'अच्छे दिन कब आएंगे' यह वाक्य कभी एक नारा मात्र था. शुरुआत बीजेपी और नरेंद्र मोदी ने की थी. लेकिन अब एक पारामीटर बन गया है, विकास को मापने का. दरअसल, 100 दिन बाद केंद्र सरकार की नीति क्या हो और बीते तीन महीनों में सरकार ने क्या कुछ किया, इन सब के बदले एक ही सवाल है कि अच्छे दिन कब आएंगे.
पंचायत आजतक के सातवें सेशन में चर्चा का विषय भी यही सवाल रहा और जवाब तलाशने की कोशिश की गई कि आखिर 'अच्छे दिन कब आएंगे'. चर्चा में केंद्र सरकार की ओर से कानून और आईटी मंत्री रवि शंकर प्रसाद मौजूद थे तो पूर्व सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी और सीपीएम सांसद मोहम्मद सलीम भी चर्चा में शामिल हुए.
सवाल: अच्छे दिन कब आएंगे? ये ऐसा नारा है जो 100 दिन और आने वाले सालों में ही नहीं बल्कि राजनीति में हमेशा पूछा जाएगा.
रवि शंकर प्रसाद: 100 दिन की सीमा वाजपेयी जी आपने बांधी है. मोदी सरकार की तीन खास बातें हैं- गवर्नेंस, निर्णय में पारदर्शिता और डिलीवरी. भारत में आशा का माहौल है. जब आशा का माहौल बनता है तब अच्छे दिनों की शुरुआत होती है.
सवाल: अच्छे दिन कैसे आएंगे?
रवि शंकर प्रसाद: 2014 का वर्डिक्ट एक बदलाव का वर्डिक्ट है. समाजिक न्याय के बदले विकास हो सकता है, लेकिन बिना प्रमाणिक सामाजिक न्याय तभी होगा जब विकास होगा. प्लानिंग कमीशन सिर्फ दीवारें खड़ी करने का काम करता है. इसकी देश को जरूरत नहीं है. क्या प्लानिंग कमीशन के पांच आदमी ये तय करेंगे कि गरीबी कैसे मिटाई जाए? हमारी सरकार मानती है कि अगर गरीबों के लिए सामाजिक न्याय लाना है तो विकास करना होगा. इस देश में रोटी कैसे बांटी जाए के साथ ये बहस भी होनी चाहिए कि रोटी की संख्या कितनी हो.
सवाल: कांग्रेस सवा सौ साल पुरानी है. क्या आपको लगता है कि देश में वाकई बदलाव की जरूरत थी जो आप हाशिए में चले गए और बीजेपी सत्ता में आ गई?
मनीष तिवारी: ये बात सही है कि 2014 चुनाव के परिणाम कांग्रेस के अनुकूल नहीं आए. लेकिन 100 दिन में क्या हुआ. महंगाई बढ़ी, सांप्रदायिकता बढ़ी, विदेश नीति कंफ्यूजन का शिकार है. नवाज शरीफ को निमंत्रण भेजते हैं और फिर वार्ता रद्द करनी पड़ी. यानी कि हर मामले में 180 डिग्री एंगल लेती है बीजेपी सरकार. कुल मिलाकर बीजेपी सरकार पिछले 100 दिनों में न तो अपनी नीति बदल पाई और न ही दिशा निर्धारित कर पाई. बीजेपी ने चुनावों में कहा कि अच्छे दिन आएंगे, लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि अच्छे दिन जनता के नहीं बल्कि उनकी पार्टी के आने वाले हैं. और जनता को लगा कि अच्छे दिन उनके आने वाले हैं.
रविशंकर प्रसाद: विदेशी नीति को लेकर बहुत बात हो रही है. मैं बताना चाहता हूं कि हमने नवाज शरीफ को इसलिए बुलाया क्योंकि हम अपने पड़ोसियों से अच्छे संबंध बनाना चाहते हैं. जहां तक गरीबों की बात है तो हम विकास के जरिए खुद को साबित करना चाहते हैं. ई-गवर्नेंस से गांव-गांव का भला हो सकता है. भूमिहीन गरीबों के लिए 5 लाख करोड़ रुपये अलॉट किए गए हैं. ये सब अच्छे दिनों की शुरुआत नहीं तो क्या है. 100 दिनों में इतनी हड़बड़ाहट और परेशानी की क्या जरूरत है.
सवाल: राजनीतिक दल सत्ता का आनंद लेने लगे हैं. आपकी पार्टी कैडर की पार्टी है. क्या अच्छे दिन आएंगे. क्या आप रास्ते दिखाएंगे?
मोहम्मद सलीम: सिर्फ आंकड़ों से विकास नहीं होता. अच्छे दिन किस पर सवार होकर आएंगे. गाड़ी पर कौन सवार होगा और कौन चक्के के नीचे होगा ये देखने वाली बात होगी.
सवाल: बंगाल में 30 सालों में आपकी सरकार थी. आपके दिमाग में खाता खोलने की बात क्यों नहीं आई?
मोहम्मद सलीम: खाता खोलना केंद्र सरकार के अधिकार में आता है. लेकिन सिर्फ खाता खोलने से कुछ नहीं होगा.
मनीष तिवारी: पिछले 100 दिन में इस देश में सार्वजनिक बहस विकास और प्रशासन पर नहीं सांप्रदायिक तनाव पर हुई है. हम सत्ता में नहीं लौटे, इसका मतलब ये नहीं कि हमने पिछले 10 सालों में कोई काम नहीं किया.
मोहम्मद सलीम: हम सिंगूर और नंदीग्राम की पैकेजिंग नहीं कर पाए. बीजेपी ने मोदी और अच्छे दिन का मेल सफलतापूर्वक बेच लिया. मोदी राज में अच्छे दिन आडवाणी जी, जोशी जी के लिए नहीं आए हैं अडानी जी के लिए आए हैं.
रविशंकर प्रसाद: सलीम जी सीजंड नेता हैं और मैं स्टूडेंट लाइफ से पॉलिटिक्स में सक्रिय हूं. ये कहना कि हम पैकेजिंग से जीते हैं, भारत की जनता का अपमान है. कम्युनिस्टों को इस तरह जनादेश नहीं नकारना चाहिए. आज देश में उम्मीदों का माहौल है और हम उम्मीदों को पूरा करने में लगे हैं.
सवाल: आपने वाजपेयी जी और मोदी जी दोनों के कार्यकाल को देखा है?
रविशंकर प्रसाद: मंत्रियों के प्रेजेंटेशन के दौरान मोदी जी का बतौर प्रशासक अनुभव नजर आता है. वो सचिवों को जानते हैं और नाम लेकर उनसे पूछते हैं कि 10 साल में क्या अच्छा हो सकता है. ऐसे में अब सब तैयारी के साथ आते हैं क्योंकि मोदी सवाल पूछते हैं. मनीष जी को मैं बताना चाहता हूं कि जब मैं सरकार के बाहर था तो मुझे पता नहीं था कि यूपीए सरकार की हालत खराब है. लेकिन जब सरकार के अंदर आया तो पता चला कि यूपीए की हालत तो बहुत खराब है.
मनीष तिवारी: रविशंकर जी बहुत महत्वपूर्ण मंत्रालय देख रहे हैं. अगर एनडीए सरकार को लगता है कि यूपीए सरकार में कुशासन का राज था तो आप श्वेतपत्र जारी कर बात देश के सामने क्यों नहीं ले आते.