scorecardresearch
 

अंडमान-निकोबार की वो ट्राइब्स, बाहरी दुनिया से जिनका कोई संपर्क नहीं, क्यों इन्हें मुख्यधारा में लाना खतरनाक?

अंडमान-निकोबार में अलग-थलग रहती जनजातियों को मुख्यधारा से जोड़ने की पहल चल रही है. इस बार के आम चुनावों में पहली बार वहां के पर्टिकुलरली वल्नरेबल ट्राइबल ग्रुप्स (पीवीटीजी) में से कई लोगों ने मतदान भी किया. लेकिन माना जा रहा है कि विकास से जोड़ना इनके लिए खतरनाक हो सकता है. बता दें कि कुछ ट्राइब्स के सौ से भी कम लोग बाकी हैं.

Advertisement
X
आदिवासियों की मेनस्ट्रीमिंग उनकी पहचान खत्म कर सकती है. (Photo- AI generated)
आदिवासियों की मेनस्ट्रीमिंग उनकी पहचान खत्म कर सकती है. (Photo- AI generated)

साल 2018 में अंडमान-निकोबार द्वीप के एक आदिवासी समूह ने एक अमेरिकी टूरिस्ट की कथित तौर पर हत्या कर दी थी. सेंटिनली ट्राइब को दुनिया के सबसे अनछुए समुदायों में रखा जाता है, जिसका बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं. अंडमान-निकोबार में कई और भी जनजातियां हैं, जो अलग-थलग रहती आईं. अब इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की कवायद हो रही है. 

Advertisement

पिछले महीने निकोबार द्वीप में सेंटर की एक महत्वाकांक्षी योजना पर बात आगे बढ़ी. अंतरराष्ट्रीय ट्रांसशिपमेंट परियोजना उन जंगलों के आसपास आकार लेगी, जहां आदिवासी रहते हैं. हालांकि स्थानीय प्रशासन का कहना है कि प्रोजेक्ट उस जगह से कोई छेड़छाड़ नहीं करेगा, बल्कि दूसरी जगह इसका काम चलेगा. इस बीच अंडमान और निकोबार में रहते आदिवासी समुदाय पर बात होने लगी. घने जंगलों में रहते ये समूह बहुत कम ही बाहर आते हैं. डर है कि मेनस्ट्रीम होने पर पहले से घट चुकी इनकी आबादी एकदम से खत्म न हो जाए. 

कैसे कोई पर्टिकुलरली वल्नरेबल ग्रुप्स में आता है 

- इसमें देखा जाता है कि फलां समूह में क्या कोई पढ़ा-लिखा है, क्या उनके पास स्कूल जैसा कोई स्ट्रक्चर है. 

- तकनीक के पैमाने पर भी जांच होती है. अगर समुदाय बिजली, मोबाइल जैसी सुविधाओं से दूर है तो उसे पीवीटीजी में रखते हैं. 

- जिस ग्रुप के लोग आर्थिक तौर पर काफी पिछड़े हुए हों, और जिनके पास उससे निकलने का भी तरीका न हो, वो इसका हिस्सा है. 

- पीवीटीजी के पास चूंकि न हेल्थ की सुविधा होती है, न खानपान, ऐसे में उनकी आबादी काफी कम हो चुकी होती है. 

Advertisement

andaman and nicobar tribes mainstreaming controversy photo Getty Images

अंडमान में कितनी ऐसी जनजातियां

खासतौर पर कमजोर जनजातियों में पांच समुदायों को टॉप पर रखा गया. ये हैं- ओंगे, जारवा, ग्रेट अंडमानीज, सेंटिनलीज और शोम्पेन. इन सबका ही संपर्क बाकी दुनिया से कटा हुआ है. साथ ही इनकी आबादी भी काफी कम हो चुकी है. 

कैसी है शोम्पेन जनजाति

ग्रेट निकोबार द्वीप पर बसी शोम्पेन जनजाति को पीवीटीजी में रखा जाता रहा. द्वीप के भीतर घने जंगलों में रहने वाले इन लोगों की आबादी साल 2011 में लगभग 230 थी. इसी साल लोकसभा चुनाव में इसके सात सदस्यों ने पहली बार वोट भी किया था. इसके लिए वे जंगल से बाहर आए थे. शोम्पेन खानाबदोश लोग हैं, जिनका खानपान शिकार से ही होता रहा. इनके पास कोई लिखित भाषा भी नहीं. ऐसे में चुनाव के लिए संपर्क के दौरान अधिकारियों को काफी मुश्किलें भी हुई थीं. इंटरनेशनल ट्रांसशिपमेंट प्रोजेक्ट के बारे में अंदेशा जताया जा रहा है कि इसका सबसे ज्यादा असर इनपर ही पड़ेगा. 

जारवा ट्राइब की क्या है खासियत

जारवा जनजाति की आबादी ढाई सौ से चार सौ तक हो सकती है. अंडमान के दक्षिणी हिस्से की तरफ बसा ये समूह गहरे जंगलों में रहता है. जारवा जनजाति का बाहरी दुनिया से बहुत सीमित संपर्क रहा. यहां तक कि अगर कोई उन तक पहुंचना चाहे तो उसे भी ये खत्म कर देते. जारवा भाषा बोलने वाले ये लोग अंडमान ट्रंक रोड के निर्माण के दौरान पहली बार बाहरी संसार से मिले-जुले. लेकिन इससे उनकी पहचान और आबादी दोनों पर खतरा मंडरा रहा है. 

Advertisement

andaman and nicobar tribes mainstreaming controversy photo AFP

एक और जनजाती है- ग्रेट अंडमानी

18वीं सदी में उनकी अनुमानित आबादी दस हजार के आसपास थी. लेकिन जल्द ही जनसंख्या घटने लगी. यहां तक कि साल 1969 में ये घटते हुए 20 से भी कम रह गए थे. प्रशासन ने इसके बाद इनकी आबादी बढ़ाने के लिए इन्हें प्रोटेक्ट करना शुरू किया. फिलहाल ये लोग स्टेट आइलैंड नाम के बेहद छोटे द्वीप पर रहते हैं. 

सेंटिनली ट्राइब काफी आक्रामक

सेंटिनली लोग सेंटिनल आइलैंड के रहने वाले हैं. इनके बारे में माना जाता है कि ये लोग अमेजन के घने जंगलों में रहते आदिवासियों जितने ही अलग हैं, जिन्हें बाहर की दुनिया से कोई वास्ता नहीं. जब भी उनका सामना किसी बाहरी व्यक्ति से होता है तो वे हिंसक हो उठते हैं. साल 2018 में अमेरिकी टूरिस्ट की हत्या का आरोप भी इसी समूह पर लगा था. इस जनजाति की असल जनसंख्या अभी पता नहीं है. अनुमान है कि ये लोग कई सौ होंगे.

ओंगी जनजाति लिटिल अंडमान द्वीप पर बसी हुई है. यह भी वल्नरेबल ट्राइब में आती है, जिसके पास न शिक्षा है, न ही तकनीक. जंगली फल-फूल और शिकार ही उनका भोजन है. ओंगी भाषा बोलने वाले इन लोगों का कुछ समय पहले ही बाहरवालों से संपर्क हुआ. प्रशासन ने इनके लिए एक प्राइमरी स्कूल भी बनाया. 

Advertisement

मेनस्ट्रीम होना आबादी के लिए बेहद खतरनाक

दुनिया से कटकर रहते इन समुदायों की बीमारियों से लड़ने की क्षमता काफी कम है. इन्होंने कोई भी ऐसा इंफेक्शन नहीं झेला जो हमारे लिए आम है. यही वजह है कि अगर इनका मेलजोल बढ़ा तो मामूली लगने वाली सर्दी-जुकाम जैसी बीमारियां भी इनके लिए जानलेवा हो सकती हैं. अगर एक व्यक्ति संक्रमित हुआ, तो पूरा समुदाय इससे अछूता नहीं रहेगा. ऐसे में वल्नरेबल ग्रुप्स की आबादी रातोरात खत्म हो सकती है.

ऐसा होता भी रहा है. जैसे शोम्पेन और जारवा जनजातियों के लोग जैसे ही बाहरी लोगों से मिले-जुले, उनकी आबादी कम हो गई. यही हाल अमेजन का है. वहां की कुछ ट्राइब्स में संपर्क के बाद चेचक फैल गया, जिससे उनकी आबादी लगभग खत्म हो गई. 

Live TV

Advertisement
Advertisement