पंचायत आज तक के चौथे सेशन में महिलाओं की सुरक्षा पर बात हुई. इस सेशन का टॉपिक था, 'वोट लो सुरक्षा दो.' बहस में हिस्सा लिया राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरमैन ममता शर्मा, अभिनेत्री किरण खेर और सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने.
ममता शर्मा से पूछा गया कि महिलाओं की सुरक्षा को लेकर आयोग ने अब तक क्या रोल निभाया है? जवाब में उन्होंने कहा कि अगर नेशनल कमीशन बना है, तो वह भी कांग्रेस के समय से. मैं इस बार पांचवी बार चुनाव लड़ी हूं. 93 से लड़ रही हूं. जमीनी समस्याओं से वाकिफ हूं. अगर सभी राजनीतिक दल चाह लें तो कोई भी बिल, महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का बिल भी पास हो सकता है. 1993 में जब मैंने पहला चुनाव लड़ा था, उस वक्त पंचायती राज लागू हुआ था. तब महिला सरपंच कहती थी कि मेरे पति मेरी जगह बैठ जाएंगे. मगर अब आलम यह है कि सरपंच आकर हक से पूछती है कि मेरी कुर्सी कहां है?
कविता कृष्णन से सवाल पूछा गया कि 16 दिसंबर के बाद आंदोलन हुए, कानून भी बना. पर कुल जमा हासिल क्या हुआ. जवाब में उन्होंने कहा कि हम लोग अपने अधिकार बतौर नागरिक के रूप में मांग रहे हैं. और ये राजनीतिक दल सहमति का रोना रो रहे हैं. वह गलत है. कई बार कई मुद्दों पर काफी विरोध के बाद भी बिल पास होते रहे हैं. मगर महिलाओं को आरक्षण के मुद्दे पर टालमटोल करते रहते हैं. चुनावी मौसम में महिलाओं की तरफ से जो बात मैं कहना चाहती हूं, वह यह है कि अब ये तर्क बंद होने चाहिए कि हम आपको सुरक्षा देंगे, मगर आप लक्ष्मण रेखा नहीं पार करें.
किरण खेर ने कहा कि आपको मुझे देखकर क्या लगता है, किसी और की चल सकती है. डेमोक्रेटिक फैमिली है, सब बोलते हैं. पर आखिर में मेरी ही चलती है. मुझे तो चाय बनानी भी नहीं आती. कोई न कोई खाना बनाने वाला मिलता है.
किरण खेर ने कहा कि ये सिर्फ मेनिफेस्टो की बात नहीं है. मानसिकता की बात है. जो हमारे देश में है ही नहीं. एक पुरुष प्रधान समाज है. आपको कोई भी मेनिफेस्टो दे दे. दिल्ली और मुंबई में 40-40 रुपये में पॉर्न वीडियो अपलोड हो सकते हैं. क्या असर होगा उन लोगों पर, जिनका बहुत खुला संपर्क नहीं रहा. पढ़े लिखे लोग नहीं हैं. जब तक औरतों को इस लायक नहीं बनाएंगे कि वह अपने बेटों और बेटियों को एक जैसी परवरिश दें. अपने उदाहरण से, तब तक दीर्घकालिक असर नहीं नजर आएगा.
किरण खेर से सवाल किया कि महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर सहमति क्यों नहीं? जवाब में उन्होंने कहा कि कांग्रेस से पूछिए. इन्हीं के सपोर्टर शोर मचाते हैं और पास नहीं होने देते. आरजेडी, समाजवादी पार्टी वगैरह. हमने अपनी पार्टी के अंदरूनी ढांचे में रिजर्वेशन कर दिया है. रही आसानी से टिकट की बात, तो वह काम करने से मिलता है. मर्दों को भी आसानी से टिकट नहीं मिलते. लायक भी तो होना चाहिए. वर्ना वही होगा कि लालू जी चले गए और राबड़ी जी आ गईं. ऐसा नहीं होना चाहिए.