पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर फिलहाल हजारों अफगानी इंतजार कर रहे हैं कि कोई रास्ता निकल आए और वे पाकिस्तान रुक जाएं. फिलहाल वहां 1.7 मिलियन अवैध अफगानी बसे हुए हैं, यानी इतने ही लोगों के पास पाकिस्तान छोड़ने का अल्टीमेटम है. इस बीच कई सवाल आते हैं. मसलन क्या होगा अगर अफगानी देश छोड़ने को राजी न हों. पाकिस्तान की डिपोर्टेशन पॉलिसी क्या है और अवैध लोगों के खिलाफ किस हद तक जा सकती है.
अफगानिस्तान से दो फेज में लोग भागकर पाकिस्तान पहुंचे
पहली बार साल 1979 में ऐसा हुआ, जब सोवियत संघ (अब रूस) ने अफगानिस्तान पर हमला किया. वो उस समय की कम्युनिस्ट सरकार को बचा रहा था. इसी दौर में करीब 50 लाख अफगानियों ने अपना देश छोड़ दिया. इनमें से ज्यादातर पाकिस्तान चले गए.
शरणार्थियों की दूसरी बड़ी खेप साल 2021 में पाकिस्तान पहुंची, जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया. यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी (UNHCR) के मुताबिक फिलहाल 80 लाख देश छोड़ चुके अफगानियों में से करीब 37 लाख लोग पाकिस्तान में ही रहते हैं.
पाकिस्तान क्यों आ रहे हैं लोग?
इस देश में भले ही राजनैतिक और आर्थिक भूचाल आया हुआ है, लेकिन पड़ोसियों की तुलना में ये बेहतर हालात में है. UN की सबसे कम विकसित देशों की लिस्ट में अफगानिस्तान का नाम है, जबकि पाकिस्तान का नहीं. पाकिस्तान की जीडीपी भी पड़ोसी देश से लगभग दोगुनी है. हमारे लिए भले ही पाकिस्तान में ह्यूमन राइट्स का हनन हो रहा हो, लेकिन तालिबानी राज के अफगानिस्तान से ये काफी बेहतर स्थिति में है. यही वजह है कि अफगानिस्तान से लोग तेजी से पाकिस्तान बॉर्डर क्रॉस कर रहे हैं.
क्यों देश से भगाया जा रहा है?
- पाकिस्तान सरकार इसे लेकर कई वजहें दे रही है. जैसे इस देश में हाल के दिनों में कट्टरपंथी हमले काफी बढ़ गए. सरकार का आरोप है कि ये अटैक वहां से आ रहे लोगों की देन है.
- इस साल अब तक 24 सुसाइड अटैक हुए, जिसमें से 14 अफगान से आए लोगों ने किए थे.
- साउथ एशियन टैररिज्म पोर्टल कहता है कि बीते साल देश के भीतर 365 आतंकी हमले हुए थे, जबकि इस साल ये बढ़कर 418 हो चुका.
- पाकिस्तान में तालिबानी आतंकी गुट TTP भी फल-फूल रहा है. सरकार का कहना है कि आतंक के लिए पड़ोसी देश उनकी जमीन इस्तेमाल कर रहा है.
- महंगाई से जूझते देश में नौकरियों की भी कमी है. ऐसे में लाखों बाहरी लोगों के रहने से जॉब मार्केट पर भी असर हो रहा है.
कैसे पहुंचते हैं वहां?
दोनों देश ढाई हजार किलोमीटर की सीमा शेयर करते हैं. इसे डुरंड रेखा या वखान कॉरिडोर भी कहते हैं. वैसे तो ये बॉर्डर सुरक्षा बलों से घिरा हुआ है, लेकिन तब भी कहीं न कहीं चूक हो ही जाती है. इसके अलावा ब्लैक मार्केट में फर्जी कागजात बनवाकर भी बहुत से लोग एंट्री पा रहे हैं.
कहां रह रहे हैं?
ज्यादातर लोग सीमा पार करने के बाद नजदीकी इलाकों में बस जाते हैं, जैसे खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांत में. ये इलाके डुरंड रेखा के करीब हैं. आर्थिक तौर पर मजबूत अफगानी पाकिस्तान के मुख्य शहरों जैसे इस्लामाबाद और कराची तक भी जाते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या कम है क्योंकि पुलिस की नजर में आने का डर रहता है.
क्या एक्शन ले रहा है पाकिस्तान?
सरकार ने पहले ही डिपोर्टेशन सेंटर बनवाने शुरू कर दिए थे. ये एक तरह का कैंप है, जो सीमावर्ती इलाकों में बना है. इसमें अवैध शरणार्थियों को रखा जाएगा और सीमा पार कराई जाएगी. अगर कोई अवैध अफगानी देश के भीतर छिपने या पहचान गुप्त रखने की कोशिश करे तो उसे जेल में डाला और उसकी प्रॉपर्टी तक जब्त की जा सकती है.
फिलहाल पाकिस्तान में रहते शरणार्थियों को अफगान सिटिजन कार्ड दिया गया है. ये पाकिस्तान सरकार ने इश्यू किया है, जो देश में रहने की आधिकारिक अनुमति देता है.
क्या UN इसमें कुछ नहीं कर सकता?
कुछ खास नहीं. पाकिस्तान के मामले में यूनाइटेड नेशन्स के हाथ करीब-करीब बंधे हुए हैं. असल में ये देश 1951 UN रिफ्यूजी कन्वेंशन का हिस्सा नहीं है. यही वजह है कि यहां का फॉरेनर्स एक्ट इजाजत देता है कि सरकार अवैध तौर पर रहते विदेशियों को अरेस्ट करके वापस भेज सकती है.
फिलहाल तक पाकिस्तान जितने भी अवैध लोगों को रहने दे रहा था, उसके पीछे यही वजह है कि उसे कर्ज के लिए इंटरनेशनल संस्थाओं से दोस्ती बनाकर रखनी थी. लेकिन अब यही बात आड़े भी आ रही है. पाकिस्तान को डर है कि आतंकी हमलों की वजह से एक बार फिर उसका नाम ग्रे लिस्ट में आ जाएगा और वर्ल्ड बैंक या दूसरी संस्थाएं इनवेस्टमेंट से बचने लगेंगी.