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सांप के जहर से बचने के लिए क्या घर पर रख सकते हैं दवा, ऑस्ट्रेलिया में चलन, स्नेकबाइट के बाद क्या बिल्कुल नहीं करें?

उत्तर प्रदेश के एक युवक को कुछ ही दिनों में सातवीं बार सांप ने काट लिया. फिलहाल वो अस्पताल में है. अगर जहरीले सांपों की बात करें तो ऑस्ट्रेलिया टॉप पर है. सबसे जहरीली 25 किस्मों में से 21 इसी देश में मिलेंगी, लेकिन तब भी यहां स्नेक बाइट से मौत या अपंगता कम है. ऑस्ट्रेलियाई लोग अपने घरों में ही एंटीडोट रखते और इसका इस्तेमाल भी जानते हैं.

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सांप काटने पर झाड़फूंक की जगह तुरंत इलाज सबसे जरूरी है. (Photo- Getty Images)
सांप काटने पर झाड़फूंक की जगह तुरंत इलाज सबसे जरूरी है. (Photo- Getty Images)

बारिश शुरू होते ही भारत में स्नेक बाइट के मामले सुनाई देने लगते हैं. लेकिन अभी आया एक केस बिल्कुल अलग है, जहां एक ही युवक को लगातार सात बार सांप डस चुका. इस बार उसकी स्थिति गंभीर बताई जा रही है. दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलियाई समेत कई देश हैं, जहां सांपों की सबसे जहरीली प्रजातियां होने के बाद भी वहां के लोगों को कम ही नुकसान पहुंचता है. यहां लोग इस बात के लिए भी तैयार रहते हैं कि सांप काट ले तो पहले एंटीवेनम दवा लें, तब फटाफट अस्पताल जाएं.

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ऑस्ट्रेलिया में सबसे ज्यादा पॉइजनस सांप

इस देश को पूरी दुनिया में जीव-जंतुओं के मामले में सबसे खतरनाक माना जाता रहा. यहां मगरमच्छों से लेकर जहरीली मकड़ियां और सबसे ज्यादा पॉइजनस सांप भी हैं. इस द्वीप देश में वैसे तो डेढ़ सौ से ज्यादा जहरीले स्नेक्स हैं, लेकिन इनमें से भी 21 किस्में सबसे वेनमस मानी जाती हैं. मान लीजिए कि यही वे सांप हैं, जिनका काटा पानी नहीं मांगता. लेकिन इसके बाद भी ऑस्ट्रेलिया में स्नेक बाइट से मौत बहुत कम होती रही. 

इसके वैसे तो कई कारण हैं, जैसे ऑस्ट्रेलियाई लोगों को पता है कि कहां जाना टालना है, या फिर सांप से मुठभेड़ हो ही जाए तो भागने या उसे मारने की बजाए दम साधकर खड़ा हो जाना है. इसके अलावा एक कारण और भी है, जो स्नेक बाइट के बावजूद यहां के लोगों को नुकसान नहीं पहुंचता.

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antivenom for snakebite india bizarre case of snakebite in uttar pradesh photo Getty Images

होती रहीं सबसे कम मौतें

इंटरनल मेडिसिन जर्नल में साल 2000 से 2013 तक स्नेक बाइट के मामलों पर बात की गई. इसके अनुसार, इस देश में सालाना दो से तीन लोगों की ही सांप काटने से मौत होती है, वहीं अपगंता के मामले नहीं के बराबर हैं. दूसरी तरफ दक्षिण अफ्रीका को देखें तो यहां हर साल साढ़े 4 सौ से ज्यादा मौतें स्नेकबाइट से होती रहीं. जबकि अकेले नाइजीरिया में ढाई हजार के आसपास लोग हर साल सांप के जहर से अपंग हो जाते हैं.

यहां बता दें कि सांप का जहर जिस अंग में फैलता है, उसे भी बेकार कर देता है, जबकि कई सांपों का विष इंटरनली ही असर करता और मौत देता है, अगर सही वक्त पर इलाज न मिले. 

भारत में सबसे ज्यादा कैजुअलिटी

हमारे देश में स्नेकबाइट से किसी भी और जगह की तुलना में कई गुना ज्यादा मौतें होती रहीं. प्रीमैच्योर मृत्यु पर स्टडी करने वाली संस्था मिलियन डेथ स्टडी ने साल 2020 में ये खुलासा किया था कि भारत में सालाना 58 हजार लोग सांपों के काटने से मरते हैं. स्मिथसोनियन की रिपोर्ट में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के हवाले से ये तक दावा किया गया कि हमारे यहां मौजूद सांपों के जहर से बचने के दवाएं भी उतनी असरदार नहीं. लेकिन इससे भी ज्यादा बड़ी बात है कि कई घंटों तक पीड़ित घरेलू इलाज में ही पड़ा रहा जाता है. इससे अस्पताल पहुंचने पर वो या तो बच नहीं पाता, या अपंग हो चुका होता है. 

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क्या हैं एंटीवेनम दवाएं 

सांप के काटने पर एंटीवेनम दिया जाता है. ये रूल पूरी दुनिया में एक समान है. दवा अपने-आप में कई तरह के जहर का मिश्रण होती है जो स्नेक पॉइजन को बेअसर कर देती है. ऑस्ट्रेलिया में यह अलग तरह से बनती है. सांपों की मौजूदगी इस देश में इतनी कॉमन है कि लगभग सभी लोग अपने घर पर फर्स्टएड बॉक्स में ही एंटीडोट रखते हैं. इसकी उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है कि सांप काटने पर कैसे तुरंत दवा लेकर अस्पताल पहुंचे. 

antivenom for snakebite india bizarre case of snakebite in uttar pradesh

लेकिन दवा के बाद अस्पताल की क्या जरूरत

एंटीवेनम देने के बाद सांप के जहर का असर तो खत्म होने लगता है, लेकिन शरीर में एलर्जिक रिएक्शन पैदा हो सकता है. इसे एनाफिलैक्सिस कहते हैं. ये बेहद गंभीर, जानलेवा स्थिति है, जो कुछ ही सेकंड्स या मिनटों में पैदा हो सकती है. यही वजह है कि सांप काटने पर एंटीवेनम के बाद भी अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ती है. वहां मरीज को जरूरी दवाएं दी जाती हैं और निगरानी में रखा जाता है ताकि जहर और एंटी-एलर्जी दोनों के असर को खत्म किया जा सके. 

कई देश एंटीवेनम का उत्पादन करते हैं. इनमें ऑस्ट्रेलिया के साथ ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, वेनेजुएला और अर्जेंटिना भी शामिल हैं. हमारे यहां भी सांप के जहर की काट बनाने का काम कई फार्मास्युटिकल लैब करते आए हैं. ये एंटीडोट सांपों के जहर से ही बने होते हैं. 

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क्या विदेशों की तरह यहां भी घर पर रख सकते हैं एंटीवेनम

वैसे तो ऐसा किया जा सकता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में ऐसी सलाह नहीं दी जाती. एंटीवेनम रखते हुए कई सावधानियां रखनी होती हैं, जैसे एक खास तापमान पर और बिल्कुल साफ-सूखे स्थान पर ही दवा रखी जा सकती है. इसकी एक्सपायरी डेट भी होती है. कई दवाएं अलग-अलग तरह से काम करती हैं. ये भी देखना होता है कि किस जहर पर क्या काम करेगा.

ऑस्ट्रेलिया में इसके लिए ट्रेनिंग भी मिलती है. यहां वो सुविधा शायद न मिल सके. यही वजह है कि एंटीवेनम घर पर कम ही लोग रखते होंगे. सांप काटने पर एक खुराक से काम नहीं चलता. कई बार ज्यादा जहरीली बाइट पर दवाओं की कई शीशियां लग जाती हैं. अस्पताल में इसपर नजर रखना आसान है. 

antivenom for snakebite india bizarre case of snakebite in uttar pradesh photo AFP

सांप काटने पर गलत एंटीवेनम लेने से इलाज तो बेकार हो ही जाता है, मरीज की स्थिति और बिगड़ सकती है. इससे बचने के लिए साल 1979 में ही ऑस्ट्रेलिया ने स्नेक वेनम डिटेक्शन किट तक बना दी. ये किट पहचान करती है कि पीड़ित को किस सांप ने काटा है, ताकि उसी अनुसार दवा दी जा सके. 

सांप काटने पर तुरंत क्या करें, क्या नहीं

सांप काटने पर प्रभावित जगह को चूसने से असर कम नहीं होता, बल्कि ये करना और घातक हो सकता है. 

घाव के आसपास तुरंत मार्क कर दें ताकि अस्पताल में डॉक्टर सूजन देख सके. 

काटी हुई जगह पर न तो पानी लगाएं, न बर्फ की या किसी गर्म चीज से सेंक दें. 

दर्द की कोई भी दवा लिए बगैर सीधे इमरजेंसी पहुंचे. 

स्नेकबाइट अगर हाथ या पैर में हो तो सारे गहने या घड़ी-अंगूठी उतार दें. 

जिस हिस्से में सांप ने काटा हुआ हो, उसकी मूवमेंट कम कर दें ताकि असर आगे न बढ़े. 

काटी हुई जगह के आसपास  कपड़ा न बांधें. इससे खून का फ्लो कम होने पर अंग काटने की नौबत आ सकती है. 

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