परफेक्शनिस्ट कहे जाने वाले मशहूर एक्टर आमिर खान ने भी बुधवार को एजेंडा आज तक में शिरकत की. 'एजेंडा-ए-आमिर' सेशन में उन्होंने अपने सामाजिक-राजनीतिक और सिनेमाई पहलुओं पर तफसील से बात की. आज तक की एंकर श्वेता सिंह से बातचीत में उन्होंने साफ किया कि वह पॉलिटिकल आदमी तो हैं, लेकिन पॉलिटिक्स में हरगिज नहीं जाएंगे. पढ़िए उनकी बात, उन्हीं की जुबानी.
आप सामाजिक सरोकार के मुद्दों से जुड़े रहते हैं, क्या आप पॉलिटिकल आदमी हैं?
आमिर: हां कुछ हद तक सब हैं. जब तक हर इंसान पॉलिटिकल न हो जाए, यह देश पूरी तरह बदलेगा नहीं. यहां मतलब सबके चुनाव लड़ने से नहीं है. मसला सामाजिक रूप से जागरुक होने का है, ताकि हम सही फैसले ले सकें. मेरा मंच सिनेमा है, यहां रहकर मैं अपनी ताकतों के साथ बदलाव ला सकता हूं. लेकिन मैं पॉलिटिक्स में नहीं जाउंगा.
फैमिली की बात करें तो...
आजकल मेरे बेटे आजाद का प्ले स्कूल शुरू हो गया है. वह जाते वक्त पांव पकड़ लेता है मेरा. तो फिर मैं गोद में उठा लेता हूं. मुझे हमेशा लगा कि बच्चों के साथ कम वक्त बिता पाया. ये सोचते-सोचते 25 साल गुजर गए. फिर लगता है कि शायद इस किस्म का इंसान हूं कि काम में इतना खो जाता हूं कि अपने जरूरी रिश्तों को जितना वक्त देना चाहिए, नहीं दे पाता. अब ये स्वीकार करने का वक्त आ गया है कि मैं थोड़ा सेल्फ-सेंटर्ड आदमी हूं. पर मुझे लगता है कि मैं अच्छा पिता और अच्छा पति हूं.
आपकी जो फिल्में फ्लॉप रहीं उनका क्या?
कई बार ऐसा हो जाता है. मैं जब पुरानी और फ्लॉप फिल्मों को देखता हूं, तो लगता है कि सबसे ज्यादा मैंने इन्हीं फिल्मों से सीखा है. जो बनाना चाहते थे. वैसा नहीं बना पाए. ये बहुत कुछ सिखा देता है.
बीवी किरण आपकी फिल्में देखती हैं?
हां किरण जब जामिया में पढ़ती थीं, तो 'रंगीला' उनके कोर्स में थी. उसके पहले उन्होंने 'कयामत से कयामत तक' देखी थी, देख देख कर उसकी कैसेट घिसा दी थी. किरण और मेरी सिनेमा की सेंसिबिलिटी अलग है, पर इतनी भी अलग नहीं, जितनी दिखती है.
अब जैसे 'तारे जमीन पर', जब हमने बनाई थी तो इतना अंदाजा नहीं था कि वह इस कदर लोकप्रिय हो जाएगी. पर हो गई. पर मेरा टैग कमर्शियल का ज्यादा रहता है. इतने सालों से काम कर रहा हूं तो कैफियत आ जाती है कि अलग-अलग कहानियों को लेकर ऐसे मंच पर रखूं, जहां उन्हें ज्यादा से ज्यादा लोग देख सकें. जैसे पीपली लाइव है या तलाश है.
सरकारी विज्ञापन करने का मतलब सरकार को एंडोर्स करना तो नहीं है?
बिल्कुल नहीं. इनक्रेडिबल इंडिया का विज्ञापन करने का मतलब यह नहीं है कि मैं सरकार को भी इंडोर्स कर रहा हूं. ये देश की बात है. कोई घूमने आए तो भारत की बुरी छवि लेकर न जाए. मैं यूनिसेफ और कुपोषण को लेकर भी ऐसे ही काम कर रहा हूं.
उम्र क्या सिर्फ नंबर है...?
हां. मैं अगले साल मार्च में 49 साल का हो जाऊंगा. hj मेरा दिमाग क्यूरियस है. मैं जानना चाहता हूं. अंदर से लगता है कि 18-19 का हूं. कई बार उम्रदराज आदमी को अंकल बोल देता हूं तो वो पलटकर जवाब दे देता है कि तुमसे छोटा हूं. पर हां अभी मैं दिमाग से खुद को यंग ही समझता हूं.
आजकल के यंगस्टर्स की क्या अप्रोच है आपकी राय में?
पता नहीं. मैं अपने काम में इतना खोया रहता हूं. पर हां एक चीज है. आजकल के नौजवानों को देखता हूं, जो पहली फिल्म कर रहे हैं. तब लगता है कि यार ये पहली फिल्म में ही इतना अच्छा कर रहा है. फिर अपनी शुरुआत याद आती है तो लगता है कि मैं कितना पीछे था. यंग ज्यादा डायनमिक हैं.
खान राइवलरी का सवाल...
देखिए मैं अपने लिए जवाब दे सकता हूं. मेरे मन में किसी के लिए नेगेटिव ख्याल नहीं है. इसके लिए मैं अपनी अम्मी का शुक्रगुजार हूं. उनकी परवरिश ऐसी रही. तो जब किसी का काम पसंद आता है, तो खुशी होती है. मेरे साथ ऐसा नहीं होता कि यार इसने अच्छा काम कैसे किया. मैंने क्यूं नहीं किया.
जब मैं छोटा था और मैच खेल कर आता था तो अम्मी पूछती थीं कि जीता या हारा? मैं कहता जीता, फिर वह गले लगा लेतीं. फिर कहतीं कि बेटा आज जो हारा होगा उससे भी उसकी अम्मी ने ऐसे ही पूछा होगा, लेकिन उसने जवाब दिया होगा कि वह हार गया है. तब मुझे लगता कि मैंने उसे हराकर गलती तो नहीं कर दी. तो अम्मी की परवरिश ऐसी थी.
जब मैं किसी का काम देखता हूं, जैसे मैंने मुन्नाभाई में संजू का काम देखा, तो इतना मजा आया. जब मैंने रणबीर का काम देखा, बर्फी में, तो बहुत अच्छा लगा. इसमें कंपटीशन की फीलिंग कैसे आ सकती है. उनके अच्छे काम से मैं बुरा कैसे हो जाऊंगा.
क्या है इस सोच की वजह...?
बचपन मैं टेनिस बहुत खेलता था. काफी अच्छा था. महाराष्ट्र में सब जूनियर में रैंक प्लेयर था. मैच के पहले टेंस रहता था. नींद नहीं आती थी. मैच खेल आता, तो अम्मी पूछती जीता या हारा. आम तौर पर जवाब हां होता, वह गले लगाती, फिर दस मिनट बाद पूछती, जो लड़का तुमसे हारा है, वह भी इस वक्त घर पहुंचा होगा. उसकी अम्मी ने पूछा होगा, जीता या हारा और उन्हें बहुत बुरा लग रहा होगा. एकदम से मुझे लगने लगा कि मैंने क्यों हराया.
तो अम्मी की परवरिश ऐसी थी. वह कुछ सोचकर नहीं सिखा रही थीं. पर फिर भी सिखा दिया कि हर इंसान को दूसरे का सोचना चाहिए.ये काबिलियत सबमें नहीं होती.
सलमान खान पर...
सलमान खान मुझे बड़ा स्टार है. वह बस बेल्ट-वेल्ट हिलाता है और फिल्म चल जाती है. मैं चिंता में मरा रहता हूं कि स्टोरी ठीक है या नहीं, एक्टिंग हुई कि नहीं...तो मैं सलमान को यूं देखकर खुश होता हूं.
मिस्टर परफेक्शनिस्ट से सवाल-जवाब
'तारे जमीं पर' की कंट्रोवर्सी पर क्या बोले आमिर?
जब अमोल गुप्ते आए तो मैंने कहा कि मैं जब प्रोड्यूस करता हूं तो डायरेक्टर भी अपनी च्वाइस का रखता हूं. उन्हें ये शर्त पता थी. 6 महीने बिताने के बाद मुझे लगा कि अमोल को ही करना होगा. मगर एक हफ्ते के बाद मेरा कॉन्फिडेंस डगमगा गया. तो मैंने एक हफ्ते के बाद उनकी स्क्रिप्ट वापस कर दी. कहा कि जो भी आज तक इस पर खर्चा किया है, वो नही माना जाएगा. मगर चूंकि मेरा भरोसा हट गया है इससे, तो काम नहीं कर पाऊंगा. उसके साथ काम करिए, जिसको पूरा यकीन हो इस पर. कानूनन स्क्रिप्ट मेरी हो सकती थी. मगर नैतिक हक तो अमोल का ही था. अमोल गुप्ते दो दिन बाद आए और बोले कि मैं बतौर डायरेक्टर हट जाता हूं. आप इसे कंटीन्यू करिए एज प्रॉड्यूसर और एक्टर. वह बोले कि आप इसे डायरेक्ट करिए. ये है कहानी तारे जमीन पर.
आमिर को गुस्सा किस बात पर आता है...
बहुत कम आता है. जब कोई झूठ बोले, तब शायद
आपकी बॉडी भी एक्टिंग का कमाल हिस्सा होती है. धूम 3 के एक ट्रेलर में आप शायद अपने कान भी इस्तेमाल करते दिख रहे हैं?
जब एक्टर वाकई किरदार में खो जाता है, तो सिर्फ एक्सप्रेशन या डायलॉग की बात नहीं होती, वो हर चीज में नजर आता है. कान मेरे बचपन से बहुत बाहर निकलते हैं. पीके में उन्हें और बाहर निकाला गया है.
आमिर खान एयरपोर्ट से टैक्सी में होटल आते हैं. इतने सहज हैं, आप फिल्म करते हुए आंदोलन में उतरे. क्या राजनीति में आने का इरादा है?
नहीं राजनीति नहीं करूंगा. मैं सिनेमा और कम्युनिकेशन के मंच से ही अपना काम करूंगा.