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ये मुस्लिम समुदाय पाकिस्तान में सबसे ज्यादा प्रताड़ित, क्यों है धार्मिक पहचान छिपाने को मजबूर?

पाकिस्तान में हिंदुओं पर हिंसा की खबरें तो अक्सर आती रहती हैं लेकिन वहां मुस्लिमों में भी धार्मिक तनाव आम है. चार दिनों पहले खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत में शिया और सुन्नी समुदाय के बीच ऐसी ही एक झड़प में लगभग 80 मौतें हो चुकीं. दोनों के बीच अक्सर तनाव बना रहता है लेकिन अहमदिया एक ऐसा मुस्लिम तबका है, जो हिंसा से बचने के लिए छिपकर रहने को मजबूर है.

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पाकिस्तान में सबसे ज्यादा अहमदिया मुसलमान हैं. (Photo- Getty Images)
पाकिस्तान में सबसे ज्यादा अहमदिया मुसलमान हैं. (Photo- Getty Images)

पाकिस्तान में 21 नवबंर को सुन्नी समुदाय ने शियाओं की गाड़ियों पर घात लगाकर हमला किया. इसके बाद से दोनों पक्षों के बीच हुई हिंसा में लगभग 80 जानें जा चुकीं. मुस्लिम-बहुल इस देश में अलग-अलग समुदायों में आपसी तनाव आम है. लेकिन इसमें भी अहमदिया मुस्लिमों की हालत सबसे ज्यदाा खराब है. यहां तक कि उनपर इतनी हिंसा हो चुकी कि वे अपनी धार्मिक पहचान छिपाकर रह रहे हैं. 

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ताजा हिंसा की क्या है वजह

ट्विन टावर पर हमले के बाद अमेरिका से सुन्नी भागकर कई देशों में बिखरने लगे. लाखों सुन्नी पाकिस्तान भी आए और कई इलाकों में बसने लगे. खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के कुर्रम में शिया आबादी ज्यादा है. उसने अमेरिका-रिटर्न सुन्नियों को अपने यहां आने नहीं दिया. इससे मनमुटाव बढ़ता चला गया. बाद में जनरल जिया उल हक की सरकार ने शियाओं को तोड़ने के लिए सुन्नियों को कुर्रम में बसाना शुरू कर दिया. तब से तनाव लगातार चला आ रहा है. 

अहमदिया मुसलमानों पर शुरू से ही अत्याचार

मजहबी तनाव शिया और सुन्नियों के बीच ही नहीं, अहमदिया मुस्लिम इसके सबसे बड़े शिकार हैं. पचास के दशक में लाहौर में अहमदिया मुस्लिमों के खिलाफ पहला फसाद हुआ. पाकिस्तान की आवाम इन्हें काफिर कहते हुए मारकाट मचाने लगी. हालात इतने बिगड़े कि तीन महीने का मार्शल लॉ लगाना पड़ा. लाहौर दंगे के नाम से जानी जाती इस हिंसा में कितने मरे, हर जगह इसका अलग-अलग अनुमान मिलता है. माना जाता है कि कुछ सैकड़ा से लेकर हजारों अहमदिया मारे गए थे. 

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ahmadiyya muslim why religious persecution amid shia sunni clash pakistan photo AP

बाकी मुसलमानों की तरह ये समुदाय भी कुरान और पैगंबर को मानता है, लेकिन एक बड़ा फर्क भी है. अहमदिया मुस्लिम मोहम्मद साहब को आखिरी पैगंबर नहीं मानते. वे यकीन करते हैं कि उनके गुरु यानी मिर्जा गुलाम अहमद, मोहम्मद के बाद नबी हुए थे. उन्होंने ही साल 1889 में अहमदिया मुस्लिम कम्युनिटी की नींव रखी. पूरी दुनिया में इस्लाम को मानने वाले मोहम्मद को ही आखिरी पैगंबर मानते रहे. यही बात अहमदिया मुस्लिमों को बाकियों से अलग बनाती है.

कैसे हुई थी शुरुआत? 

अहमदिया समुदाय को बनाने वाले मिर्जा गुलाम अहमद थे, जिनका जन्म पंजाब के कादियान में हुआ था. यही वजह है कि कई बार इन्हें मानने वाले खुद को कादियानी भी कहते हैं. मार्च 1889 में गुलाम अहमद ने लुधियाना में एक बैठक रखी, जहां उन्होंने अपने खलीफा होने का एलान किया. उसी रोज वहां कई लोगों ने गुलाम अहमद की बात मानी, जिसके बाद से अहमदिया जमात बढ़ती चली गई.

किस देश में कितनी आबादी? 

अलग-अलग आंकड़े मानते हैं कि फिलहाल दुनिया में 10 से 20 मिलियन अहमदिया होंगे, जो कि कुल मुस्लिम आबादी का 1 प्रतिशत है. आकंड़े में इतना बड़ा फर्क इसलिए है क्योंकि ये समुदाय अक्सर अपनी धार्मिक पहचान गोपनीय रखता है. 

पाकिस्तान में लगभग 40 से 60 लाख के साथ इनकी आबादी सबसे ज्यादा है. दूसरे नंबर पर नाइजीरिया है, और फिर तंजानिया है. कई अफ्रीकी देशों में अहमदिया बसे हुए हैं क्योंकि भारत-पाकिस्तान में लगातार इनका विरोध होता रहा, जबकि अफ्रीका इनके लिए उदार रहा. वैसे पाकिस्तान में इस समुदाय की असल आबादी पर विवाद रहा. दरअसल यहां इनपर इतनी सख्ती है कि ये लोग अपना धार्मिक प्रेफरेंस जताने से बचते रहे.

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ahmadiyya muslim why religious persecution amid shia sunni clash pakistan photo AFP

पाकिस्तान में इनकी हालत सबसे खराब

वहां के लोग इन्हें मुस्लिम नहीं मानते. यहां तक कि कानून के मुताबिक, खुद अहमदिया भी अपने-आप को इस्लाम से जुड़ा नहीं बता सकते और न ही अपने धर्म का प्रचार कर सकते हैं, वरना उन्हें 3 साल तक की सजा हो सकती है. सत्तर के दशक में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ये नियम लेकर आए थे. उनकी सरकार ने इन लोगों को माइनोरिटी, वो भी नॉन-मुस्लिम बता दिया. इसके बाद से वहां के मुस्लिम रह-रहकर अहमदिया समुदाय पर हमले करते रहे. उनके कब्रिस्तान आम मुसलमानों से अलग हो गए. मस्जिदें तोड़ी जाने लगीं. उनपर अक्सर ही ईशनिंदा का केस हो जाता है.

हज पर भी जाने पर रोक

अहमदिया मुस्लिमों का यकीन बाकी मुसलमानों को इस कदर अखरता है कि उनका हज पर जाना भी आधिकारिक तौर पर बैन है. मान्यता है कि हर मुस्लिम को जीवन में एक बार मक्का जरूर जाना चाहिए, लेकिन अहमदियों के लिए सऊदी अरब ने दरवाजे बंद कर रखे हैं. सऊदी भी उन्हें मुसलमान नहीं मानता. ऐसे में अगर इस समुदाय का कोई शख्स धार्मिक यात्रा की सोचकर वहां जाए तो उसे हिरासत में लिया जा सकता है.

ahmadiyya muslim why religious persecution amid shia sunni clash pakistan photo AFP

एक और बात अहमदियों को बाकियों से बिल्कुल अलग बनाती है. ये समुदाय भगवान कृष्ण को भी ईश्वर का दूत मानता है. अहमदिया मुस्लिम कम्युनिटी की आधिकारिक वेबसाइट अल इस्लाम में इस बात का जिक्र है. ये तबका दूसरे धर्मों की भी बात सुनता और कहीं न कहीं उसे स्वीकार करता है. जैसे वे बुद्ध और यीशु को भी नबी मानते हैं, जो ऊपरवाले की बात को लोगों तक पहुंचाने का जरिया बने.

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पकिस्तान में और कौन से मुस्लिम समुदाय

पाकिस्तान में मुस्लिम आबादी का बड़ा हिस्सा सुन्नी है, जो 80 फीसदी से ज्यादा है. इसके अलावा 10 से 15 प्रतिशत शिया हैं. मुस्लिमों में कई छोटे समुदाय भी हैं, जैसे, इस्माइली, बोहरा, और जैदी. अहमदिया समुदाय, जिसे 1974 में पाकिस्तान के संविधान ने गैर-मुस्लिम घोषित किया, भी एक महत्वपूर्ण संप्रदाय है. इस समुदाय के धार्मिक अधिकारों पर कई रोकटोक हैं. सूफी परंपरा भी पाकिस्तान में है. इसके अलावा, देवबंदी और बरेलवी जैसे संप्रदाय भी हैं. 

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