साल 2002 के बाद नरेंद्र मोदी राजनीति का ऐसा चेहरा बने जिसकी शख्सियत विकास के मॉडल पर तराशी गई तो सांप्रदायिकता की छाया ने कभी दामन नहीं छोड़ा. दरअसल, मोदी के पीएम बनने की राह में भी इसी को रोड़ा बनाने की कोशिश रही. अब वह प्रधानमंत्री हैं, लेकिन कथित तौर पर चर्चा है कि देश के अल्पसंख्यकों में मोदी के आने से असुरक्षा हुई है. वहीं, मोदी सबको साथ लेकर चलने की बात करते हैं. ऐसे में बड़ा सवाल कि 100 दिन बाद मुसलमानों के मन को कितने भाए पीएम मोदी?
पंचायत आजतक के 9वें सेशन 'मुस्लिम के मन भाए मोदी' में जमात उलेमा-ए-हिंद के एग्जीक्यूटिव मेंबर और नेता मौलाना महमूद मदनी, कांग्रेस नेता राशिद अल्वी, सीपीएम सांसद मोहम्मद सलीम और बीजेपी नेता शेषाद्रि चारी ने हिस्सा लिया.
सवाल: मोदी जैसे ही गुजरात से दिल्ली आए मुस्लिम असुरक्षित महसूस करने लगे. क्या ऐसा वाकई में है या परसेप्शन है?
मदनी: मुस्लिम समाज में कोई असुरक्षा नहीं है. असुरक्षा किसी एक घटना की वजह से एक इलाके में तो हो सकती है, लेकिन पूरे देश में ऐसा नहीं है.
सवाल: कहा जाता है कि मुस्लिम किसी एक मुद्दे पर झट से एक हो जाते हैं?
राशिद अल्वी: ये बात सही है कि बहुत सारे राजनीतिक दल मुसलिमों को वोट बैंक के तौर पर देखते हैं. लेकिन ये कहना गलत है किसी एक मुद्दे पर वो झट से एक हो जाते हैं. हर राज्य में वे अलग-अलग पार्टियों के साथ हैं. हां, ये बात सही है कि जब से ये सरकार आई है तब से मुस्लिमों को डराने की कोशिश कर रही है, लेकिन वे डर नहीं रहे हैं.
सवाल: डराने से क्या लाभ होगा?
राशिद अल्वी: वोट बैंक का लाभ होता है. मोदी ने जापान में गीता भेंट की बहुत अच्छी बात है. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मेरे देश में सो कॉल्ड सेक्युलर लोगों के माथे पर बल पड़ जाएंगे. मैं पूछना चाहता हूं कि क्या विदेशी जमीन पर मोदी किसी एक पार्टी, एक दल या एक समुदाय के प्रधानमंत्री हैं.
मदनी: अगर मैं अपनी बात करूं तो मैं किसी से नहीं डरता. इस मुल्क को किसी राजनीतिक दल ने सेक्युलर नहीं बल्कि जनता ने बनाया है और ये देश हमेशा सेक्युलर रहेगा.
शेषाद्रि चारी: जहां तक भगवत गीता की बात है तो वो मोदी जी ने तथाकथित सेक्युलर लोगों के लिए कहा है. राशिद अल्वी जी आपको ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है. हां, वोट बैंक के नाम पर किसी समुदाय को नहीं डराया जाना चाहिए.
मोहम्मद सलीम: सांप्रदायिकता हमारी सोच में है. और चुनाव इसमें बड़ी भूमिका निभा रहा है क्योंकि इसके पीछे मकसद जीत है.
राशिद अल्वी: बीजेपी के तीनों प्रवक्ताओं शाहनवाज हुसैन, मुख्तार अब्बास नकवी और एमजे अकबर ने धर्म से बाहर शादी की. यानी कि पार्टी के नेताओं के लिए अलग बात और कोई और करे तो लव जेहाद.
शेषाद्रि चारी: मैं न जेहाद का एक्सपर्ट हूं, न लव का. कृपया कर मुझे बख्श दें.
सवाल: क्या धारा 370 पर गलती हो गई?
शेषाद्रि चारी: हम कहते हैं कि चाहे धारा 370 हो या सामान्य नागरिक संहिता, चर्चा होनी चाहिए. लेकिन जैसे ही धारा 370 का जिक्र आता है हंगामा हो जाता है. बातें होने लगती हैं कि मुस्लिमों का मामला है, वोट बैंक है. हम कह रहे हैं चर्चा तो कराओ.
राशिद अल्वी: आप संविधान की बात करते हैं, लेकिन आपके पास सामान्य नागरिक संहिता का ब्लू प्रिंट तक नहीं है. बीजेपी धारा 371 की बात क्यों नहीं करती, जो अरुणाचल और नागालैंड को खास दर्जा देती है. आप कश्मीर के लोगों से क्यों नहीं पूछते कि धारा 370 पर वो क्या चाहते हैं.
शेषाद्रि चारी: धारा 370 केवल कश्मीर से ही नहीं बल्कि देश से भी जुड़ा मुद्दा है. इसका संबंध अन्य राज्यों से भी है, जो वहां बिजनेस करना चाहते हैं. धारा 370 के हटने से जितना फायदा कश्मीरियों को होगा उतना ही फायदा तमिलनाडु के व्यापारियों को भी होगा. क्योंकि अभी उनके ट्रक वहां जाकर सामान नहीं बेच सकते.
राशिद अल्वी: शेषाद्रि जी आप ये तो मानते हैं कि हमारी और आपकी इस बात पर कोई असहमति नहीं है कि कश्मीर भारत का अटूट हिस्सा है. तो फिर आप अगर कश्मीर पर कोई फैसला लेंगे तो कश्मीरियों से सलाह लेंगे या नहीं.
शेषाद्रि चारी: मैंने ये नहीं कहा कि कश्मीरियों से मत पूछो. धारा 370 पर फैसला पूरा देश मिलकर लेगा. कश्मीरियों से भी पूछो और तमिलनाडु में बैठे शेषाद्रि चारी से भी पूछो. आज देश में माहौल है. धारा 370 पर बात होनी चाहिए.
सवाल: क्या मुस्लिमों के मन भाए मोदी?
मदनी: मोदी जी हमारे प्रधानमंत्री हैं. अभी सिर्फ 100 दिन हुए हैं. अगर वो नीचे के लोगों को ठीक रखेंगे तो शायद इस सवाल को पूछने की जरूरत नहीं होगी.