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एक बार कांग्रेस छोड़ चुके थे प्रणब मुखर्जी

पूरे देश की निगाहें आज वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी पर लगी हुई हैं. वह कांग्रेस के संकटमोचक कहलाते हैं लेकिन यही संकचमोचक एक बार कांग्रेस को अलविदा भी बोल चुके हैं.

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पूरे देश की निगाहें आज वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी पर लगी हुई हैं. दादा के मुंह से आज संसद में निकला एक-एक शब्द पूरे साल आम आदमी की जिंदगी पर असर डालेगा. जानिए प्रणब मुखर्जी की शख्सियत.प्रणब मुखर्जी

काले चश्मे के भीतर चमकती इन आंखों ने हिंदुस्तान की राजनीति के पांच दशकों का इतिहास देखा है. पांच दशकों की भारतीय राजनीति के जीते जागते दस्तावेज का नाम है प्रणब कुमार मुखर्जी. सियासी गलियारों में लोग बड़ी इज्जत के साथ इन्हें दादा कहते हैं. कांग्रेस के सबसे पुराने नेताओं में से एक, और कांग्रेस के संकटमोचक....प्रणब दा. प्रणब दा अपने करियर में सातवीं बार देश का आम बजट पेश करने जा रहे हैं.

सादगी प्रणब दा की पहचान है, बदन पर या तो कुर्ता धोती या फिर बंद गले का प्रिंस सूट. पाइप पीने के खासे शौकीन. यूं तो बेहद सरल स्वभाव है, लेकिन कभी कभी उन्हें गुस्सा भी खूब आता है.prabab-mukherjee

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पश्चिम बंगाल में वीरभूम जिले के किरनाहर के पास 11 दिसम्बर 1935 को प्रणब मुखर्जी का जन्म हुआ. पिता कामदा किंकर मुखर्जी पुराने कांग्रेसी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. लेकिन प्रणब बाबू कोलकाता यूनिवर्सिटी से इतिहास, राजनीति शास्त्र में एमए और कानून की डिग्री लेने के बाद शिक्षक बन गए. मन नहीं लगा तो कुछ दिनों तक वकालत की और फिर पत्रकार के तौर पर भी किस्मत आजमाई. 60 के दशक में वो कांग्रेस में शामिल हुए और 1969 में राज्यसभा पहुंच गए.
अपनी निष्ठा और ईमानदारी के चलते प्रणब मुखर्जी कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते गए.
1973 में पहली बार प्रणब मुखर्जी केंद्रीय औद्योगिक विकास विभाग के उपमंत्री बने.
1982 में प्रणब मुखर्जी पहली बार देश के वित्त मंत्री बने.
1984 में यूरोमनी पत्रिका के सर्वे में उन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री का खिताब मिला.

इंदिरा गांधी प्रणब मुखर्जी पर बहुत भरोसा करती थीं, वो इंदिरा गाधी के सबसे करीबी नेताओं में शामिल थे, लेकिन जब राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने तो प्रणब दा का ऊंचा कद कांग्रेस में ही कई लोगों को रास नहीं आया.pranab and advani

हालात कुछ ऐसे बने कि दादा को कांग्रेस से बाहर भी होना पड़ा. उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस नाम से अपनी पार्टी बनाई, लेकिन 1989 में  राजीव गांधी के मनाने पर दादा फिर कांग्रेस में लौट आए. राजीव गांधी के निधन के बाद प्रणब दादा देश के प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार थे, लेकिन समीकरण कुछ ऐसे बैठे कि पीवी नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री.
पी.वी. नरसिंह राव ने 1995 में प्रणब दादा को विदेश मंत्री की जिम्मेदारी दी.
2004 की यूपीए सरकार में प्रणब दा को रक्षा मंत्री का जिम्मा मिला.
24 जनवरी 2009 को प्रणब मुखर्जी दूसरी बार देश के वित्त मंत्री बने.
लंदन की पत्रिका इमर्जिंग मार्केट्स ने प्रणब मुखर्जी को 2010 में एशिया के सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री के तौर पर शुमार किया.

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प्रणब मुखर्जी अनुभवी हैं, वो 76 साल के हो चुके हैं. देश की मिट्टी और जनता की जरूरतों को समझते हैं. विकास की उड़ान और जमीनी हकीकत का अंदाजा भी उन्हें खूब है. कई बार उन्होंने अपने अनुभव का लोहा मनवाया है.

देश की जनता को उम्मीद है कि बजट पेश करते वक्त प्रणब दा उनकी भावनाओं, उनकी जरूरतों का बखूबी ख्याल रखेंगे.

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