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मोदी ने जो गुजरात में किया, देश में करेंगे, तो सत्यानाश हो जाएगा, पंचायत आज तक में बोले मनीष तिवारी

'पंचायत आज तक' के पांचवे सेशन का विषय था '60 साल, 60 महीने, 60 दिन'. जाहिर है, इस समयावधि का मतलब तीन अलग-अलग पार्टियों से है. बीजेपी के पीएम उम्मीदवार कहते हैं कि कांग्रेस को इस देश ने 60 साल दिए, उन्हें बस 60 महीने का वक्त दिया जाए.

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पंचायत आज तक में राहुल मेहरा, सुशील मोदी, मनीष तिवारी
पंचायत आज तक में राहुल मेहरा, सुशील मोदी, मनीष तिवारी

'पंचायत आज तक' के पांचवे सेशन का विषय था '60 साल, 60 महीने, 60 दिन'. जाहिर है, इस समयावधि का मतलब तीन अलग-अलग पार्टियों से है. बीजेपी के पीएम उम्मीदवार कहते हैं कि कांग्रेस को इस देश ने 60 साल दिए, उन्हें बस 60 महीने का वक्त दिया जाए.

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इसमें 'तुरुप का इक्का' टाइप बयान दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार की ओर से आता है, कि उन पर हमलों की बौछार करने से पहले कम से कम 60 दिन तक तो धैर्य रखा जाए. राजनीति में वायदे पूरे करने की समय-सीमा अलग-अलग दल किस आधार पर तय करते हैं और वोटरों पर इसका क्या असर होता है, इस पर बात हुई इस सेशन में.

बीजेपी की ओर से थे बिहार की इकाई के शीर्ष नेता सुशील मोदी, कांग्रेस से थे केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी और आम आदमी पार्टी का मोर्चा युवा प्रवक्ता राहुल मेहरा ने संभाल रखा था.

सवाल (सुशील मोदी से): मोदी कैसे 60 महीने में बदल देंगे देश?
सुशील मोदी: इसका मतलब ये है कि एक टर्म तो दीजिए. अगर वह अच्छा हुआ तो लोग आगे भी मौका देंगे. देखिए भाषण के अंदर जनरलाइज करना एक बात है. पांच साल के अंदर कायाकल्प नहीं हो सकता. बदलाव लाया जा सकता है कि लोगों को यकीन हो जाए कि चीजें बदल सकती हैं. जैसे अटल जी को 6 साल मौका मिला तो उन्होंने काम करके दिखाया. हम बिहार में सरकार में थे 7 साल के लिए. हमने बदलाव दिखाया.

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सवाल (मनीष तिवारी से): मनीष जी, मोदी दावा कर रहे हैं और उन्हें सुनने के लिए लोग इकट्ठा हो रहे हैं. क्या आपको वाकई लगता है कि जो वह गुजरात में कर गए और अब देश में करने का दावा कर रहे हैं, वह सच होगा?
मनीष तिवारी: पहली बात, सुशील मोदी जी हम लोगों से छात्र और युवा आंदोलन में वरिष्ठ रहे हैं. बात काटते अच्छा नहीं लगता. सही कहा उन्होंने. इन्होंने 6 साल सरकार चलाई और ऐसी चलाई कि अगले 10 साल मौका नहीं मिला.

चंद्रशेखर जी का भी यही नारा था. 91 में वह कहते थे कि 4 महीने बनाम 40 साल. मगर देश ने कांग्रेस पार्टी को मौका दिया. तो ये पुरानी बोतल में पुरानी ही चीज है.

सवाल (राहुल मेहरा से): केजरीवाल सरकार ने 60 दिन मांगे थे. आधा वक्त हो गया. कुछ भी नहीं कर रहे.
मेहरा: मीडिया ने तो हमें 60 मिनट भी नहीं दिए. गाज गिरानी शुरू कर दी. मगर हम स्वागत करते हैं. जो पुरानी राजनीति थी कि लोगों का यकीन उठ चुका था. हमने लोगों का थोड़ा बहुत विश्वास जगाया है. हम तो कह रहे हैं कि पांच साल की सरकार है. हमें बस चार महीने दे दीजिए.

देखिए कांग्रेस ने 45 साल लगा दिए, जनलोकपाल लाने में. जिसे हम जोकपाल कहते हैं. हम ला रहे हैं जनलोकपाल. ये लोग पुलिस और सीबीआई को बंधुआ बनाकर रखते हैं.

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सवाल (सुशील मोदी से): मोदी हर जगह कहते हैं, जैसे गुजरात में किया. देश भर में करूंगा. केंद्र में आपकी अभी तक अधिकतम 182 सीटें आई हैं. संभावना है कि सरकार बनाने के लिए आपको गठबंधन पर निर्भर रहना होगा. कैसे करेंगे?
सुशील मोदी: मसला अहमदाबाद या दिल्ली का नहीं है. अगर नरेंद्र मोदी 180 पर रुक गए तो हम बेहतर सरकार नहीं दे पाएंगे. खुद मोदी भी ये बात मानते हैं. इसलिए हमने मिशन 272 लॉन्च किया. कई साझेदारों से बेहतर सरकार चलाना मुश्किल होता है.

मजबूरी तो अटल जी की भी थी. मनमोहन की भी थी. मगर अटल जी ने 22 दलों की सरकार चला कर दिखाई. लेकिन अगर गठबंधन के मुख्य दल की ज्यादा सीटें न आएं, तो दिक्कत होती है.

सवाल (सुशील मोदी से): सर्वे दिखा रहे हैं कि आपको 180-200 जितनी सीटें मिलेंगी. तो क्या वह भी मनमोहन जैसी सरकार होगी?
सुशील मोदी: मनमोहन सरकार तो महाकमजोर रही. 200 के आसपास में भी अच्छी सरकार चल सकती है. ये हमने साबित किया. मनमोहन सरकार के लिए हम मनमोहन को दोषी नहीं मानते. सोनिया गांधी को दोषी मानते हैं. पावर किसी के पास और काम किसी को सौंप दिया. मनमोहन के पास निर्णय लेने की शक्ति नहीं थी.

सवाल (मनीष तिवारी से): मोदी कहते हैं कि अटल ने गठबंधन सरकार चलाई. कई ढांचागत विकास हुए.
मनीष तिवारी: कारगिल, लाहौर, कंधार. सब इनके टाइम पर हुआ. जहां आप घोटालों की बात कर रहे हैं. अटल राज में माइग्रेशन घोटाले से लेकर पेट्रोल पंप आवंटन तक लंबी लिस्ट है. विपक्ष के आरोप बेबुनियाद हैं. यूपीए की सोनिया जी चेयरपर्सन हैं. उनकी एक राय है, जिसे सरकार गंभीरता से लेती है. मगर ये आरोप कि 10 साल में बैकसीट ड्राइविंग हुई है. गलत है. सुशील जी का दोष नहीं है. ये संघ और बीजेपी की कार्यप्रणाली होगी, जिसे वह समझते होंगे. ये इनकी अपनी समझ होगी. मगर कांग्रेस पर लगा इल्जाम बेबुनियाद है.

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सवाल (मनीष तिवारी से): लेकिन करप्शन के मामले में आप कहीं आगे दिखते हैं?
मनीष तिवारी: एक अनुमानित काल्पनिक नंबर को बता-बता कर आपने कोल घोटाला चलाया. मगर जब सत्य संसदीय कमेटी रिपोर्ट से सामने आया, जिसमें बीजेपी भी शामिल थी. उसमें बताया गया कि कैग ने सनसनी फैलाने के लिए ये रिपोर्ट बनाई. जहां तक 2जी ऑक्शन की बात है. 1994 से 2005 तक जो नीति रही, उसमें एनडीए भी शामिल था.

हमने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर फैसला बदला. आज कॉल रेट्स दुनिया में सबसे सस्ते हैं. टेलिकॉम सेक्टर की हालत बहुत अच्छी है.

सुशील मोदी: मैं नरेंद्र मोदी को तब से जानता हूं, जब से वह संघ के प्रचारक थे. लोग बेबुनियाद आरोप लगाते हैं.
सहयोगी दलों पर हमारा काम चल रहा है. हाल में टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू से मुलाकात हुई. जितने भी सहयोगी दल थे. बीजू जनता दल, टीएमसी वगैरह. अगर कल हमें 200 से ज्यादा सीटें मिल जाएंगी, तो अधिकांश क्षेत्रीय दल बीजेपी के साथ आ जाएंगे.

सवाल (सुशील मोदी से): मोदी को 200 से कम सीटें आती हैं तो सरकार नहीं बनानी चाहिए?
सुशील मोदी: अटल जी की सभाएं मैंने देखी हैं. कभी एक लाख से ज्यादा लोग नहीं आए. मगर आज टिकट लेकर भी चार-चार लाख लोग आ रहे हैं.

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आप जो कल्पना कर रहे हैं, वह होगा ही नहीं. जनता ने मन बना लिया है. सारे सर्वे फेल कर जाएंगे. लोग कास्ट और पार्टी से ऊपर उठकर वोट डालना चाह रहे हैं. अब देश की जनता फ्रैक्चर्ड मैंडेट नहीं चाहती. आज मैं जो देश का मूड देख रहा हूं. इससे पहले 77 में देखा था. मुझे उम्मीद है कि पूर्ण बहुमत मिलेगा.

सवाल (मनीष तिवारी से): बीजेपी कहती है कि मोदी फ्लेक्सिबल हैं. वह भी अटल की तरह गठबंधन जुटा सकते हैं.
मनीष: उन्होंने जो गुजरात में किया. वह देश में करेंगे, तो सत्यानाश हो जाएगा. वहां जिस तरह से अल्पसंख्यकों को मारा गया. भारत की कल्पना को तोड़ा-मरोड़ा गया. उसकी भारत के इतिहास में कोई मिसाल नहीं है.

गठबंधन की सरकारें इस देश की वास्तविकता हैं. मगर आज की तारीख में शिवसेना और अकाली दल को छोड़कर कोई इनके साथ नहीं है. और पंजाब में अकाली दल ने बीजेपी की छीछालेदर कर रखी है.

सवाल (मनीष तिवारी से): आम आदमी पार्टी कांग्रेस का प्रीपोल पार्टनर रहेगा या पोस्ट पोल?
मनीष तिवारी: आम आदमी पार्टी को हमने कहा कि आपको अब मौका है दिल्ली में अपने वादे पूरे करिए.

मेहरा: मगर ये हमें काम नहीं करने दे रहे. मुद्दों पर बात करिए. आप पीएम भी चुनते हैं देश का, तो चुप चुपकर करते हैं.

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मनीष: आम आदमी पार्टी ने बातों के लप्पे बहुत मार लिए. अब समय आ गया जब आपको एजिटेटर से एडमिनिस्ट्रेटर बनना होगा. अब उन्हें मौका मिला प्रशासन का. वह हो नहीं रहा, तो भाग रहे हैं. कहते कि आपने एलजी को चिट्ठी क्यों दे दी. आप लिखकर दे दीजिए कि नहीं चाहिए समर्थन. आप कहते हैं कि फंस गए. फंस तो आप लोग गए हैं. वायदे पूरे नहीं कर पा रहे.

मेहरा: मनीष जी आप तो वरिष्ठ मंत्री हैं. हम नौसिखिए हैं. हमें काम तो करने दीजिए. जुम्मा जुम्मा 45 दिन हुए हैं. नोट करिए मनीष जी. 20 प्वाइंट बता रहा हूं. अगर आप कहते हैं कि आम आदमी से जुड़ना अराजकता है, तो यही सही.

सुशील मोदी: गुजरात के दंगों का जिक्र किया. 84 के दंगे क्यों भूल जाते हैं. ये आम आदमी पार्टी और कांग्रेस वाले एक दूसरे की मदद करते हैं और टीवी पर झगड़ते हैं. हमने 7 साल नीतीश जी के साथ काम किया. कभी इस तरह नहीं झगड़े. तो ये लोग क्यों सरकार चला रहे हैं. आम आदमी पार्टी में हिम्मत है तो 24 घंटे में इस्तीफा दे दें.

मेहरा: बीजेपी की मंशा साफ आ रही है. पांच उदाहरण, कैसे बीजेपी कांग्रेस भाई-भाई हैं. ये दोनों प्रो करप्शन हैं. 45 साल से जनलोकपाल लिए बैठे हैं. सामने मुखौटे हैं, पीछे इकट्ठे हैं. दूसरा, इनके सारे के सारे नेता क्रिमिनलाइजेशन को फेवर करते हैं. वुमन रिजर्वेशन के मुद्दे पर ये लोग कुंडली मारे बैठे हैं.

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सवाल (राहुल मेहरा से): आपने भी तो पचास फीसदी टिकट नहीं दिए. बस अपने संविधान में शामिल कर लिया. फिर तर्क दिया कि सही कैंडिडेट नहीं मिले. यही बीजेपी और कांग्रेस कहती है.
आपके मंत्री सोमनाथ भारती स्कैम कर रहे हैं. भारती ने सफाई में कहा कि किसी ने मेरे नाम का बेजा इस्तेमाल किया. उन्होंने ये नहीं कहा कि आरोप गलत हैं. आम आदमी पार्टी ने अंदरूनी खाप पंचायत बुलाई. उसने तय किया कि ये जो कह रहा है, सही कह रहा है. केजरीवाल से पूछा गया. अंबानी के खिलाफ कंप्लेन आई. आपने एफआईआर दर्ज की. मगर भारती के खिलाफ कुछ नहीं किया. जब पत्रकारों ने इस पर सवाल पूछने की कोशिश की. तो आपने 15 पुलिस वाले बुलाकर खदेड़ दिया.
मेहरा: भारती पर आपने आरोप लगाए. उन्होंने आपको लीगल नोटिस भेजा. आम आदमी. छोटा आदमी कहां तक जाएगा. एड़ियां रगड़ जाती हैं, हक मांगते मांगते. आपने अंबानी की बात की. 54 हजार के सालाना नाटक का बीजेपी कांग्रेस ने पर्दाफाश क्यों नहीं किया.

आप अराजकता फैला रहे हैं. आपका जिम्मेदार चैनल है. यूं आरोप मत लगाइए.

सवाल (मनीष तिवारी से): आपको केजरीवाल की कथनी करनी में फर्क लगता है?
मनीष: मैं इस बात में नहीं पड़ना चाहता. ये दिल्ली की जनता तय करेगी. आपके श्रोता ने 1984 के दंगे का अहम सवाल उठाया था. जब दिल्ली और देश के बाकी हिस्सों में जो हुआ, वह शर्मनाक और निंदनीय है. उसका एक इतिहास है. 1980-95 का जो दौर था. जिसमें लगभग तीस हजार लोग आतंकवाद की आग में जलकर भस्म हो गए. मेरे पिता सांसद थे. उन्हें 3 अप्रैल 1984 को चंडीगढ़ में गोली मार दी गई थी. शायद ही कोई परिवार हो, जो अछूता रह गया. बहुत मुश्किल से हमने वो जख्म भरे. हम ये नहीं कहते कि सजा नहीं होनी चाहिए. मगर एक वक्त है, जब आपको आगे बढ़ना होगा.

गुजरात पर क्यों सवाल उठाते हैं. क्योंकि वहां के जो मुख्यमंत्री हैं. तब भी थे. उनकी तरफ से एक शब्द खेद का, सांत्वना का नहीं निकलता.

मैं भी इंसाफ मांग रहा हूं. 1984 में जिन लोगों ने मेरे पिता का कत्ल किया था. उन पर कोई मुकदमा नहीं हुआ. जहां तक कांग्रेस की बात है. सही कहा, राहुल गांधी जी ने. कुछ नाम आए थे. उन पर कार्रवाई हुई. मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है.

गुजरात पर मोदी दो झूठे आंसू ही बहा देते. वाजपेयी जी को जाकर कहना पड़ा कि राजधर्म का पालन करें.

सुशील मोदी: इतिहास की बात हुई. उस वक्त नरेंद्र मोदी को सीएम बने पांच महीने हुए थे. मोदी जी ने बार बार कहा, ये दुर्भाग्यपूर्ण था. सुप्रीम कोर्ट ने भी क्लीन चिट दे दी. इसके बाद भी बार-बार उन्हें खींचा जाता है. मोदी ने लेख लिखा. इंटरव्यू दिए और कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. 11 साल में गुजरात में एक भी दंगा नहीं हुआ.

सवाल (मनीष तिवारी से): ये बड़ी बात नहीं है. पहले लगातार दंगे होते थे.
मनीष: आपको इसके लिए गुजरात जाना होगा. मैं 2004-07 तक गुजरात कांग्रेस प्रभारी रहा. वहां जो अल्पसंख्यक है. वह इतना सहम गया है. वहां इतनी बर्बरता के साथ व्यवहार किया. उसके बाद आप गर्व से कहते हैं कि दस साल में दंगा नहीं हुआ. सवाल ये पूछना चाहिए था कि जिन लोगों के साथ 2002 में बर्बरता हुई, क्या उन्हें न्याय मिला. ये क्यों हुआ कि सुप्रीम कोर्ट को सारे ट्रायल राज्य के बाहर ट्रांसफर करने पड़े. उसी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य चल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था.

सवाल (सुशील मोदी से): मोदी दंगा प्रभावित इलाकों में एक बार भी नहीं गए. मानवता यह नहीं कहती कि मरहम लगाने एक बार जाएं.
सुशील मोदी: मुझे नहीं लगता कि मुलायम सिंह यादव मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों के यहां गए या नहीं गए. कांग्रेस सिख दंगा पीड़ितों के घर गई या नहीं. गुजरात में मुसलमान बाकी मुल्क के मुकाबले बेहतर है.

किसी मुख्यमंत्री के लिए एक एक घर में जाना मुमकिन नहीं है. मैं इस डिबेट में नहीं जाना चाहता. मैं यही कहना चाहता हूं कि एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसा हो गया. आप उसके नाम पर कितने बरसों तक वोट मांगना चाहेंगे.

सवाल (सुशील मोदी से): अगर बिहार में खुदा न खास्ता कोई दंगा हो जाए. हजार लोग मर जाएं. आप क्या करते?
सुशील मोदी: हमारे यहां तो रैली में बम फटे. मोदी जी गए. उनसे मिलने के लिए. महत्वपूर्ण मिलना नहीं. आर्थिक इंतजाम करना. सुरक्षा मजबूत करना है.

मनीष तिवारी: आप सबसे वरिष्ठ हैं. आप घर जाएं न जाएं. मगर नरसंहार में मारे गए लोगों की तुलना कुत्ते के पिल्ले से न करें, जो गाड़ी के नीचे आ जाता है. इससे आपकी असंवेदनशीलता झलकती है.

सुशील मोदी: यह भ्रामक है. उन्होंने कहा था कि एक कुत्ता भी मर जाता है, तो आदमी को दुख होता है. यहां तो कई आदमियों की मौत हुई.

राहुल मेहरा: जब भी बात चलती है, ये सारे दंगों की. वो एक ऐड याद आता है. हमारा दंगा आपके दंगे से दुर्भाग्यपूर्ण कैसे. तर्क वितर्क होता है. दंगा दंगा है. इंसान है. मौत हैं. स्टेट मैनेज्ड है. थोड़ा शरम कर लीजिए. बीजेपी के खिलाफ तो चलो एसआईटी चल पड़ी गुजरात दंगों पर. दिल्ली दंगों पर ऐसा क्यों नहीं हुआ.

मनीष तिवारी: आम आदमी पार्टी अज्ञानता और अहंकार का उत्कृष्ट नमूना है. देश का लोकतंत्र कितना मजबूत है. ये इससे पता चलता है कि वहां अल्पसंख्यकों की क्या हालत है.

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