टेनिस स्टार लिएंडर पेस और हॉकी दिग्गज धनराज पिल्ले को अपना प्रेरणास्रोत मानने वाले स्टार मुक्केबाज विजेंदर सिंह ने कहा कि उनके करियर की फिल्म अभी शुरू हुई है और ‘यह दिल मांगे मोर.’
बीजिंग ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता विजेंदर ने खेल गांव में बातचीत में कहा, ‘मैं हमेशा पेस और धनराज से प्रभावित रहा. मैं अच्छा प्रदर्शन करके उनकी तरह नाम कमाना चाहता था और ओलंपिक में खेलना मेरा सपना था.’ उन्होंने कहा, ‘मेरे करियर की फिल्म अभी शुरू हुई है. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं तीन ओलंपिक में भाग लूंगा लेकिन अब भी ‘यह दिल मांगे मोर.’
ओलंपिक में 75 किग्रा भार वर्ग में भाग लेने वाले विजेंदर ने कहा, ‘मैंने उच्च स्तर पर जब से मुक्केबाजी शुरू की, मेरी यात्रा स्वप्निल रही जो अब भी जारी है. कुछ अवसरों मुझे भी बुरे सपनों से गुजरना पड़ता है लेकिन मैं अब भी इसका मजा ले रहा हूं.’
बीजिंग में पदक जीतकर भारतीय मुक्केबाजी के ‘पोस्टर ब्वॉय’ बने विजेंदर ने लंदन खेलों में अपनी संभावना के बारे में कहा, ‘मेरे भार वर्ग 75 किग्रा में 28 मुक्केबाज हैं और स्वर्ण पदक लिये किसी को भी पांच बाउट और कांस्य पदक के लिये तीन बाउट जीतनी होगी.’
उन्होंने इसके साथ ही संकेत दिये कि वह भविष्य में 81 किग्रा भार वर्ग में उतर सकते हैं. अब तक सात भार वर्गों में मुक्केबाजी कर चुके विजेंदर ने कहा, ‘मैंने 42 किग्रा से शुरुआत की और यहां मैं 75 किग्रा में भाग ले रहा हूं. इसके बाद हो सकता है कि मैं 81 किग्रा में चला जाउं. मैं भार वर्ग को लेकर कभी परेशान नहीं रहा.’
उन्होंने कहा, ‘हॉकी खिलाड़ी धनराज पिल्ले उन दिनों एक और बड़ा स्टार था. मैं उनके बारे में पढ़ा करता था और धीरे-धीरे पेस ओर पिल्ले मेरे नायक बन गये. मैं विदेशों में जाना चाहता था लेकिन पर्यटक के तौर पर नहीं बल्कि अपने नायकों की तरह जाना चाहता था.’
विजेंदर ने अपने पहले विदेश दौरे के बारे में कहा, ‘जब मैं 16 साल का था तब मैं पहली बार जर्मनी गया. वह 2001 का साल था तथा मेरे साथ जयभगवान और कुछ अन्य मुक्केबाज भी थे. यह जूनियर और कैडेट मुक्केबाजों के लिये ट्रेनिंग और कोचिंग कार्यक्रम था.’
उन्होंने कहा, ‘जब मैं और जयभगवान विमान में बैठे तो हैरान थे. वह मेरी जिंदगी की पहली उड़ान थी. जब मैं अपनी सीट पर बैठा तो कुछ समय के लिये मेरे मुंह से शब्द नहीं निकले.'
जर्मनी के उस अपने पहले दौरे के बारे में विजेंदर ने कहा, ‘मैं किशोर था और मुझे कोई डर नहीं था. मैंने स्वर्ण पदक जीता था. मैं शुरू से ही कभी अपने प्रतिद्वंद्वी से नहीं डरा. मैं वैज्ञानिक मुक्केबाजी के बारे में नहीं जानता था. मैं रिंग पर उतरते ही अपने प्रतिद्वंद्वी पर घूंसे जड़ना शुरू कर देता था. इसका मुझे फायदा मिला. वे दिन थे जब मैं कुछ नहीं जानता था.’
विजेंदर ने कहा, ‘इसके बाद ऐसा नहीं रहा कि मेरे लिये आगे का सफर आसान रहा. मेरा करियर भी उतार चढ़ाव से गुजरा लेकिन मेरा आत्मविश्वास कभी प्रभावित नहीं हुआ.’
पदक के प्रबल दावेदार विजेंदर से पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि भारतीय मुक्केबाज कुछ ज्यादा शेखी बघारने लगे हैं, उन्होंने तपाक से कहा, ‘नहीं नहीं यह आत्मविश्वास का संकेत है. इससे पहले हमारे सीनियर मुक्केबाजों का लक्ष्य ओलंपिक टीम में जगह बनाना होता था लेकिन अब युवा मुक्केबाज भी जीतना चाहता है.’
उन्होंने कहा, ‘मुझे याद है कि पहले सीनियर खिलाड़ी यह कहकर हमें डराते थे कि हमारा प्रतिद्वंद्वी विश्व चैंपियन है और उसे हराना बहुत मुश्किल है लेकिन यह परिदृश्य अब बदल गया है. जीत और हार खेल का हिस्सा है लेकिन आपका खेल किस तरह से अंतर पैदा करता है यह महत्वपूर्ण है.’
यदि मुक्केबाज नहीं होते तो फिर क्या होते, इस सवाल के जवाब में विजेंदर ने कहा, ‘निश्चित तौर पर मैं सेना में जाता. मेरा भाई सेना में है और उन्होंने 1999 कारगिल युद्ध में भाग लिया था. हमें उन पर गर्व है.’
अपना अधिकतर समय विज्ञापनों की शूटिंग में बिताने के बारे में विजेंदर ने कहा, ‘मैंने 2007 में तीन विज्ञापन किये थे लेकिन किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया लेकिन बीजिंग ओलंपिक में पदक जीतने के बाद लोगों ने मुझे पहचानना शुरू कर दिया और मेरी आलोचना शुरू कर दी लेकिन इससे मैं परेशान नहीं हुआ.
भविष्य के बारे में उन्होंने कहा, ‘फिल्म तो अभी शुरू हुई है.’