चिन्मयानंद ने कहा, 'धार्मिक देश को जब धर्मनिरपेक्षता का संविधान सौंपा गया तो सबसे पहले जरूरत थी धर्मनिरपेक्षता के व्यापक संदेश को जनता तब पहुंचाया जाए.'