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क्या फ्लाइट में खड़े-खड़े भी हो सकता है सफर, क्या है वर्टिकल सीट, जिसकी नहीं मिली मंजूरी?

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद अब पंजाब भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने भी एयरलाइन्स की टूटी हुई सीटों पर गुस्सा दिखाया. इसे लेकर एयर इंडिया से लेकर इंडिगो तक घिरे हुए हैं. वैसे काफी लंबे समय से कई एयरलाइन्स स्टैंडिंग रूम फ्लाइट की बात करती रहीं, जिसमें यात्री खड़े होकर सफर करें.

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एयरलाइन्स में खराब सीट पर अक्सर विवाद होता रहा. (Photo Pixabay)
एयरलाइन्स में खराब सीट पर अक्सर विवाद होता रहा. (Photo Pixabay)

अब केंद्रीय मंत्री भी एयरलाइन्स में व्यवस्था को लेकर शिकायत करते दिख रहे हैं. हाल में शिवराज सिंह चौहान के बाद सुनील जाखड़ ने भी टूटी हुई सीटों की तस्वीर शेयर करते हुए डर जताया कि एयरलाइन्स यात्रियों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही हैं. ये तो हुआ एक पहलू, लेकिन क्या हो अगर फ्लाइट्स में बैठने के लिए सीट ही न मिले, बल्कि खड़ा होकर सफर करना पड़े. स्टैंडिंग रूम ऑनली का कंसेप्ट लंबे समय से प्रस्तावित है. उड़ान को लो-बजट बनाने के लिए इंटरनेशनल स्तर की विमानन कंपनियां भी इसपर जोर देती रहीं. 

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कुछ साल पहले फ्लायर्स के फायदों पर काम करने वाले एनजीओ फ्लायर्सराइट्स ने एक सर्वे किया, जिसमें दावा था कि 25% यात्री ही सीटों में फिट आ पाते हैं. संस्था के मुताबिक, एयरलाइन्स यात्रियों की सीट और उसके सामने के स्पेस को लगातार घटा रही हैं ताकि लेगरूम के नाम पर ज्यादा पैसे वसूले जा सकें. बता दें कि फ्लाइट्स में आराम से बैठने के लिए यानी लेगरूम के लिए एक्स्ट्रा पैसे देने होते हैं. 

क्या हैं खतरे

सिमटी-सिकुड़ी हुई सीट्स केवल कम आरामदेह नहीं होतीं, बल्कि इमरजेंसी में इससे बाहर निकलना भी मुश्किल हो सकता है. कॉर्पोरेट जवाबदेही को लेकर सवाल उठाने वाले थिंक टैंक अमेरिकन इकनॉमिक लिबर्टीज प्रोजेक्ट ने फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन को घेरते हुए कहा किअगर कभी यात्रियों को जल्दी निकालने की जरूरत पड़े तो  टाइटर सीट स्पेस के चलते ये मुमकिन नहीं हो सकेगा. यानी कम स्पेस जानलेवा भी हो सकता है. लंबी दूरी की फ्लाइट्स में इसकी वजह से ब्लड क्लॉटिंग जैसी गंभीर समस्या भी आ सकती है.

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 airlines standing seats problems amid shrinking and broken seating shivraj singh chouhan photo Getty Images

इतनी दिक्कतों के बाद भी एयरलाइन्स लगातार सीटों को न केवल छोटा कर रही हैं, बल्कि स्टैंडिंग फ्लाइट्स का भी आइडिया आ चुका. एयरलाइन्स में काम करने वाली मैन्युफैक्चरिंग कंपनी एयरबस ने साल 2003 में वर्टिकल सीट्स की बात की थी. ये लो-कॉस्ट फ्लाइट्स थीं ताकि जिन लोगों को कहीं पहुंचने की जल्दी हो, उन्हें ज्यादा किराया दिए बगैर फ्लाइंग की सुविधा मिल सके.

एयरबस के बाद कई कंपनियों ने ऐसे आइडिया दिए. इसमें यात्री खड़े होते और एक बेल्ट से बंधे रहते ताकि टर्बुलेंस में किसी तरह का जोखिम न रहे. कुछ ने ज्यादा उदारता दिखाते हुए साइकिल जैसी सीट यानी अधबैठे फ्लाइंग ऑप्शन भी दिए. 

एयरलाइन्स वर्टिकल सीट्स तो ला नहीं पा रहीं, लेकिन वे सीट के साइज जरूर लगातार कम कर रही हैं. फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते कुछ सालों में औसत एयरलाइन्स का सीट साइज 18 इंच से घटकर साढ़े 16 इंच रह गया. यही हाल तमाम दुनिया का है. हालांकि अध्ययनों के मुताबिक, एक वयस्क शख्स को आराम से बैठने के लिए 20 से 24 इंच का स्पेस चाहिए होता है. 

airlines standing seats problems amid shrinking and broken seating shivraj singh chouhan photo Pixabay

स्टैंडिंग रूम ओनली सीट अरेंजमेंट का मतलब है, यात्री पूरी तरह बैठने के बजाय खड़े होकर सफर करेंगे, जिससे एयरलाइंस ज्यादा से ज्यादा लोगों को कम कीमत पर ले जा सके. इसमें फ्लायर्स को एक वर्टिकल सीट दी जाती, जिसमें वे पूरी तरह नहीं बैठ सकते, लेकिन थोड़ा सहारा लेकर टिक सकते. सीटें बस या ट्रेन में खड़े होने के तरीके की तरह होतीं, जहां यात्रियों को सेफ्टी बेल्ट से बांधा जाता. सीटों के बीच की दूरी को लगभग खत्म कर दिया जाता. यह बात बीते दो दशक से लगातार चर्चा में है लेकिन सुरक्षा वजहों से किसी भी देश ने इसे मंजूरी नहीं दी. 

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क्या-क्या रिस्क हैं वर्टिकल सीट्स में

अगर फ्लाइट किसी आपात स्थिति में पहुंच जाए जैसे टर्बुलेंस या क्रैश लैंडिंग तो यात्रियों को गंभीर चोट लग सकती है. 

एविएशन सेफ्टी रेगुलेटर्स यात्रियों की गरिमा और सुविधा देखते हैं, उनके अनुसार सभी यात्रियों के पास एक स्टैंडर्ड सीट और सीट बेल्ट जरूरी है, जो स्टैंडिंग सीट में मुमकिन नहीं. 

बुजुर्ग या कॉम्प्रोमाइज्ड सेहत वाले फ्लायर्स के लिए ये बेहद असुविधाजनक आइडिया था. 

स्टैंडिग सीट्स चूंकि एक-दूसरे से लगभग सटी हुई होतीं, ऐसे में प्राइवेसी में भी दखलंदाजी हो सकती थी. 

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