scorecardresearch
 

कैसे होती है जजों के आचरण की जांच, कब और कैसे चल सकता है उनपर मुकदमा?

दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा पर आरोप है कि उनके घर से भारी मात्रा में कैश मिला. फिलहाल उनकी इन-हाउस जांच चल रही है. पहले भी कुछ मौकों पर न्यायाधीशों के आचरण शक के दायरे में आ चुके. लेकिन क्या आम लोगों की तरह जजों पर कार्रवाई होती है, और अब तक ऐसे मामलों में क्या हो चुका?

Advertisement
X
न्यायपालिका की आजादी बनाए रखने पर लगातार जोर दिया जाता रहा. (Photo- Reuters)
न्यायपालिका की आजादी बनाए रखने पर लगातार जोर दिया जाता रहा. (Photo- Reuters)

लगभग 10 रोज पहले दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर में एक दुर्घटना के दौरान भारी कैश मिला. जस्टिस का कहना है कि कैश उनका नहीं, हालांकि इसके बाद से सवाल उठ रहे हैं कि क्या देश में जजों का आचरण पक्का करने और उनपर कार्रवाई के लिए कोई नियम-कायदा नहीं. फिलहाल जस्टिस यशवंत वर्मा मामले की जांच चल रही है. इससे पहले भी जजों को लेकर कई बार भूचाल आ चुका. यहां तक कि बात महाभियोग तक पहुंच गई थी. 

Advertisement

देश में न्यायपालिका की आजादी को बनाए रखने के लिए जजों के आचरण और संभावित करप्शन से निपटने के लिए कई नियम और प्रक्रियाएं हैं. लेकिन ये कितनी असरदार हैं? और क्या जजों की संपत्ति की सही तरीके से निगरानी हो पाती है? 

जजों के नैतिक आचरण को देखने-भालने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने साल 1997 में जजों के आचरण की आचार संहिता जारी की, जिसे रेस्टेटमेंट ऑफ वैल्यूज ऑफ ज्यूडिशियल लाइफ कहा जाता है. यह कोई कानून नहीं है, जिसका पालन करना ही हो, बल्कि सभी जज स्वेच्छा से इसे मानते हैं. इसके तहत जज किसी भी राजनीतिक गतिविधि में भाग नहीं ले सकते. वे अपने परिवार या दोस्तों को फायदा पहुंचाने के लिए अपने पद का इस्तेमाल नहीं कर सकते. 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(6) में सुप्रीम कोर्ट और अनुच्छेद 219 में हाई कोर्ट के जजों को संविधान की रक्षा और न्याय की शपथ लेनी होती है. 

Advertisement

allegations on Delhi High Court judge Justice Yashwant Varma how the judiciary work india photo PTI

क्या जजों की संपत्ति की जांच हो सकती है

साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालकृष्णन ने जजों की संपत्ति को सार्वजनिक करने के प्रस्ताव का विरोध किया था. बाद में, जजों ने अपनी संपत्ति की घोषणा अपनी मर्जी  से करने का फैसला किया, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं बनाया गया. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की संपत्ति का ब्यौरा कोर्ट की वेबसाइट पर होता है लेकिन इसकी कोई बाध्यता नहीं. 

अगर कोई जज रिश्वत लेता हुआ या करप्शन में लिप्त पाया जाए तो सीबीआई या दूसरी एजेंसियां जांच कर सकती हैं. वैसे सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों के खिलाफ जांच के लिए सेंटर से इजाजत लेनी होती है, जिससे कार्रवाई लंबी या मुश्किल हो सकती है. 

कब जजों को हटा सकते हैं

भारत में जजों को उनके पद से हटाने का अकेला तरीका है- महाभियोग. हाईकोर्ट जज के खिलाफ महाभियोग लाना मुमकिन है. हटाने की प्रोसेस को इतना कड़ा बनाया भी इसलिए गया ताकि जज दबावों से दूर रहते हुए निश्चिंत होकर काम कर सकें. संविधान के अनुच्छेद 124(4) और अनुच्छेद 217 के तहत, जजों को पद से हटाने की प्रोसेस तय की गई है. वैसे यह काफी मुश्किल प्रक्रिया तो है लेकिन अगर जज पर गलत व्यवहार या क्षमता की कमी जैसे आरोप लगें तो ऐसा कदम उठाया जा सकता है. 

Advertisement

allegations on Delhi High Court judge Justice Yashwant Varma how the judiciary work india photo PTI

किसे कहा जाता है गलत व्यवहार 

इसकी कोई सीधी परिभाषा नहीं है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जजों के लिए आचरण और नैतिकता से जुड़ी गाइडलाइन जारी की, जिसे ज्यूडिशियल एथिक्स कहते हैं. काफी अंदाजा इससे हो जाता है. इसके अलावा संबंधित जज अगर रिश्वतखोरी जैसे आरोपों से घिरा हो, या फिर उसका कैरेक्टर भ्रष्ट दिखे तो यह बातें भी इसी श्रेणी में आती हैं. हाई कोर्ट जज अगर किसी ऐसी बीमारी का शिकार हो जाएं, जिसमें उनकी फैसले लेने की क्षमता पर असर हो, या फिर वे कानून की उतनी समझ न रखते हों तो भी ये प्रस्ताव लाया जा सकता है.

क्या है पूरी प्रोसेस 

महाभियोग का प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है. 

इसपर लोकसभा में कम से कम 100 या राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों का सपोर्ट मिलना चाहिए. प्रस्ताव पेश होने के बाद, तीन सदस्यीय समिति बनती है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक जज भी होंगे. 

अगर समिति आरोपों को सही पाए तो प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में पेश होता है. 

प्रस्ताव का दो-तिहाई बहुमत से पारित होना जरूरी है.

साबित होने पर क्या एक्शन 

महाभियोग पास हो जाए तो राष्ट्रपति संबंधित जज को पद से हटाने का आदेश जारी करेंगे. यह एक संवैधानिक कार्रवाई है. इसके बाद जज सरकारी सेवाएं नहीं ले सकते. अगर महाभियोग में कोई आपराधिक मामला भी शामिल है तो सामान्य ढंग से जांच चलती है.

Advertisement

कब-कब आया महाभियोग प्रस्ताव 

- नब्बे की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के जज वी रामास्वामी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर महाभियोग लाया गया था लेकिन यह लोकसभा में पास नहीं हो सका. 

- कोलकाता हाई कोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ पैसों को लेकर ये प्रस्ताव आया लेकिन उन्होंने पहले ही इस्तीफा दे दिया. 

- साल 2018 में विपक्षी दलों ने दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर महाभियोग प्रस्ताव लाना चाहा लेकिन तत्कालीन राज्यसभा सभापति ने उसे खारिज कर दिया.

allegations on Delhi High Court judge Justice Yashwant Varma how the judiciary work india

किन जगहों पर न्यायिक सिस्टम सबसे स्वतंत्र

वैसे तो लगभग सारे ही देश तय करते हैं कि उनके यहां की न्यायपालिका किसी भी प्रेशर से इतर अपना काम कर सके लेकिन नॉर्डिक देश इसमें सबसे आगे हैं. वहां आम नागरिक किसी भी ताकतवर नेता या बड़े बिजनेसमैन के खिलाफ अदालत जा सकता है और जीत भी सकता है अगर वो सही हो. यहां जजों पर न तो सत्ता का दबाव होता है, न रिश्वत की होड़. स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क, फिनलैंड और आइसलैंड की न्यायपालिका को अक्सर सबसे ईमानदार माना जाता रहा. 

ज्यादातर देशों में अक्सर सरकारों पर जजों की नियुक्ति या ट्रांसफर को प्रभावित करने के आरोप लगते हैं लेकिन नॉर्डिक मुल्क में यह सब पूरी तरह मेरिट-बेस्ट होता है. कोई भी सरकारी नेता या मंत्री जजों की नियुक्ति में दखल नहीं दे सकता. यहां जुडिशियल अपॉइंटमेंट बोर्ड होता है, जिसका काम यही देखना है.

Advertisement

हमारे यहां जज अपनी मर्जी से अपनी संपत्ति के बारे में बताएं तो ठीक, वरना कोई जांच नहीं होगी. वहीं इन देशों में हर साल जजों को अपनी संपत्ति सार्वजनिक करनी पड़ती है. इसके बाद भी अगर कोई जज संदेहास्पद तरीके से अमीर दिखे तो तुरंत जांच शुरू हो जाती है. इसके लिए सेंटर से इजाजत लेने का इंतजार नहीं करना पड़ता. यही वजह है कि 90 फीसदी से ज्यादा नॉर्वे, डेनमार्क और स्वीडन के नागरिक अपनी न्यायपालिका को भरोसेमंद मानते हैं. 

Live TV

Advertisement
Advertisement