कहते हैं कि 'राजनीति है ही गड़े मुर्दे उखाड़े जाने का नाम' और बीते महीने रिलीज हुई फिल्म 'छावा' ने सियासत में ऐसी हलचल मचाई है कि इसने मुगलिया सल्तनत के एक तुर्क 'औरंगजेब' को फिर से चर्चा के बाजार में ला खड़ा किया है.
महाराष्ट्र में सपा नेता अबू आजमी ने बयान दिया था कि 'मैं 17वीं सदी के मुगल बादशाह औरंगजेब को क्रूर, अत्याचारी या असहिष्णु शासक नहीं मानता. इन दिनों फिल्मों के माध्यम से मुगल बादशाह की विकृत छवि बनाई जा रही है.'
सपा नेता अबू आजमी के बयान पर हंगामा
उनके इस बयान को विरोधी दलों ने लपक लिया. तब से अबू आजमी माफी मांग चुके हैं, सफाई दे चुके हैं, लेकिन बहस अब इससे एक कदम और आगे बढ़ चुकी है. औरंगजेब के क्रूर होने न होने को लेकर सवाल उठ रहे हैं. इस सवाल के जवाब में इतिहासकार यदुनाथ सरकार की औरंगजेब के जीवन पर आधारित किताब का रेफरेंस लिया जा सकता है. इसके अलावा कई ब्रिटिश और इतालवी इतिहासकारों ने भी औरंगजेब से जुड़े उस किस्से को अपनी किताबों में बयां किया है, जो सीधे उससे और उसके बड़े भाई दाराशिकोह से जुड़ा हुआ है.
केंद्र सरकार खोज रही थी दाराशिकोह की कब्र
बीते दो साल पहले तक एक खबर काफी चर्चा में रही थी थी केंद्र सरकार इस सवाल का जवाब तलाश करवा रही है कि आखिर मुगल दौर के सबसे जहीन और विद्वान शहजादे दाराशिकोह की असली कब्र कहां है? एएसआई पूर्व रीजनल डायरेक्टर केके मुहम्मद ने तब मीडिया बातचीत में कहा था कि जहां तक उनकी कब्र की तलाश का सवाल है, तो सरकार और एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) हैंड हेल्ड एक्सरे डिवाइस की मदद से दिल्ली में हुमायूं के मकबरे के पीछे स्थित कब्रों की एक्स-रे इमेज ले सकते हैं और इसका सर्वे भी करा सकते हैं.
उनके मुताबिक, ऐतिहासिक दस्तावेजों की मानें तो मुगलकाल में दाराशिकोह के अलावा ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता, जिसमें किसी मुगल शहजादे का सिर कलम कर सिर्फ धड़ दफनाया गया हो. एक्स-रे इमेज में जिस कब्र में बिना सिर वाला कंकाल नजर आए उसे ही दारा की कब्र मान लेना चाहिए.
सवाल, दारा शिकोह का सिर काटा किसने?
इस सवाल का जवाब है औरंगजेब आलमगीर. दारा शिकोह शाहजहां का सबसे बड़ा बेटा था. शाहजहां उसे बहुत चाहता था और उसे ही शहंशाह बनाना चाहता था. दाराशिकोह की सभी धर्मों में रुचि थी और उसने कई हिंदू धर्म ग्रंथों के उर्दू-फारसी अनुवाद भी कराए थे. सत्ता और सियासत के बजाय दाराशिकोह को अमन पसंद शख्स के तौर पर जाना जाता है. शाहजहां को तो औरंगजेब ने आगरा में कैद कर दिया था और खुद को बादशाह घोषित कर दिया था.
छावा फिल्म में भी है दाराशिकोह के सिर काटने का जिक्र
सत्ता के लड़ाई में उसने दारा शिकोह को लड़ाई में हराया, फिर कैद किया, दिल्ली की सड़कों पर घुमाया और आखिरी में सिर काटकर हत्या कर दी. इतिहासकार जिक्र करते हैं कि औरंगजेब ने दारा शिकोह का कटा हुआ सिर शाहजहां को थाल में सजाकर पेश किया था. छावा फिल्म के भी एक सीन में औरंगजेब कहता है कि मैंने अपने भाई दाराशिकोह का सिर काटकर उसे अपने पिता शाहजहां को तोहफे में भेज दिया था.
शाहजहां का अजीज बेटा था दाराशिकोह
दाराशिकोह और औरंगजेब के जीवन पर किताब (दारा शुकोह, द मैन हू वुड बी किंग) लिखने वाले लेखक अवीक चंदा ने बीबीसी से बातचीत में बताया था कि दाराशिकोह का व्यक्तित्व सत्ता और सियासत वाला बिल्कुल नहीं था. इसके उलट वह थोड़े वहमी भी थे. दारा बादशाह शाहजहां के बड़े बेटे थे और उनके अजीज भी. औरंगजेब की उनसे बचपन से ही अदावत थी. दाराशिकोह को जहां शाहजहां हमेशा अपने करीब रखता था, वहीं औरंगजेब 16 साल की उम्र से ही जंगी मोर्चे पर भेजा जाने लगा था.
एक घटना, जिससे खिंच गई औरंगजेब और दारा के बीच दरार
बकौल अवीक चंदा, 'शाहजहां ने महज सोलह साल की उम्र में औरंगजेब को दक्कन की ओर भेजा. उसने वहां एक बड़े सैन्य अभियान का नेतृत्व किया, इसी तरह मुराद बख़्श गुजरात और शाहशुजा बंगाल गया, लेकिन दारा, को शाहजहां ने अपने साथ दरबार में ही रखा.' दारा और औरंगजेब के बीच अदावत की नींव वर्षों पहले उस दिन पड़ गई थी, जब एक दिन मुगलिया परिवार हाथियों की जंग देखकर मनोरंजन कर रहा था, उसी समय औरंगजेब एक बिदके हुए हाथी की चपेट में आ गया. उसने बहादुरी से इस स्थिति का सामना किया और अन्य लोगों द्वारा बचा भी लिया गया. इस दौरान उसके आस-पास लोगों का एक मजमा सा जुट गया, लेकिन औरंगजेब ने देखा कि पास ही खड़े दाराशिकोह ने औरंगजेब को बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.
इतिहासकारों की मानें तो जवानी की ओर बढ़ रहे औरंग के दिल में उस दिन अपने बड़े भाई दारा के लिए जो दरार पड़ गई, आगे चलकर वही दरार दोनों के बीच हुए सत्ता संघर्ष की गहरी खाई में भी तब्दील हो गई. औरंगजेब ने जब दारा के साथ सत्ता के लिए हुए युद्ध में उसे हराया तो इतिहासकारों ने इसका भी बहुत बारीकी से वर्णन किया है.
औरंगजेब के हाथों बुरी तरह हारा था दाराशिकोह
इतालवी इतिहासकार निकोलाओ मनूची ने इस संघर्ष के बारे में लिखा है कि, शुरू में दारा थोड़े भारी पड़े थे, लेकिन फिर औरंगजेब अपने पूरी सैन्य ताकत और युक्ति के साथ मैदान में आ डटा. उसने कई तरह की रणनीतियां अपनाकर दारा के दल में खलबली मचा दी और एक समय तो ऐसा आया कि सैनिकों ने देखा का हाथी की पीठ पर कसा दारा का हौदा खाली है. उन्हें लगा कि उत्तराधिकार की लड़ाई में मुगलिया सल्तनत का बड़ा दावेदार दाराशिकोह मारा गया और उनके पांव उखड़ने लगे. औरंगजेब ने इस मौके का फायदा उठाकर तेजी से तोपों और बंदूकों से हमला करवाया. दारा शिकोह की सेना तितर-बितर हो गई और वह उत्तराधिकार की लड़ाई हार गया.
दाराशिकोह की हुई दुर्दशा
दारा की हार के बाद की स्थिति का बहुत करीबी वर्णन मशहूर इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने भी औरंगज़ेब की जीवनी में किया है. उनके मुताबिक, 'घोड़े से कुछ मील आगे जाने के बाद दाराशिकोह आराम फरमाने एक पेड़ के नीचे रुके और वहीं बैठ गए. दारा बहुत हैरान-परेशान हो चुके थे और अपने सिर पर लगे कवचनुमा टोप को खोलना चाहते थे, क्योंकि ये उनके माथे में बहुत देर से चुभ रहा था और खाल में खरोंच पैदा कर रहा था. लेकिन दाराशिकोह पर ऐसी थकान चढ़ी थी कि वह सिर तक हाथ भी नहीं ले जा सकते थे.'
सरकार आगे लिखते हैं, 'आख़िरकार रात के नौ बजे के आसपास दारा कुछ घुड़सवारों के साथ चोरों की तरह आगरा के किले के मुख्य द्वार पर पहुंचे. उनके घोड़े बुरी तरह से थके हुए थे और उनके सैनिकों के हाथों में कोई मशाल नहीं थी. पूरे शहर में सन्नाटा पसरा हुआ था मानो वो किसी बात का शोक मना रहा हो. बिना कोई शब्द कहे हुए दारा अपने घोड़े से उतरे और अपने घर के अंदर घुस कर उन्होंने उसका दरवाज़ा बंद कर दिया. दारा शिकोह मुग़ल बादशाहत की लड़ाई हार चुके थे.'
ये तो अभी शुरुआत थी, औरंगजेब दाराशिकोह की और भी दुर्दशा करने वाला था. इधर-उधर भागते और बचते-छिपते दारा को आखिरकार एक दिन पकड़ ही लिया गया और फिर दिल्ली लाया गया. यहां से दाराशिकोह के साथ बुरा ही बुरा सुलूक हुआ.
दाराशिकोह के साथ बेटे को भी दी गईं यातनाएं
फ्रेंच इतिहासकार फ्रांसुआ बर्नियर की किताब 'ट्रेवल्स इन द मुग़ल इंडिया' में किया दाराशिकोह के साथ हुए बुरे सुलूक मर्माहत जिक्र आया है. उनकी किताबों के पन्ने पलटने पर मिलता है कि औरंगजेब के आदेश पर दारा को एक हथिनी पर बैठाया गया, उसके पीछे एक और हाथी पर दारा के 14 साल के बेटे को बिठाया गया और औरंगजेब का एक गुलाम इनके पीछे नंगी तलवार लेकर चला. दारा शिकोह को फटे हाल, नंगे बदन दिल्ली की सड़कों पर घुमाया गया और उसके साथ ही उसके 14 साल के बेटे को भी जलील किया गया.
...और काट दिया गया दाराशिकोह का सिर
अगस्त की चिलचिलाती धूप में दारा और उसके बेटे के साथ ये सुलूक दिल्ली ने अपनी झुकी आंखों से देखा और सड़क किनारे खड़े लोगों को उसके इस हाल पर बहुत रोना आया. इसके बाद औरंगजेब के आदेश पर दाराशिकोह को उसके बेटे के साथ जेल में डाल दिया गया. किताब में दर्ज है कि, इसके बाद ही दाराशिकोह पर इस्लाम के विरोधी होने के आरोप तय किए गए और यह भी तय हुआ कि दारा शिकोह को मौत के घाट उतार दिया जाए. औरंगज़ेब ने अपने गुलाम नज़र बेग को आदेश दिया कि वो दारा शिकोह का कटा हुआ सिर देखना चाहते हैं.
औरंगजेब के सामने जब कटा हुआ सिर लाया गया तो वह खून से सना था. औरंगजेब उसे कुछ देरतक देखता रहा और फिर कहा, इसके खून को साफ कर ठीक से लाया जाए. हुक्म की तामील हुई और जब इस बार सिर लाया गया तो औरंगजेब ने इसे गौर से देखकर पहचान की और तसल्ली कर लेने के बाद कि कटा हुआ सिर दाराशिकोह का ही है, उसने अब अगला आदेश दिया. ये आदेश था, सिर को आगरा ले जाने का...
औरंगजेब ने शाहजहां को तश्तरी में सजाकर भेजा था दाराशिकोह का सिर
इस घटना का बहुत ही लोमहर्षक वर्णन इतालवी इतिहासकार निकोलाओ मनूची ने अपनी किताब स्टोरिया दो मोगोर में किया है. वह लिखते हैं कि "आलमगीर ने अपने लिए काम करने वाले एतबार ख़ां को शाहजहां को पत्र भेजने की जिम्मेदारी दी. उस पत्र के लिफाफे पर लिखा हुआ था कि औरंगज़ेब, आपका बेटा, आपकी खिदमत में इस तश्तरी को भेज रहा है, जिसे देख कर उसे आप कभी नहीं भूल पाएंगे.
उस पत्र को पा कर तब तक बूढ़े हो चले शाहजहां ने कहा- खुदा का शुक्र है कि मेरा बेटा अब तक भी मुझे याद करता है. उसी वक्त उनके सामने एक ढकी हुई तश्तरी पेश की गई. जब शाहजहां ने उसका ढक्कन हटाया तो उनकी चीख निकल गई, क्योंकि तश्तरी में उनके सबसे बड़े बेटे दारा का कटा हुआ सिर रखा हुआ था."
ताजमहल में दफनाया दारा का सिर
मनूची आगे लिखते हैं, 'दारा का बाकी का धड़ तो हुमायूं के मकबरे में दफनाया गया लेकिन औरंगजेब के हुक्म पर दारा के सिर को ताज महल के परिसर में गाड़ा गया. उनका मानना था कि जब भी शाहजहां की नजर अपनी बेगम के मकबरे पर जाएगी, उन्हें ख्याल आएगा कि उनके सबसे बड़े बेटे का सिर भी वहां सड़ रहा है.' हालांकि दाराशिकोह की असली कब्र कहां है, इसे लेकर इतिहासकार कभी भी एकमत नहीं रहे हैं, लेकिन ये घटना औरंगजेब की क्रूरता को साबित करने के लिए काफी है.