दिग्गज बल्लेबाज राहुल द्रविड़ ने कहा कि यह जानकर कि शुक्रवार को इंग्लैंड के खिलाफ उनका एकदिवसीय कैरियर समाप्त हो जाएगा उन्हें किसी तरह की कमी महसूस नहीं हो रही है लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें टेस्ट क्रिकेट की तुलना में इस छोटे प्रारूप के लिये अधिक कड़ी मेहनत करनी पड़ी.
द्रविड़ अपना 344वां मैच खेलने के बाद संन्यास ले लेंगे. इसके साथ ही उनके 15 साल के वनडे कैरियर का भी अंत हो जाएगा. उन्होंने कहा कि वह संन्यास को लेकर नहीं घबराते चाहे टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहने का ही समय क्यों नहीं हो.
अपने अंतिम मैच में उतरने से पहले द्रविड़ ने कहा, ‘मैं ऐसा महसूस नहीं कर रहा हूं कि मेरे जीवन में कुछ समाप्त हो रहा है. मैंने पिछले ढाई साल में जैसा किया वैसा करता रहूंगा. लेकिन मुझे टेस्ट की तुलना में अपनी वनडे क्रिकेट पर अधिक मेहनत करनी पड़ी.’
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उन्होंने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘मैं संन्यास लेने से नहीं घबराता. मुझे नहीं लगता कि इतना लंबा समय बिताने के बाद आप उस दिन को लेकर घबराओ. आपको पता होता है कि ऐसा दिन आएगा और आपको आगे बढ़ना होगा. संन्यास लेने के बाद भी मेरी जिंदगी में बहुत बदलाव नहीं आएगा.’
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द्रविड़ ने कहा, ‘आगे वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट श्रृंखला होगी. बीच में कुछ दिन विश्राम के लिये मिलेंगे और फिर फिटनेस और अभ्यास करना होगा. वास्तव में कुछ भी नहीं बदलेगा. कुछ भी अलग नहीं होने वाला है.’ द्रविड़ ने इस बात पर संतोष जताया कि उन्हें एकदिवसीय क्रिकेट के अनुकूल बल्लेबाज नहीं माना जाता था लेकिन इसके बावजूद वह 50 ओवरों के प्रारूप में 10 हजार रन बनाने में सफल रहे.
अब तक वनडे में 10820 रन बनाने वाले द्रविड़ ने कहा, ‘जब मैंने खेलना शुरू किया तो मुझे वनडे का खिलाड़ी नहीं माना जाता था. मुझे काफी कुछ सीखना पड़ा. मुझे अपने कैरियर के बीच में टीम से बाहर कर दिया गया. मैंने कुछ सबक सीखे और इससे मुझे टेस्ट क्रिकेट में भी मदद मिली. मैं आखिर में भारत की तरफ से 300 से अधिक मैच खेलने में सफल रहा.’
उन्होंने कहा, ‘इससे मुझे काफी संतोष मिलता है कि मैं टेस्ट और वन डे का अच्छा खिलाड़ी था. कई तरह से यह काफी संतोषप्रद कैरियर रहा.’ द्रविड़ को वनडे में विकेटकीपर की भूमिका भी निभानी पड़ी और उन्होंने कहा कि इससे उन्हें आलराउंड क्रिकेटर बनने में मदद मिली. उन्होंने कहा, ‘मैं विकेटकीपर के तौर पर खेला. मैंने पारी की शुरुआत की तथा तीसरे नंबर और पांचवें नंबर पर खेला.
इससे मुझे अपनी बहुमुखी प्रतिभा को निखारने में मदद मिली. अलग-अलग चीज करना चुनौतीपूर्ण होता है. विकेटकीपिंग और फिर बल्लेबाजी या बल्लेबाजी और फिर विकेटकीपिंग से मुझे एक व्यक्ति और क्रिकेटर के तौर पर आगे बढ़ने में मदद मिली.’
द्रविड़ ने एक सवाल के जवाब में कहा कि यदि उन्हें उनके अंतिम वनडे मैच में टीम की अगुवाई करने के लिये कहा जाता है तो वह इसके सम्मान के तौर पर लेंगे. उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि मैं टीम की अगुवाई करूंगा. धोनी टीम की अगुवाई करेंगे. मैंने जो कुछ हासिल किया उससे मुझे पर्याप्त सम्मान और पहचान मिली है. अंतिम मैच में जीत दर्ज करना अच्छा होगा. लॉर्ड्स में हमने अच्छा खेल दिखाया था लेकिन दुर्भाग्य से हम जीत नहीं पाये थे. उम्मीद है कि शुक्रवार को हम जीतने में सफल रहेंगे.’
द्रविड़ ने कहा कि जब उन्हें लगातार मैच खेलने के बाद वनडे टीम से बाहर किया गया तो उन्हें शुरू में टेस्ट क्रिकेट से तालमेल बिठाने में दिक्कत हुई. उन्होंने कहा, ‘शुरू में मुझे परेशानी हुई. मैं लगातार दोनों प्रारूप में खेल रहा था. कई बार छह महीने का अंतराल रहता है. जब भारतीय घरेलू सर्किट में खेल नहीं होता तब मुझे दिक्कत होती है. बिना किसी मैच के सीधे टेस्ट क्रिकेट में खेलना मेरे लिये चुनौती थी.’
द्रविड़ ने कहा, ‘मैंने इससे तालमेल बिठाना सीखा और कड़ी मेहनत की. इससे मुझे अपने खेल की कमजोरियों से पार पाने में मदद भी मिली. मैंने अपने परिवार के साथ भी कुछ समय बिताया.’ अपने वनडे कैरियर के बारे में उन्होंने कहा कि 2003 में विश्वकप में उपविजेता रहना उनके कैरियर का महत्वपूर्ण दौर था जबकि 2007 विश्कप के पहले दौर में बाहर होना सबसे बुरा दौर था.