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क्या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक संस्थान है, क्यों 6 दशक बाद दोबारा छिड़ी लड़ाई?

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा फिर गरमाया हुआ है. इसके माइनोरिटी स्टेटस पर लंबे समय से चला आ रहा विवाद सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. 7 जजों की पीठ ने माना कि यूनिवर्सिटी माइनेरिटी टैग के बगैर भी ब्रांड वैल्यू रखती है. समझिए, क्या है माइनोरिटी इंस्टीट्यूशन और कैसे किसी संस्थान को ये दर्जा मिलता है.

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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Photo- India Today)
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Photo- India Today)

साठ के आखिर में अदालत ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने अलीगढ़ यूनिवर्सिटी को माइनोरिटी मानने से इनकार कर दिया.  उसका कहना था कि इसे मुस्लिमों ने नहीं बनाया है. आगे चलकर अस्सी की शुरुआत में इसे वापस से माइनोरिटी स्टेटस मिला तो लेकिन लगभग 2 दशक बाद इलाहाबाद कोर्ट ने इसे वापस खारिज कर दिया. सहमति मिलने और खारिज होने का ये सिलसिला लंबे समय ये चला आ रहा है. फिलहाल खुद सेंटर इसे माइनोरिटी के दर्जे से हटाना चाहती है. वहीं यूनिवर्सिटी प्रशासन के अलग तर्क हैं. 

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क्या है माइनोरिटी स्टेटस और कैसे करता है काम

कंस्टीट्यूशन की धारा 30(1) के तहत मजहब और भाषा के आधार पर माइनोरिटी को अपनी तरह का शिक्षण संस्थान बनाने का हक है. अल्पसंख्यक संस्थान को भी उसी तरह की सरकारी सहायता मिलती है, जैसी बाकियों को, इसमें स्टेट या सेंटर कोई फर्क नहीं करता. 

यानी देखा जाए तो माइनोरिटी स्टेटस लिए हुए संस्थान वे हैं, जो किसी खास अल्पसंख्यक वर्ग के कल्चर या भाषा को प्रोटेक्ट करने का काम करते हैं. इसमें एडमिशन वैसे तो बाकियों को भी मिलता है, लेकिन अल्पसंख्यकों के लिए ज्यादा सीटें आरक्षित होती हैं. 

aligarh muslim university minority status controversy supreme court photo - India Today

हमारे यहां राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग अधिनियम भी है, जो ऐसे संस्थानों पर गाइडलाइन देता है. इसके अनुसार, अगर किसी इंस्टीट्यूशन को किसी अल्पसंख्यक ने बनाया हो, और वही समुदाय उसे चला रहा हो तो ऐसे इंस्टीट्यूशन माइनोरिटी स्टेटस की मांग कर सकते हैं. इसमें ये चीज भी साफ कर दी गई कि माइनोरिटी राज्य के आधार पर तय हो, न कि सेंटर से तुलना करते हुए. यानी अगर किसी राज्य में कोई वर्ग कम संख्या में हो, और उसका कोई सदस्य शैक्षणिक संस्थान बनाए और चलाए तो वो अल्पसंख्यक के तहत आ सकता है. 

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क्यों अल्पसंख्यक का दर्जा मांग रहा यूनिवर्सिटी प्रशासन

अब बात करते हैं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की, तो इसके बनने का इतिहास भी पेचीदा है. कई कमेटियों के बनने-बिगड़ने के बाद आखिर में साल 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट बनाकर इस यूनिवर्सिटी की शुरुआत हुई. इसे बनाने का श्रेय सर सैयद अहमद खान को है. यही बात याचिकाकर्ता अपने पक्ष में कहते हैं. उनका कहना है कि चूंकि इसकी स्थापना एक मुस्लिम ने की तो यूनिवर्सिटी को माइनोरिटी का दर्जा मिलना ही चाहिए. वे ही तय करेंगे कि अल्पसंख्यकों के पास कितनी सीटें हों, और माइनोरिटी को क्या मिलेगा. 

aligarh muslim university minority status controversy supreme court photo - India Today

क्या कहना है दूसरे पक्ष का 

दूसरी तरफ का तर्क है कि अकेले सर सैयद अहमद खान ने नहीं, बल्कि AMU के लिए हिंदू राजाओं ने भी अपनी जमीनें डोनेट की थीं. यहां तक कि सामान्य वर्ग के आम लोगों ने भी भारी चंदा किया था. इस तरह से देखा जाए तो अकेले माइनोरिटी का इसपर हक नहीं. खुद इलाहाबाद हाईकोर्ट भी मान चुका है कि शुरुआत में इस संस्थान की बागडोर गर्वनर जनरल के हाथ में थी, न कि अकेले माइनोरिटी के पास. तो इस तरह से दोनों ओर से खींचातानी चलती रही. 

लेकिन कोर्ट तक क्यों पहुंचा मामला

- AMU पर आरोप लगता रहा कि वो खुला भेदभाव करती है. असल में वो अल्पसंख्यक दर्जे के तहत मेडिकल कॉलेज में मुस्लिम छात्रों को 75% सीटें देती हैं, जबकि सामान्य के लिए 25% सीटें. 

- मुसलमान स्टूडेंट्स का टेस्ट खुद यूनिवर्सिटी लेती है, जबकि बाकियों को एम्स के तहत टेस्ट देना होता है. आरोप रहा कि इसमें भी भेदभाव होता है. 

- साल 2005 में मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएशन में 50% सीटें मुस्लिमों के लिए रिजर्व करने की बात हुई, तभी मामला इलाहाबाद कोर्ट पहुंचा, और माइनोरिटी दर्जा ले लिया गया. 

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aligarh muslim university minority status controversy supreme court photo - India Today

सरकारों का क्या रहा रुख

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इसी फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक के बाद एक कई याचिकाएं दायर हुईं. एक याचिका तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार की तरफ से भी थी, जो कि अलीगढ़ को अल्पसंख्यक संस्थान बनाए रखने पर जोर दे रही थी. सरकार बदलने पर केंद्र का रुख बदला और उसने अपील वापस लेनी चाही, ये कहते हुए कि धर्मनिरपेक्ष देश में अल्पसंख्यक संस्थान की बात सही नहीं लगती. फिलहाल ये मामला सुप्रीम कोर्ट के पास है. 

जामिया के पास भी माइनोरिटी का दर्जा

दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी को भी साल 2011 में अल्पसंख्यक दर्जा मिला लेकिन इसपर भी बीच-बीच में विवाद होते रहे. जैसे कुछ समय पहले ही इसने दिल्ली हाईकोर्ट से एक PIL के जवाब में कहा था कि चूंकि ये अल्पसंख्यकों के लिए है इसलिए उसपर EWS के लिए 10 प्रतिशत रिजर्वेशन का नियम लागू नहीं होता. जामिया को नेशनल कमीशन फॉर माइनेरिटी एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स से ये दर्ज मिला.

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