बीजिंग ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाले भारतीय मुक्केबाज विजेंदर कुमार ने मंगलवार को कहा कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि वह तीन ओलम्पिक आयोजनों में शिरकत कर सकेंगे.
अब जबकि वह लंदन ओलम्पिक में हिस्सा लेने वहां पहुंच चुके हैं उनका दिल और आगे की चाह रखता है.
ओलम्पिक में पदक जीतने वाले एकमात्र भारतीय मुक्केबाज विजेंदर ने कहा, 'मैंने सपने में भी तीन ओलम्पिक आयोजनों में हिस्सा लेने का सोचा नहीं था. लेकिन अब 'ये दिल मांगे मोर'.'
उन्होंने कहा कि चार साल पहले बीजिंग में उनके पदक जीतने के बाद भारतीय मुक्केबाजी में बहुत बदलाव आया है. उनका मानना है कि भारतीय मुक्केबाजी अब पहले के मुकाबले अधिक आक्रामक हुई है. अब हमारे मुक्केबाज सिर्फ स्वर्ण पदक जीतने की सोचते हैं.
विजेंदर ने कहा, 'मुझे याद है, हमारे वरिष्ठ खिलाड़ी हमें यह कहकर डरा दिया करते थे कि तुम्हारा मुकाबला विश्व चैम्पियन और उसके जैसे खिलाड़ियों से है. उन्हें हराना मुश्किल है. लेकिन अब यह स्थिति नहीं रह गई है. हार और जीत तो खेल का हिस्सा है. आप कैसे मुकाबला करते हो, इससे अंतर पैदा होता है.'
विजेंदर से उनके पदक जीतने की सम्भावनाओं के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, '75 किलोग्राम वर्ग में कुल 28 मुक्केबाज हैं. स्वर्ण पदक जीतने के लिए पांच बाउट और कांस्य जीतने के लिए तीन बाउट जीतने की जरूरत है.'
उन्होंने अपने आलोचकों को भी जवाब दिया. उन्होंने कहा, '2007 में मैंने तीन विज्ञापनों में काम किया. किसी ने उस समय कुछ नहीं कहा लेकिन बीजिंग में पदक जीतने के बाद लोगों ने मुझे पहचाना और आलोचकों ने मुझे आड़े हाथों लिया. मैं इसकी परवाह नहीं करता.'
उन्होंने कहा, 'मैंने बहुत ही अनुशासित और साधारण जीवन जीता हूं. भगवान का मुझ पर आशीर्वाद रहा है.' विजेंदर ने टेनिस स्टार लिएंडर पेस और हॉकी खिलाड़ी धनराज पिल्लै को अपना आदर्श बताया.