय शिक्षा एवं कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (Education Minister Dharmendra Pradhan) ने 'इंडिया बनाम भारत' बहस पर बात की. उन्होंने कहा कि भारत और इंडिया पर कोई डिबेट नहीं हो सकती है. हजारों साल पहले इस भूखंड को किसी भी ग्रंथ में भारत ही कहा गया है. उन्होंने कहा कि भारत बनाम इंडिया के विवाद को मैं बेबुनियाद मानता हूं और इसे बढ़ावा देना भी सभ्यता को अपमान करना होगा.

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मैकाले की वजह से है इंडिया बनाम भारत की बहस
शिक्षा मंत्री प्रधान ने आगे कहा कि अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने अपनी सुविधा के लिए भारत को इंडिया कहा, लेकिन हमारी संविधान सभा ने उसपर वितर्क-विमर्श करते हुए कहा कि 'India that is Bharat' यानी भारत को ही इंडिया कहा गया है. आजादी के 75 साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमें गुलामी की मानसिकता से बाहर आना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि 1835 मैकाले (थॉमस बैबिंगटन, जिसे लॉर्ड मैकाले (Lord Macaulay) भी कहा जाता है.) ने क्या भारत के लोक कल्याण के लिए पद्धति बनाई थी? ये तो इतिहास का हिस्सा हो चुका है कि उन्होंने भारत को लंबे समय तक गुलामी में रखने के लिए, अर्थनैतिक रूप में शोषण करने के लिए, जो मसौदा मैकाले ने बनाया था उसी की उपज है इंडिया बनाम भारत की बहस.

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शिक्षा मंत्री ने आजतक एजेंडा कार्यक्रम के दौरान आगे कहा कि मैं नहीं मानता इंडिया बनाम भारत की कोई डिबेट है. हमें कोई परहेज नहीं है इंडिया कहने में, हमें कोई परहेज नहीं होना चाहिए कि भारत क्यों कहा. और कुछ लोग इसे सीमित या राजनीतिक दृष्टि से देखना चाहते हैं, वे कूपमंडूक (कुएं का मेंढक या संकुचित अनुभव और ज्ञानवाला, अल्पज्ञ) हैं. मैं उन्हें क्षमा करता हूं, वितर्क में नहीं जाना चाहता. इस डिबेट का बढ़ावा देना सभ्यता को अपमानित करना होगा.

उन्होंने कहा कि आज हमें गुलामी की मानसिकता से बाहर आना चाहिए, आत्म स्वाभिमान से चलना चाहिए, आत्मनिर्भर होना चाहिए. डिकॉलोनाइज आज इस सभ्यता और देश का एजेंडा बन चुका है. इसलिए इस विवाद को बेबुनियाद मानता हूं.

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