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एजेंडा आजतक 2013

'इश्क के इजहार के लिए आज भी आती है गजल की याद'

'इश्क के इजहार के लिए आज भी आती है गजल की याद'
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एजेंडा आज तक का एक सत्र बहुत सुरीला रहा. इस सत्र को गजल सम्राट गुलाम अली, तलत अजीज और पंकज उदास ने अपनी मकबूल आवाजों से आगे बढ़ाया.
'इश्क के इजहार के लिए आज भी आती है गजल की याद'
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जांनिसार अख्तर ने लिखा था, हमसे पूछो गजल क्या है और गजल का फन क्या है चंद लफ्जों में आग छिपा दी जाए...
तलत अजीज ने गजल की बात यहां से बात शुरू की और फिर बातें दूर तक चलीं.
'इश्क के इजहार के लिए आज भी आती है गजल की याद'
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एजेंडा आज तक के सेशन 'हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह' का. गजल के तीनों उस्तादों ने गायकी, शायरी और गजल के अदब पर बातें की और सुर भी छेड़े.
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'इश्क के इजहार के लिए आज भी आती है गजल की याद'
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गुलाम अली ने शुरुआत में बताया कि गजल क्या है. एक जंगल में भागता हिरन जब किसी तीर का शिकार हो गया. तीर उसकी गर्दन में लगा. वह मरने लगा. तो मरते वक्त जो आखिरी आह निकली. आह बोलकर...उसको गजल कहते हैं.
'इश्क के इजहार के लिए आज भी आती है गजल की याद'
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पंकज उधास बोले कि मेरी एक नज्म थी, जिसका वीडियो भी बना था. उसकी नई पीढ़ी बहुत बड़ी फैन हुई. तब मुझे लगा कि मुहब्बत की जुबान बदली नहीं है. मेरा मानना है कि मुहब्बत के इजहार के लिए उर्दू और गजल से बेहतर कोई जुबान नहीं हो सकती.
'इश्क के इजहार के लिए आज भी आती है गजल की याद'
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इस गजल के बाद गुफ्तगू का रुख मुड़ा आजकल की ऑडियंस के मिजाज पर. तलत अजीज बोले कि रोमांस पुराना नहीं पड़ सकता, उसकी अदाएं बदल जाती हैं वक्त के साथ. उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी के एक्सप्रेशन बदले हैं.
'इश्क के इजहार के लिए आज भी आती है गजल की याद'
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माला सेखरी ने बताया कि गुलाम अली के लिए गाया था मल्लिका-ए-सुर नूरजहां ने गाना. तेरे मुखड़े पर काला काला तिल रे...गुलाम अली बोले कि सबसे बडे शायर वह थे, जिन्हें आज से 55 साल पहले गाया. रेडियो लाहौर के लिए मीर तकी मीर को गाया. सौदा को गाया. मोमिन को गाया.फिर उसके बाद फैज अहमद फैज और अल्लामा इकबाल को गाया. नासिर कादरी साहब को गाया. फराज को गाया. ये सब मेरे अजीज हैं.
'इश्क के इजहार के लिए आज भी आती है गजल की याद'
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गजलों, नज्‍मों के इस सत्र में सब मुग्‍ध हो गए.
'इश्क के इजहार के लिए आज भी आती है गजल की याद'
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मुहब्बत पर बात हुई तो गुलाम अली का दखल बनता ही था. उन्होंने सुनाया बचपन के दिनों का किस्सा, जब लाहौर रेडियो के साथ इश्क की शुरुआत हो चुकी थी. नासिर काजमी की गजल. चुपके-चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है.
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