उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का अंतिम चरण शनिवार को समाप्त होने के साथ सभी दल अपनी-अपनी सरकार बनाने के दावे कर रहे हैं, लेकिन सरकार किसकी बनेगी, यह तो छह मार्च को ही तय हो पाएगा. बहरहाल, राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो उत्तर प्रदेश एक बार फिर राजनीतिक गठबंधन की प्रयोगशाला बनने की ओर अग्रसर है.
कहते हैं कि सियासत में कोई किसी का स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं होता. सब अपने फायदे की बात देखते हैं. चुनाव से पहले समझौता किसी और से होता है और बाद में वे किसी और के पाले में खड़े होते दिखाई देते हैं. इस बार चुनाव से पहले केवल कांग्रेस ने ही राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के साथ समझौता किया है. उसका इतिहास भी हालांकि अवसरवादी ही रहा है.
रालोद की अवसरवादिता के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही ने अजीबोगरीब जवाब दिया. उन्होंने कहा, ‘इनका क्या है, कल हमारे साथ थे और जब सत्ता गई तो सपा के साथ हो लिए. अब कांग्रेस के साथ हैं. इनका तो हाल वही है कि जो इनकी मांग भर दे यह उन्हीं के हो जाएंगे.’
शाही के इस जवाब पर रालोद की सहयोगी दल कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी कहती हैं, ‘भाजपा लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है. सच्चाई यह है कि वह 50 सीटों के भीतर सिमट कर रह जाएगी.’
इसके अलावा दो अन्य प्रमुख दलों बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता भी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के दावे कर रहे हैं. साथ ही यह भी कह रहे हैं कि यदि पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो वे विपक्ष में बैठेंगे.
बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्र मजबूती के साथ अपनी सरकार बनने का दावा कर रहे हैं. वह कहते हैं, ‘बसपा वर्ष 2007 के अपने आंकड़े से भी अच्छा प्रदर्शन करेगी और मायावती के नेतृत्व में हम एक बार फिर बहुमत की सरकार बनाएंगे.’
सपा के प्रदेश महासचिव अशोक वाजपेयी भी अपनी पार्टी की सरकार बनाने का खम ठोंक रहे हैं और उन्हें भी विश्वास है कि बिना किसी का समर्थन लिए ही सपा की सरकार बन जाएगी.
वह कहते हैं, ‘इस बात में कोई शक नहीं कि सपा सबसे बड़ी पार्टी बनने जा रही है और हमें किसी दूसरे के समर्थन की जरूरत नहीं पड़ेगी. हम अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब रहेंगे.’
राजनीतिक दलों के दावों-प्रतिदावों के बीच राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार अभयानंद शुक्ल ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश इस बार भी राजनीतिक गठबंधन की प्रयोगशाला बनने जा रहा है. इस बात की प्रबल सम्भावना है कि किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा और एक बार फिर जोड़-तोड़ की राजनीति देखने को मिलेगी.’
एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक और राज्यसभा के सांसद रह चुके राजनाथ सिंह 'सूर्य' ने कहा, ‘किसी को पूर्ण बहुमत मिलता दिखाई नहीं दे रहा है, इसलिए गठबंधन के अलावा कोई विकल्प नहीं है.’
सिंह कहते हैं, ‘ज्यादा प्रबल सम्भावना है कि मुलायम सिंह की सरकार बने और कांग्रेस उन्हें समर्थन दे. अगर समर्थन की स्थिति पैदा होती है तो कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व मंत्रिमंडल में भागीदारी भी चाहेगा.’